'रामलीला कांड: लोकतंत्र की जड़ पर हमला' - Zee News हिंदी

'रामलीला कांड: लोकतंत्र की जड़ पर हमला'

ज़ी न्यूज ब्यूरो


नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और दिल्ली पुलिस पर बरसते हुए गुरुवार को आदेश दिया कि योग गुरु रामदेव और उनके समर्थकों के खिलाफ पिछले वर्ष जून में मध्य रात्रि के दौरान कार्रवाई करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाया जाए। अदालत ने कहा कि यह लोकतंत्र की जड़ पर हमला था।

 

अदालत ने कहा कि यह जनता और सरकार के बीच विश्वास में कमी का मामला है । न्यायालय ने हिंसा के लिए रामदेव को भी जिम्मेदार ठहराया जो अपने समर्थकों के साथ रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन पर बैठे थे। न्यायमूर्ति बीएस चौहान और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ ने कहा कि यह सरकार की शक्ति का प्रदर्शन था जिसमें लोकतंत्र के जड़ पर प्रहार किया गया । अदालत ने कहा कि यह पुलिस अत्याचार का मामला है और जिस पुलिस का काम शांति स्थापित करना है, उसी ने शांति भंग की। रामदेव और दिल्ली पुलिस दोनों को जिम्मेदार ठहराते हुए अदालत ने उन पुलिसकर्मियों और रामदेव के समर्थकों पर मुकदमा चलाने का निर्देश दिया जिन्होंने घटना के दौरान हिंसक व्यवहार किया।

 

पीठ ने कहा कि पुलिस और सरकार इस घटना से बच सकती थी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। पीठ ने कहा कि यह शासन करने वाले लोग और शासितों के बीच विश्वास की कमी का स्पष्ट उदाहरण है। इसने कहा कि पुलिस कार्रवाई शांति के लिए होती है लेकिन उन्होंने खुद ही शांति भंग कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 4-5 जून की मध्य रात्रि रामलीला मैदान में की गई पुलिस की कार्रवाई को सही नहीं ठहराते हुए गुरुवार को कहा कि वहां से बाबा रामदेव तथा उनके समर्थकों को उठाने के लिए पुलिस ने अत्यधिक बल प्रयोग किया।

 

कोर्ट ने योग गुरु बाबा रामदेव को भी पुलिस के साथ सहयोग नहीं करने के लिए आड़े हाथों लिया। कोर्ट ने कहा कि 4-5 जून की मध्य रात्रि को की गई पुलिस कार्रवाई, जिसमें एक महिला की मौत हो गई, सरकार की 'ताकत' का प्रदर्शन था। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों की विभागीय जांच कराकर तीन महीने में रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी जाए।

 

न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान तथा स्वतंत्र कुमार ने बाबा रामदेव को भी पुलिस के साथ सहयोग नहीं करने तथा पुलिस द्वारा निषेधाज्ञा लागू करने के बाद भी अपने समर्थकों से उठने के लिए नहीं कहने पर आड़े हाथों लिया। कोर्ट ने इस कार्रवाई में बुरी तरह घायल हुई और बाद में अस्पताल में दम तोड़ने वाली हरियाणा की महिला राजबाला के परिजनों को पांच लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश भी दिया। साथ ही गम्भीर रूप से घायल होने वालों को 50,000 और अन्य घायलों को 25,000 रुपये की मुआवजा राशि देने के भी निर्देश दिए। कोर्ट ने बाबा रामदेव के ट्रस्ट को मुआवजे की 25 प्रतिशत राशि का भुगतान करने के लिए कहा।

 

अपने फैसले में न्यायमूर्ति चौहान ने पुलिस की कार्रवाई को मौलिक तथा मानव अधिकारों का उल्लंघन करार दिया। उन्होंने कहा कि धारा 144 शांति भंग होने से रोकने के लिए लगाई जाती है, न कि शांति भंग करने के लिए। रामलीला मैदान में रात में मौजूद लोग सो रहे थे। वह हिंसक भीड़ नहीं थी।

 

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से संबंधित मीडिया रिपोर्टों के आधार पर संज्ञान लिया था जिसमें बताया गया था कि दिल्ली पुलिस ने रामदेव के सोते हुए समर्थकों के खिलाफ बर्बर तरीके से कार्रवाई की। कार्रवाई के दौरान घायल एक महिला समर्थक राजबाला की बाद में मौत भी हो गई थी। जस्टिस बीएस चौहान और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की बेंच ने 20 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

 

इससे पहले नवंबर 2011 में इस प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए दिल्ली पुलिस से इस बात का जवाब मांगा था कि रामलीला मैदान में कार्रवाई के लिए सुबह तक इंतजार क्यों नहीं किया गया? न्यायमूर्ति बीएस चौहान और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ ने कहा थी कि दिल्ली पुलिस स्पष्ट करे कि क्या बल प्रयोग न्यायोचित था। किन परिस्थितियों में कार्रवाई हुई और पुलिस लोगों से स्थान छोड़ने के लिए कहने के लिहाज से सुबह तक इंतजार क्यों नहीं कर सकी?

First Published: Friday, February 24, 2012, 11:32

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