Last Updated: Thursday, December 29, 2011, 06:44
ज़ी न्यूज ब्यूरोनई दिल्ली : राज्यसभा में वी. नारायण सामी के लोकपाल बिल पेश करने के बाद बहस में हिस्सा लेते नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने कहा कि हम कमजोर लोकपाल बिल का विरोध करते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि लोकपाल कानून बनाए बगैर यह सदन न उठे। इस बिल से देश के करोड़ों लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई है।
राज्यसभा में आज विपक्ष ने लोकपाल विधेयक को ‘खोखला’ और ‘संविधान की दृष्टि से बेहद कमजोर’ करार देते हुए कहा कि इसके जरिए राज्यों के अधिकारों पर अतिक्रमण किया जा रहा है जबकि सत्ता पक्ष ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि प्रस्तावित कानून से भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में काफी मदद मिलेगी। विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि लोकपाल विधेयक के जरिए केवल विपक्ष ही नहीं सत्तारुढ़ गठबंधन में शामिल दलों की भी परीक्षा होगी।
जेटली ने कहा, 'देश जानना चाहता है कि सरकार क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ केवल प्रवचन ही करना चाहती है या उस पर प्रहार भी करना चाहती है। आप एक खोखला लोकपाल बनाना चाहते हैं और इस बात का भ्रम पैदा करना चाहते हैं कि आप उसे संवैधानिक दर्जा दे रहे हैं।' उन्होंने कहा, 'सरकार सीबीआई को अपने पास रखकर लोकपाल को कमजोर बना रही है। आप एक खिलौना बनाना चाहते हैं और उसके बाद आप कह रहे हैं कि उसके पास संवैधानिक दर्जा होना चाहिए।’
जेटली ने कहा कि सदन को आज लोकपाल को मजबूत करने के लिए विपक्ष द्वारा लाए गए संशोधनों को स्वीकार करने के बाद ही लोकपाल विधेयक पारित करना चाहिए। नेता प्रतिपक्ष के नेता ने कहा, ‘यह कानून पारित कर हमें यह फैसला करना होगा कि क्या हम इतिहास से टकराते हें या नया इतिहास लिखते हैं।’ लोकायुक्तों की नियुक्ति के लिए राज्यों पर कानून थोपे जाने का विरोध करते हुए जेटली ने कहा कि संविधान में राज्यों और केंद्रों के अधिकारों का स्पष्ट तौर पर वर्गीकरण किया गया है। भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए संघीय ढांचे को नष्ट करने की जरूरत नहीं है।
उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी को विधेयक के तीन ‘बेतुके और अर्थहीन प्रावधानों’ पर आपत्ति है। लोकपाल की नियुक्ति करने वाले पांच सदस्यीय पैनल में बहुमत सरकार का है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए व्यक्ति को सरकार को शिकायत करनी पड़ेगी। लिहाजा लोकपाल के सर पर हमेशा सरकार की तलवार लटकती रहेगी। ऐसा प्रतीत होता है कि जिसने भी यह विधेयक बनाया है, उसे आपराधिक जांच प्रक्रिया के बारे में जरा भी जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि जांच प्रक्रिया इतनी लंबी एवं जटिल है कि कुछ लोग कह रहे हैं कि इसमें जांच प्रक्रिया की जलेबी बना दी गई है। जेटली ने कहा कि आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि जांच करने वाली एजेंसी को जांच का अधिकार न हो।
जेटली ने निजी पक्षों को लोकपाल के दायरे में लाने का कड़ा विरोध करते हुए इसे लोगों की निजता में घुसपैठ बताया। उन्होंने कहा कि इस कानून के लागू होने के बाद मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे तथा अन्य कई संगठन भी जांच के दायरे में आ गए हैं जिनका सार्वजनिक प्रतिनिधियों या सरकार से कोई लेना देना नहीं है। सरकार को यदि इन संस्थानों को जांच के दायरे में लाना है तो उसे भ्रष्टाचार निरोधक कानून में उपयुक्त प्रावधान करने चाहिए न कि लोकपाल कानून में।
नेता विपक्ष ने कहा कि एक केंद्रीय कानून के जरिए राज्यों के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कैसे की जा सकती है। क्या यह संवैधानिक ढांचे के साथ छेड़छाड़ नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का अधिकार केंद्र के पास क्यों होना चाहिए। यह अधिकार राज्यों को दिया जाना चाहिए। जेटली ने कहा कि इस कानून के जरिए सरकार ने ‘कॉन्स्टीट्यूशनल कॉकटेल (असंबद्ध संवैधानिक प्रावधानों की खिचड़ी)’ बनाने की कोशिश की है।
जेटली ने कहा कि सरकार के प्रावधानों को देख कर लगता है कि वह किसी संस्था को बनाने से पहले ही उसे नष्ट करना चाहती है। उन्होंने कहा, ‘हमें गलत इतिहास स्थापित नहीं होने देना चाहिए। हम एक नई संस्था बनाने जा रहे हैं। यह चुनौती भरा काम है। इस संस्था की सत्यनिष्ठा पर भरोसा किया जाएगा। इसे कमजोर क्यों बनाना चाहिए। ऐसी लचीली जांच एजेंसी क्यों होना चाहिए जो लोकपाल के नहीं बल्कि सरकार के नियंत्रण में हो। इसलिए हम सरकार के लोकपाल को पारित नहीं करेंगे बलिक हमें अपने संशोधनों के साथ इसे पारित करेंगे।’
First Published: Thursday, December 29, 2011, 17:52