यौन अपराध पर वर्मा समिति का कोई भी सुझाव नामंजूर नहीं: चिदंबरम

यौन अपराध पर वर्मा समिति का कोई भी सुझाव नामंजूर नहीं: चिदंबरम

यौन अपराध पर वर्मा समिति का कोई भी सुझाव नामंजूर नहीं: चिदंबरमनई दिल्ली : महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा संबंधी अध्यादेश को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिलने के एक बाद सोमवार को वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति की सभी सिफारिशों को हालांकि इस अध्यादेश में शामिल नहीं किया गया है लेकिन समिति के किसी भी सुझाव को नामंजूर नहीं किया गया है।

सरकार ने महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा पर अध्यादेश लाने का फैसला सही ठहराते हुए आज कहा कि इस तरह का कानून जल्द से जल्द लाने की सार्वभौमिक मांग के मद्देनजर ही यह कदम उठाया गया। सरकार ने कहा कि यह अध्यादेश ज्यादा से ज्यादा लोगों की सहमति के फलस्वरूप आया है ।

चिदंबरम ने यहां संवाददाताओं से कहा कि अध्यादेश अपराधियों के लिए निवारक का काम करेगा। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर चर्चा के लिए विधेयक संसद में पेश किया जाएगा और ज्यादा से ज्यादा आम सहमति के बाद इसे पारित किया जाएगा।

चिदंबरम ने कहा कि सरकार को उम्मीद है कि अध्यादेश में कडे प्रावधान अपराधियों के लिए तब तक निवारक का काम करेंगे जब तक संसद कोई नया कानून नहीं बना लेती । राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अध्यादेश को कल ही मंजूरी दी है।

वित्त मंत्री मीडिया पर मंत्रीसमूह के अध्यक्ष हैं। उन्होंने इस बात को मानने से इंकार किया कि सरकार ने अध्यादेश लाकर जल्दबाजी की है। चूंकि किसी आपराधिक कानून को बीती घटना पर लागू नहीं किया जा सकता इसलिए अध्यादेश लाने की आवश्यकता पडी।

उन्होंने कहा कि हम एक गंभीर मुद्दे से निपट रहे हैं। ‘मैं हर किसी से अपील करता हूं कि इसे पूरी गंभीरता और संवेदनशीलता के साथ देखा जाए। मैं हर किसी से अपील करता हूं कि संविधान में प्रदत्त विधायी प्रक्रिया का सम्मान किया जाए। किशोर न्याय कानून में संशोधन कर आयु सीमा कम करने की मांग के बारे में चिदंबरम ने कहा कि इसके लिए आम सहमति बनानी होगी और इसके लिए अलग से विधेयक लाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि एएफएसपीए (बल विशेषाधिकार कानून) में संशोधन की मांग के प्रति भी अभी कोई आम सहमति नहीं है।

चिदंबरम ने कहा कि किशोर न्याय कानून एक अलग कानून है। आयु सीमा कम की जाए या नहीं, इसे कुछ खास किस्म के अपराधों के लिए कम किया जाए या नहीं, जिन्हें जघन्य अपराध की श्रेणी में माना जाता है, ऐसा मामला है, जिस पर पूरी सतर्कता से विचार करने की आवश्यकता है और यह संविधान की मान्य सीमाओं के तहत होना चाहिए। जरूरत पडी, तो सरकार इस मुद्दे को संसद में रखेगी। उन्होंने कहा कि वैवाहिक बलात्कार और कार्यस्थल पर उत्पीडन जैसे मुद्दों पर आम सहमति के अभाव में, ही इन्हें अध्यादेश में शामिल नहीं किया गया है।

चिदंबरम ने कहा कि अध्यादेश इसलिए लाया गया क्योंकि महिलाओं के खिलाफ अपराध ऐसा मामला है, जिसमें विलंब नहीं किया जा सकता। केवल अध्यादेश के जरिए ही कानून तत्काल बनाया जा सकता है जबकि विधेयक पारित कराने में समय लगेगा।

अध्यादेश में आपराधिक कानून संशोधन विधेयक 2012 के कुछ प्रावधान शामिल किये गये हैं। यह विधेयक अभी गृह मामलों की संसद की स्थायी समिति के विचाराधीन है। समिति की सिफारिशों को महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा संबंधी विधेयक में शामिल किया जाएगा।

अध्यादेश को केवल ‘ शुरूआती बिन्दु ’ बताते हुए चिदंबरम ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों सहित सभी वर्ग के लोगों को इस मुद्दे पर समर्थन देना चाहिए। वित्त मंत्री ने और अधिक त्वरित अदालतों के गठन की आवश्यकता जताते हुए कहा कि इसके लिये और अधिक न्यायाधीशों की भी जरूरत है। उन्होंने कहा कि पुलिस बल विशेषकर सिपाही स्तर के कार्मिकों को अधिक संवेदनशील बनाने की भी आवश्यकता है। (एजेंसी)



First Published: Monday, February 4, 2013, 16:27

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