राष्ट्रीय सलाहकार परिषद से अरुणा रॉय का इस्तीफा

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद से अरुणा रॉय का इस्तीफा

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद से अरुणा रॉय का इस्तीफानई दिल्ली : सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) से इस्तीफा दे दिया है। सोनिया ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। अरुणा का कार्यकाल शुक्रवार 31 मई को समाप्त हो रहा है। एनएसी की जिम्मेदारी सरकार को कानून बनाने तथा नीतियों के निर्धारण में परामर्श देने का है।

अरुणा ने एनएसी अध्यक्ष सोनिया को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि उन्हें एनएसी में एक और कार्यकाल देने पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। सोनिया ने उनके आग्रह को मान लिया है। अरुणा रॉय ने सोनिया को लिखे पत्र में कहा कि मैं आपकी आभारी हूं कि आपने मेरा आग्रह स्वीकार किया और यह आश्वासन भी दिया कि एनएसी के बाहर सामाजिक क्षेत्र में जो भी अभियान चलाये जाएंगे, आप उनका समर्थन जारी रखेंगी।

उन्होंने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के तहत कामगारों को मिलने वाले न्यूनतम वेतन को लेकर एनएसी की सिफारिशों को नहीं मानने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय की आलोचना भी की। उन्होंने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि प्रधानमंत्री ने मनरेगा कामगारों को न्यूनतम वेतन के भुगतान को लेकर एनएसी की सिफारिशों को नामंजूर कर दिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ अपील में जाने का फैसला किया, जिसमें मनरेगा कामगारों को न्यूनतम वेतन देने के लिए कहा गया था।

अरुणा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले पर स्थगनादेश देने से इनकार किए जाने के बाद सरकार का न्यूनतम वेतन भुगतान करने से इनकार और भी दुख की बात है। यह बात समझ से परे है कि भारत जैसा देश न्यूनतम वेतन भुगतान से कैसे इनकार कर सकता है और उस पर भी वह समावेशी विकास का दावा करता है। एनएसी की भूमिका के बारे में अरुणा रॉय ने कहा कि महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को लेकर बनाए गए एनएसी कार्यदल ने मनरेगा के कार्यान्वयन से संबंधित कई मुद्दों पर विचार किया। कार्यदल की सिफारिशें मंत्रालय को भेजी गईं, जिसने कार्यक्रम सलाहकार दल का गठन किया ताकि कार्यदल की सिफारिशों और ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से जारी नए दिशानिर्देशों के कार्यान्‍वयन की निगरानी की जा सके।

उन्होंने कहा कि ग्रामीण गरीबों के जीवन को बदलने में मंत्रालय के योगदान के बावजूद इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम (मनरेगा) का कार्यान्वयन चुनौती बना हुआ है। खाद्य सुरक्षा विधेयक पर अरुणा ने कहा कि देश में भूख और कुपोषण की स्थिति को देखते हुए खाद्य सुरक्षा विधेयक पर संसद में चर्चा के बाद इसे पारित किया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि एनएसी और सार्वजनिक स्तर पर विधेयक के प्रावधानों को लेकर विस्तृत और स्वस्थ चर्चा हुई। इससे स्पष्ट हो गया कि यदि संसद इस विधेयक पर चर्चा करती तो पूरी संभावना थी कि इस विधेयक को काफी अधिक समर्थन मिलता। (एजेंसी)

First Published: Wednesday, May 29, 2013, 14:23

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