Last Updated: Sunday, October 16, 2011, 09:05
नई दिल्ली: अन्ना हजारे पक्ष की तरफ से चुनाव सुधार का मुद्दा उठाने के बीच चुनाव आयोग ने कहा है कि वह चुनाव संबंधी नियमों में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को अस्वीकार करने
(राइट टू रिजेक्ट) या उन्हें वापस बुलाये जाने
(राइट टू रिकॉल) के अधिकार संबंधी प्रावधानों को शामिल करने के प्रस्ताव का पक्षधर नहीं है। आयोग ने कहा है कि ऐसा करना भारत जैसे बड़े देश में कारगर नहीं होगा।
कई विकसित देशों में मौजूद निर्वाचित प्रतिनिधियों को ‘वापस बुलाये जाने के अधिकार जैसे प्रस्ताव का विरोध करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने रविवार को कहा है कि ऐसा करने से देश के वह क्षेत्र ‘अस्थिर’ हो जाएंगे जहां ‘लोग पहले से ही खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं’।
‘अस्वीकार करने के अधिकार’ संबंधी प्रावधान शामिल करने के प्रस्ताव पर कुरैशी ने कहा कि चुनाव आयोग उम्मीदवारों के प्रति नाखुशी जाहिर करने का मतदाताओं को अधिकार देने के लिये इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में नियम 49-ओ के तहत एक अलग बटन रखे जाने के समर्थन में है, लेकिन ‘राइट टू रिजेक्ट’ जैसे प्रस्ताव के बारे में उसका मानना है कि इसके नतीजतन बार-बार चुनाव होंगे।
‘चुनाव नियम आचार’ के नियम 49-ओ के तहत कहा गया है कि अगर कोई वैध मतदाता वोट नहीं डालना चाहे और इस तथ्य को रिकॉर्ड पर लाना चाहे तो एक प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिये।
कुरैशी ने एक न्यूज चैनल को दिए गए इंटरव्यू में कहा है कि हमारी मुख्य आशंका यह है कि अगर हमने सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार करना शुरू कर दिया तो हमें एक और चुनाव कराना होगा और लोग पहले ही चुनाव से उब जाने की शिकायत कर रहे हैं।
बहरहाल, चुनाव आयोग को अन्ना हजारे के साथ चर्चा करने में कोई हर्ज नहीं है, जिन्होंने सुझाव दिया है कि अगर चुनावों में करोड़ों रुपये खर्च कर रहे सभी उम्मीदवारों को मतदाताओं ने अस्वीकार कर दिया तो इससे वे अत्यधिक खर्च नहीं करेंगे और चुनावी खर्च भी नियंत्रित हो जायेगा।
कुरैशी ने कहा कि हमारा इस बारे में खुला नजरिया है। अगर कोई प्रस्ताव व्यापक तौर पर अच्छाई के लिये है तो हमें उस पर विचार करना चाहिये। मैं इस दिलचस्प पहलू के बारे में चर्चा करना चाहूंगा और देखूंगा कि इसके क्या परिणाम होते हैं। उन्होंने खुलासा किया कि उनकी इस महीने के अंत में हजारे से मुलाकात होने वाली है।
कुरैशी ने कहा कि संबंधी प्रावधान को शामिल किये जाने से उसका विशेषकर कश्मीर तथा पूर्वोत्तरी राज्यों जैसे क्षेत्रों में गैर-इरादतन राजनीतिक संदेश के रूप में दुरुपयोग हो सकता है, जहां लोग पहले से ही खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं। हमने 49-ओ बटन का सुझाव दिया है।
कुरैशी ने स्पष्ट किया कि इस बटन के मायने अस्वीकार कर देने के अधिकार से नहीं हैं। इसके मायने सिर्फ यही हैं कि आप किसी उम्मीदवार के खिलाफ अपने विचार जाहिर कर सकेंगे। इसे मतगणना में शामिल नहीं किया जायेगा।
वापस बुलाए जाने के अधिकार संबंधी प्रस्ताव के बारे में मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि भारत जैसे बड़े देश में यह कतई संभव नहीं है। स्विट्जरलैंड जैसे छोटे देश में ऐसा है। पंचायत के चुनाव में ऐसा हो सकता है, लेकिन बड़े चुनावों में नहीं।
(एजेंसी)
First Published: Monday, October 17, 2011, 10:01