Last Updated: Thursday, May 24, 2012, 23:53
श्रीनगर: कश्मीर पर गुरुवार को सार्वजनिक हुई केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त वार्ताकारों की रिपोर्ट को राज्य के अलगाववादी नेताओं ने सिरे से खारिज कर दिया। नेताओं ने इस रिपोर्ट को जम्मू एवं कश्मीर को धार्मिक एवं जातीय आधार पर बांटने का एक प्रयास बताया। उदारवादी हुर्रियत समूह के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक रिपोर्ट खारिज करने वाले पहले अलगाववादी नेता हैं।
मीरवाइज ने पत्रकारों से कहा, `आज हमने देखा कि समस्या को जटिल बनाने और इस पर भ्रमित करने के लिए एक और प्रयास किया गया। यह समस्या को कई रूप देने का एक प्रयास है ताकि यह भ्रम उत्पन्न करे एवं जटिल बन जाए।`
उन्होंने कहा, `इस रिपोर्ट के जरिए कश्मीर को कई भागों में बांटने का प्रयास किया गया है, इसलिए इस रिपोर्ट को हम खारिज करते हैं।` जम्मू एवं कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के अध्यक्ष मोहम्मद यासीन मलिक ने कहा, `वार्ताकारों से न मिलने का हमारा फैसला सही साबित हुआ है। बिना ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के यह दिवालियापन में एक बौद्धिक अभ्यास है।`
वरिष्ठ अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गीलानी ने बताया, `रिपोर्ट में कश्मीर के लोगों के लिए कुछ भी नहीं है।` उन्होंने कहा, `जम्मू एवं कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है और रिपोर्ट में राज्य की विवादित स्थिति को स्वीकार किया जाना चाहिए था। रिपोर्ट में इस तरह का कोई उल्लेख नहीं है।`
वार्ताकारों ने अपनी रिपोर्ट में राज्य से सम्बंधित सभी केंद्रीय कानूनों की समीक्षा संवैधानिक समिति से कराने संविधान के अनुच्छेद 370 को स्थाई बनाने की अनुशंसा की है। अनुच्छेद 370 राज्य को विशेष दर्जा देता है। पत्रकार दिलीप पडगांवकर के नेतृत्व में वार्ताकारों की टीम ने केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपी रिपोर्ट में ये बातें कही हैं। चिदम्बरम को यह रिपोर्ट अक्टूबर, 2011 में ही सौंपी गई थी, जिसे गुरुवार को सार्वजनिक किया गया। (एजेंसी)
First Published: Thursday, May 24, 2012, 23:53