Last Updated: Monday, May 20, 2013, 20:42

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि बलात्कार समाज में नैतिक और शारीरिक रूप से सबसे निन्दनीय अपराध है जो एक असहाय स्त्री की आत्मा और सतीत्व को नष्ट कर देता है।
न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने कहा, ‘‘बलात्कार समाज में नैतिक और शारीरिक रूप से सबसे निन्दनीय अपराध है क्योंकि यह पीड़ित के शरीर, मन और निजता पर आघात करता है। एक हत्यारा पीड़ित की शारीरिक संरचना को नष्ट करता है जबकि बलात्कारी असहाय महिला के सतीत्व और आत्मा का अनादर करता है।’’ न्यायाधीशों ने कहा कि बलात्कार तो पूरे समाज के खिलाफ अपराध है और यह नहीं कहा जा सकता कि पीड़ित इस अपराध में सहभागी थी।
न्यायालय ने कहा, ‘‘बलात्कार एक महिला को एक पशु की स्थिति में पहुंचा देता है क्योंकि यह उसकी आत्मा को ही झकझोर देता है और किसी भी नजरिये से बलात्कार पीड़ित को एक सहभागी नहीं कहा जा सकता है। बलात्कार तो पीड़ित की जिंदगी पर हमेशा के लिये एक कभी न भरने वाला जख्म छोड़ देता है और इसलिए बलात्कार पीड़ित को जख्मी गवाह से भी उंचे पायदान पर रखा जाता है। बलात्कार पूरे समाज के प्रति अपराध है और यह पीड़ित के मानवाधिकारों का हनन करता है।’’ न्यायाधीशों ने बलात्कार के जुर्म में दोषी ठहराते हुये सात साल की कैद की सजा देने के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर यह फैसला सुनाया। न्यायालय ने अभियुक्त की कैद की सजा निरस्त कर दी।
न्यायालय ने बलात्कार की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि इस तरह का अपराध पीड़ितों को शारीरिक ही नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक नुकसान भी पहुंचाता है।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘सबसे अधिक घृणित अपराध होने के कारण ही बलात्कार महिला के सर्वोच्च सम्मान को गंभीर आघात पहुंचाता है और यह उसके सम्मान और गरिमा दोनों को ही आहत करता है। यह पीड़ित को मनोवैज्ञानिक और शारीरिक नुकसान पहुंचाता है।’’ (एजेंसी)
First Published: Monday, May 20, 2013, 20:42