लोकपाल बिल पर कैबिनेट की मुहर, 14 संशोधनों के साथ मंजूरी

लोकपाल बिल पर कैबिनेट की मुहर, 14 संशोधनों के साथ मंजूरी

लोकपाल बिल पर कैबिनेट की मुहर, 14 संशोधनों के साथ मंजूरीनई दिल्ली : लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक में सरकारी संशोधन पेश करने के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के प्रस्ताव पर केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को अपनी मुहर लगा दी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला किया गया।

बैठक के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री वी नारायणसामी और सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने यहां संवाददाताओं को बताया कि विधेयक पर राज्यसभा की प्रवर समिति की 16 सिफारिशों में से 14 को मंजूर किया गया है जबकि दो सिफारिशों पर सहमति नहीं बन सकी।

नारायणसामी ने बताया कि विधेयक को लोकसभा ने 27 दिसंबर 2011 को पारित किया था। इसे राज्यसभा में विचार और पारण के लिए 29 दिसंबर 2011 को रखा गया। चर्चा अधूरी रही और बाद में राज्यसभा ने तय किया कि विधेयक को प्रवर समिति के विचारार्थ भेजा जाए। प्रवर समिति ने अपनी रपट राज्यसभा के सभापति को 23 नवंबर 2012 को सौंप दी। प्रवर समिति ने सिफारिश की थी कि लोकपाल कानून पारित होने के 365 दिन के भीतर राज्यों की विधानसभाएं लोकायुक्त के गठन को लेकर कानून बनाएंगी। सरकार ने समिति की इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया है।

समिति ने सिफारिश की थी कि चयन समिति के पांचवे सदस्य (जो प्रख्यात विधिवेत्ता होगा) का मनोनयन राष्ट्रपति कर सकते हैं। यह मनोनयन चयन समिति के चार अन्य सदस्यों प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के प्रधान न्यायाधीश की सिफारिश पर होगा। नारायणसामी ने कहा कि इस सिफारिश को भी मान लिया गया है।

सरकारी संशोधनों को कैबिनेट की मंजूरी के साथ ही अब इस विधेयक को राज्यसभा में आगामी बजट सत्र में पेश किया जाएगा। राज्यसभा से मंजूरी के बाद विधेयक को लोकसभा में भी संशोधनों के साथ पेश किया जाएगा। सरकार ने समिति की इस सिफारिश को नहीं माना है कि किसी आरोपी सरकारी कर्मचारी को प्रारंभिक जांच शुरू होने से पहले अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया जाएगा। इस सिफारिश को भी कैबिनेट ने नहीं माना कि लोकपाल द्वारा केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के किसी अधिकारी को किसी मामले की जांच का जिम्मा सौंपे जाने की स्थिति में उस अधिकारी का तबादला लोकपाल की अनुमति के बगैर नहीं किया जा सकता। नारायणसामी ने कहा कि इससे सीबीआई के कामकाज पर असर पड़ेगा।

इस संशोधनों के बाद सरकारी सहायता वाले एनजीओ और धार्मिक संगठन अब लोकपाल के दायरे में होंगे। वहीं, राजनीतिक दल लोकपाल के दायरे से बाहर होंगे। पांच लोग मिलकर करेंगे लोकपाल की नियुक्ति। बिल पास होने के एक साल के बाद राज्‍यों में लोकायुक्‍त बनेगा।

विधेयक में सीबीआई निदेशक की नियुक्ति तीन सदस्यीय कालेजियम द्वारा करने का प्रावधान होगा। इस कालेजियम में प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और भारत के प्रधान न्यायाधीश होंगे। सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति के प्रावधान के बारे में नारायणसामी ने कहा कि यह प्रावधान लोकसभा द्वारा पारित लोकपाल विधेयक में पहले से ही है। यह पूछने पर कि प्रवर समिति ने ऐसी सिफारिश क्यों की, जो पहले ही विधेयक में है, उन्होंने कहा कि हो सकता है कि समिति इस मुद्दे पर अपने नजरिए की पुन:पुष्टि करना चाह रही हो। समिति ने सिफारिश की है कि किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति का अधिकार सरकार की जगह लोकपाल को मिलना चाहिए। इसने कहा कि लोकपाल को ऐसा कोई फैसला करने से पहले किसी सक्षम प्राधिकार और सरकारी कर्मचारी की टिप्पणियां लेनी पड सकती हैं। सरकार ने इन सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। (एजेंसी)

First Published: Thursday, January 31, 2013, 10:08

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