Last Updated: Wednesday, January 23, 2013, 22:10

नई दिल्ली : भारत में लापता बच्चों के सही आंकड़े उपलब्ध नहीं होने पर चिन्ता व्यक्त करते हुए भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस वर्मा ने आज कहा कि इन बच्चों को जबरन बाल श्रम के लिए ढकेला जाता है और उनका यौन उत्पीड़न भी होता है।
वर्मा ने यहां संवाददाताओं से कहा कि हर जिलाधिकारी की जिम्मेदारी है कि वह अपने जिले में लापता बच्चों की संख्या का रिकार्ड रखे। जिलाधिकारियों और पुलिस द्वारा लापता बच्चों के प्रति दिखाई जा रही उदासीनता का इसी बात से पता चलता है कि गृह मंत्रालय ने 30 जनवरी 2012 को राज्यों को भेजी एडवाइजरी (परामर्श) में कहा है कि इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि राजनीतिक क्षेत्र की विश्वसनीयता के लिए वाकई इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है । देश के बाल सुधार गृहों की खस्ता हालत का जिक्र करते हुए वर्मा ने कहा कि किशोर अपराधी न्याय कानून के तहत इन बाल गृहों का रखरखाव नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा, ‘हमें यह जानकर हैरत है कि कई बच्चों को बाल श्रम और भिक्षावृत्ति में ढकेला जा रहा है।’
खाप पंचायतों का हस्तक्षेप बंद कराए सरकार
खाप पंचायतों को आड़े हाथ लेते हुए न्यायमूर्ति जेएस वर्मा समिति ने कहा कि जो रूख खाप पंचायतें अपनाती हैं, वह तर्कहीन स्तर पर पहुंच गया है। समिति ने सरकार से कहा कि वह सुनिश्चित करे कि शादी के मामले में लोगों के फैसलों में इस तरह की संस्थाएं हस्तक्षेप नहीं करें। समिति ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के परिप्रेक्ष्य में खाप पंचायतों के रूख पर विचार करना प्रासंगिक था।
वर्मा ने कहा कि खाप पंचायतों द्वारा जाति व्यवस्था बनाए रखने का तर्क किसी व्यक्ति की स्वतंत्र रूप से अपना साथी चुनने की आजादी छीनता है। उन्होंने कहा कि किसी महिला को उसकी पसंद से शादी नहीं करने देने के गंभीर सामाजिक और आर्थिक दुष्परिणाम हैं। ऐसा नहीं होने देने के लिए महिलाओं की स्वतंत्र रूप से आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया जाता है और उसकी शिक्षा, रोजगार एवं मौलिक अधिकारों पर असर पड़ता है।
वर्मा ने कहा कि हम सरकार से उम्मीद करते हैं कि वह सुनिश्चित करे कि खाप पंचायतों जैसी संस्था शादी के मामले में किसी पुरूष या महिला की पसंद को लेकर हस्तक्षेप न करें। समिति ने कहा कि झूठी शान के लिए हत्या का शिकार बड़े पैमाने पर महिलाएं बन रही हैं। ऐसे में इस सामाजिक बुराई पर विचार करना समिति के लिए काफी महत्वपूर्ण था।
प्रत्याशियों की संपत्ति ब्यौरे की कैग से जांच हो
जन प्रतिनिधित्व कानून में सुधार की आवश्यकता बताते हुए भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस वर्मा ने सुझाव दिया कि चुनावी उम्मीदवारों द्वारा उनकी संपत्ति के बारे में दिये गए ब्यौरे की जांच नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) से करायी जा सकती है।
जस्टिस वर्मा ने कहा कि यदि उम्मीदवार द्वारा सौंपा गया ब्यौरा गलत पाया जाए तो उस स्थिति में उसे अयोग्य करार दिया जाए। वर्मा की रपट में कहा गया कि गलत ब्यौरा दिया जाना जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत उम्मीदवार को अयोग्य करार दिए जाने का आधार बनना चाहिए।
‘राजनीति के अपराधीकरण’ और ‘अपराध के राजनीतिकरण’ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन होना चाहिए ताकि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर रखा जा सके और जनता का सच्चा प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके।
वर्मा ने कहा कि किसी उम्मीदवार के खिलाफ आपराधिक मामला लंबित है या नहीं, इसकी पुष्टि होनी चाहिए और नामांकन पत्र की वैधता के लिए उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार का प्रमाणपत्र आवश्यक होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कोई उम्मीदवार यदि अपने खिलाफ चल रहे मामले का खुलासा नहीं करता है तो उसे अयोग्य करार दिया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि ऐसा आरोप है कि आंध्र प्रदेश कैबिनेट के एक मंत्री अपने अपराध का ब्यौरा नहीं दे पाये और उनके खिलाफ एक शिकायत लंबित है। ‘हम आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री से आग्रह करते हैं कि उक्त बातें सही हैं तो मंत्री को तत्काल बर्खास्त किया जाए।’
वर्मा ने कहा कि संसद और विधानसभा में जो लोग चुनकर पहुंचे हैं और अगर उनमें से किसी के खिलाफ जघन्य अपराध को लेकर आपराधिक मामला लंबित है तो उन्हें संसद और संविधान का सम्मान करते हुए अपना पद छोड़ देना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों से कम से कम यह उम्मीद की जा सकती है कि जिन व्यक्तियों का आपराधिक रिकार्ड है, उन्हें उम्मीदवार ही न बनाएं। वर्मा ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों के अनिवार्य पंजीकरण के लिए कानून बनाया जाना चाहिए। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, January 23, 2013, 22:10