यौनकर्मियों को प्रोत्साहन नहीं दे रहे: शीर्ष कोर्ट

यौनकर्मियों को प्रोत्साहन नहीं दे रहे: शीर्ष कोर्ट


नई दिल्ली : देश में वेश्यावृत्ति को मंजूरी देने की आशंकाओं को दूर करते हुए उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को पहले दिए गए न्यायिक आदेश में सुधार किया है। न्यायालय ने कहा है कि वह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ काम करने की यौनकर्मियों की परिस्थितियों पर ही गौर करेगा।

न्यायमूर्ति अल्तमश कबीर और न्यायमूर्ति श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा की खंडपीठ ने आज कहा कि वे चाहते हैं कि सरकार और दूसरी एजेन्सियों के पुनर्वास कार्यक्रमों के अवसरों का लाभ यौनकर्मियों को भी मिले। न्यायाधीशों ने इसके साथ ही जून, 2011 के अपने आदेश में सुधार करते हुए कहा कि इसका तात्पर्य यह नहीं निकाला जायेगा कि इसके तहत वैश्यावृत्ति को बढ़ावा दिया जा रहा है।

न्यायालय ने 19 जून, 2011 के न्यायिक आदेश के अंतर्गत निर्धारित विचारणीय बिन्दुओं पर केन्द्र सरकार की दलील के मद्देनजर अपने आदेश में यह सुधार किया। सरकार का कहना था कि उसके विचारणीय बिन्दुओं से ऐसा आभास मिलता है कि देश में वेश्यावृत्ति को कानूनी दर्जा देने की मांग की जा रही है।

इस आदेश के तहत न्यायालय ने एक समिति का गठन करने के साथ ही उसके विचारणीय तीन बिन्दु भी निर्धारित किये थे। इसमें मानव तस्करी की रोकथाम, देहव्यापार का छोड़ने की इच्छुक यौनकर्मियों का पुनर्वास और यौनकर्मी के रूप में गरिमा के साथ काम करने की इच्छुक यौनकर्मियों के लिए अनुरूप माहौल।

न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा ने कहा कि हम वेश्यावृत्ति को बढ़ावा नहीं देना चाहते हैं बल्कि हमारा यौनकर्मियों के पुनर्वास पर अधिक जोर है। इसलिए मकसद से हमने इस मसले पर विचार शुरू किया था। न्यायालय ने कहा कि हम यह जोड़ना चाहते हैं कि यौनकर्मियों को भी गरिमा के साथ जीने का अधिकार है। इसके लिए अदालतों और यौनकर्मियों द्वारा सामूहिक प्रयास होना चाहिए कि यदि रोजगार के वैकल्पिक अवसर मिल रहे हों तो उन्हें देह व्यापार का धंधा छोड़ देना चाहिए। (एजेंसी)

First Published: Thursday, July 26, 2012, 21:34

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