Last Updated: Friday, October 5, 2012, 13:39

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ ने केरल तथा तमिलनाडु के बीच मुल्लापेरियार बांध विवाद पर विशेषज्ञ समिति द्वारा दी गयी सामग्री के अलावा अन्य कोई नई सामग्री स्वीकार करने से आज इनकार कर दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह कोई नयी सामग्री स्वीकार नहीं करेगी अन्यथा पूरी प्रक्रिया कभी समाप्त नहीं होगी। न्यायमूर्ति डीके जैन, न्यायमूर्ति आरएम लोढा, न्यायमूर्ति एचएल दत्तू, न्यायमूर्ति सीके प्रसाद और न्यायमूर्ति एआर दवे की पीठ ने मामले पर सुनवाई पांच नवंबर तक स्थगित कर दी। इसी दिन पीठ इस विवादास्पद मुद्दे पर सुनवाई की अंतिम तारीख तय करेगी।
पीठ ने केरल की ओर से पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील वी. गिरी से कहा कि हम कोई नई सामग्री या डाटा स्वीकार नहीं करेंगे। अन्यथा यह प्रक्रिया समाप्त ही नहीं होगी। गिरी ने दलील दी थी कि विशेषज्ञ समिति ने नई सामग्री संकलित की है, जिसके आधार पर उसने करीब एक सदी पुराने बांध की सुरक्षा को प्रमाणित करते हुए रिपोर्ट दी। केरल की ओर से दलील दी गई कि समिति ने निष्कर्षों पर पहुंचने में केरल तथा तमिलनाडु द्वारा दिए गए साक्ष्यों और सामग्री के बजाय अपने खुद के अनुभव में आए डाटा और सामग्री पर भरोसा किया।
हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि समिति के अपने विचार हो सकते हैं और इसके लिए उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता। पीठ ने कहा कि केरल और तमिलनाडु समिति के निष्कर्षों पर केवल मौजूदा सामग्री के आधार पर ही आपत्ति उठा सकते हैं। पीठ ने इस ओर भी इशारा किया कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति में दोनों राज्यों और केंद्र के सदस्य हैं।
पीठ ने कड़े स्वर में केरल से कहा कि समिति में आपके, तमिलनाडु के प्रतिनिधि हैं और केंद्र के साथ दोनों पक्षों के विशेषज्ञ हैं। कल आप कहेंगे कि आप इंग्लैंड, स्पेन या जापान से विशेषज्ञ बुलाएंगे। हम इसकी इजाजत नहीं दे सकते। यह एक विशेषज्ञ समिति है और कोई अस्थाई व्यवस्था नहीं है। यह एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति है। इसमें शीर्ष स्तर के विशेषज्ञ हैं। हालांकि सर्वोच्च अदालत ने दोनों राज्यों को अपने खुद के आंकड़ों और सामग्री को आपस में आदान प्रदान करने की इजाजत दे दी।
तमिलनाडु के अतिरिक्त महाधिवक्ता गुरू कृष्ण कुमार ने अदालत से सुनवाई जल्दी से जल्दी पूरी करने का अनुरोध किया।
अदालत ने 31 अगस्त को मुल्लापेरियार बांध के सुरक्षा पहलुओं पर विशेषज्ञ समिति की भारी भरकम रिपोर्ट को डिजिटल स्वरूप में बदलने का निर्देश दिया था। कागज रहित सुनवाई होने की बात करते हुए पीठ ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि करीब 50 हजार पन्नों वाली रिपोर्ट का डिजिटलीकरण किया जाए ताकि अदालत इसका अध्ययन कर सके।
शीर्ष अदालत द्वारा फरवरी, 2010 में गठित विशेषज्ञ समिति ने इस साल 25 अप्रैल को सीलबंद लिफाफे में एक रिपोर्ट में संकेत दिया था कि सालों पुराना बांध ढांचे तथा पानी के लिहाज से सुरक्षित है।
भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश एएस आनंद की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय समिति ने रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया था। समझा जाता है कि इसमें 119 साल पुराने बांध की सुरक्षा समेत सभी पहलुओं का अध्ययन किया गया।
शीर्ष अदालत ने 23 जुलाई को केरल के इडुक्की जिले में मुल्लापेरियार बांध पर मरम्मत कार्य करने की तमिलनाडु की याचिका को मंजूर कर लिया था। पीठ ने केरल सरकार को तकनीकी रिपोर्ट की प्रतियां रखने की भी अनुमति दे दी। (एजेंसी)
First Published: Friday, October 5, 2012, 13:39