लापता बच्चों का आंकड़ा खतरनाक स्तर पर

लापता बच्चों का आंकड़ा खतरनाक स्तर पर

नई दिल्ली : देश में बच्चों के लापता होने की घटनाएं खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है और सरकार के आंकड़ों को देखें तो पाएंगे कि 2008 से 2010 के बीच एक लाख से अधिक बच्चे गायब हो गए। इनमें से अधिकांश बच्चे मानव तस्करी का शिकार बने, उन्हें बंधुआ मजदूर बनाया गया या फिर जिस्मफरोशी में धकेल दिया गया।

एक अधिकारी ने बताया कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2008 से 2010 के बीच देश के 392 जिलों से एक लाख 17 हजार 480 बच्चे लापता हो गए। पश्चिम बंगाल में बच्चों के लापता होने की सबसे अधिक घटनाएं हुईं। बांग्लादेश की सीमा से लगे जिलों में इस तरह की घटनाएं ज्यादा पायी गईं।

उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और देश के अन्य महानगरों में भी भारी संख्या में बच्चे लापता हुए। कर्नाटक में 2008 के दौरान 99 लड़कियों के लापता होने की खबर है। यह आंकड़ा 2010 में बढ़कर 130 हो गया। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा देश भर से लापता होने वाले बच्चों को लेकर मुहैया कराये गए आंकड़े भी यही रूझान दर्शाते हैं। कुछ बच्चे घर से भागते हैं लेकिन अधिकांश मानव तस्करी के संगठित गिरोहों के हत्थे चढ़ जाते हैं।

अधिकारी ने बताया कि बड़े शहरों में इन बच्चों को बंधुआ मजदूर या भीख मांगने वाले रैकेट में लगा दिया जाता है। कुछ को जिस्मफरोशी में लगाया जाता है जबकि कुछ अन्य का अपहरण मानव अंग बेचने के लिए किया जाता है। (एजेंसी)

First Published: Sunday, July 1, 2012, 13:23

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