Last Updated: Sunday, June 2, 2013, 15:42

नई दिल्ली : अगले साल के आखिर तक भारतीय लड़ाकू विमानों को स्वदेश निर्मित ‘ग्लाइड बम’ से लैस किया जा सकता है जिनसे पूरी सटीकता के साथ लक्ष्य पर निशाना साधा जा सकेगा। देश में इस तरह के पहले ‘ग्लाइड बम’ का विकास ‘रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन’ (डीआरडीओ) कर रहा है जो भारत की हमले की क्षमताओं को बढ़ाएगा। इससे लड़ाकू विमान की मारक क्षमता से अधिक दूरी तक निशाना साधा जा सकेगा। डीआरडीओ 100 किलोग्राम, 250 किलोग्राम और 500 किलोग्राम समेत अनेक वजन के मौजूदा बम की दूर तक विध्वंस करने क्षमता को बढाने की दिशा में काम कर रहा है।
डीआरडीओ के निवर्तमान अध्यक्ष वी के सारस्वत ने पीटीआई को दिये साक्षात्कार में कहा, ‘‘हम ग्लाइड बम का विकास कर रहे हैं जिन्हें वायु सेना के विमान से गिराकर निर्देशित करने की प्रणाली का प्रयोग करते हुए मनचाहे लक्ष्य की ओर दागा जा सकता है।’’ उन्होंने कहा कि इस तरह की क्षमता पाकर वायु सेना के पायलट अभीष्ट लक्ष्यों को भेदने के लिए बम गिरा सकेंगे और यह बम की विध्वंस क्षमता का दायरा बढ़ाने में मददगार होगी।
डीआरडीओ इस तरह के बमों के दो परीक्षण सफलतापूर्वक कर चुका है और इस साल और भी परीक्षण करने की योजना है। सारस्वत ने कहा, ‘‘इस साल के आखिर तक हम ग्लाइड बमों के सभी परीक्षणों को पूरा करना चाहते हैं जिसके बाद इसे वायु सेना को दिया जाएगा।’’ उन्होंने कहा कि संगठन रेडियोधर्मिता रोधी मिसाइल भी विकसित करने की प्रक्रिया में है जो दुश्मन की अग्रिम चेतावनी प्रणाली को नष्ट करके सशस्त्र बलों की मारक क्षमताओं में इजाफा करेगी। इस तरह की मिसाइलों को सुखोई लड़ाकू विमानों सु-30 एमकेआई पर लगाया जा सकेगा।
ये मिसाइल अपनी विद्युत-चुंबकीय तरंगों को भेजकर राडार का पता लगा सकता है और यह राडार की तरंगदैध्र्य के दायरे में नहीं आएगी और इसे तहस-नहस करने में कामयाब होगी। इस तरह की मिसाइलों का फिलहाल अमेरिका जैसी कुछ बड़ी महाशक्ति वाले देशों में इस्तेमाल किया जाता है।
अग्नि-5 मिसाइल की 5,000 किलोमीटर से अधिक दूरी तक मारक क्षमता के सफल परीक्षण को अपने कार्यकाल की बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिनाते हुए डीआरडीओ के प्रमुख ने कहा कि मिसाइल के और अधिक प्रभावी संस्करणों को विकसित किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि डीआरडीओ मिसाइल के ‘मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटिड रि-एंट्री व्हीकल’ (एमआईआरवी) से युक्त संस्करण के निर्माण की दिशा में काम कर रहा है। इससे मिसाइल में एक ही बार में अनेक लक्ष्यों पर निशाना साधने के लिए कई आयुधों को रखने की क्षमता होगी। सारस्वत ने कहा कि इसे सशस्त्र बलों में शामिल करने से पहले अनेक परीक्षण किये जाएंगे।
सतह से हवा में मार करने वाली मध्यम दूरी की मिसाइल (एमआर-एसएएम) और लंबी दूरी की मिसाइल (एलआर-एसएएम) के विकास के लिए इस्राइल के साथ संयुक्त उपक्रम के कार्यक्रम पर उन्होंने कहा कि कुछ तकनीकी कारणों से इसमें दो साल की देरी हुई है। भारत और इस्राइल ने एक संयुक्त उपक्रम बनाया है जिसके तहत वायु सेना और नौसेना इन मिसाइल प्रणालियों को प्राप्त करेंगे। (एजेंसी)
First Published: Sunday, June 2, 2013, 15:42