'लोकपाल बिल संघीय ढांचे पर प्रहार' - Zee News हिंदी

'लोकपाल बिल संघीय ढांचे पर प्रहार'

ज़ी न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली : लोकपाल विधेयक को देश के ‘संघीय ढांचे पर प्रहार, असंवैधानिक, विसंगतियों से भरा और मजबूरी में लाया गया विधेयक’ करार देते हुए लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने केन्द्र की संप्रग सरकार से इस विधेयक को वापस लेने और मजबूत लोकपाल के लिए नया विधेयक लाए जाने की मांग की।

 

लोकपाल विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए सुषमा स्वराज ने कहा कि सरकार एक ऐसा कमजोर लोकपाल विधेयक लेकर आई है जिसकी अनुपालना कम और अवहेलना अधिक होगी तथा धर्म आधारित आरक्षण के जरिए यह देश में विभाजन का नया बीज बोने का काम करेगा। उन्होंने लोकपाल विधेयक में विपक्ष के सुझावों को शामिल करने अन्यथा उसे वापस लिए जाने की मांग की। उन्होंने विधेयक को पूरी तरह से नकारते हुए कहा कि सरकार ‘मूल रूप से असंवैधानिक’’ विधेयक लाई है और विपक्ष आंखों देखते मक्खी नहीं निगल सकता। सुषमा ने कहा कि सरकार ने विधेयक में धर्म आधारित आरक्षण का प्रावधान किया है जबकि संविधान इसका प्रावधान ही नहीं करता और इसीलिए यह असंवैधानिक विधेयक है।

 

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि देश में बिना आरक्षण के ही राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, देश के प्रधान न्यायाधीश और मुख्य निर्वाचन आयुक्त जैसे संवैधानिक पदों तक अल्पसंख्यक समुदाय के लोग पहुंचे हैं। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 253 के तहत लाए जाने के कारण यह देश के संघीय ढांचे पर प्रहार करेगा और जिन 18 राज्यों में पहले से ही प्रभावी लोकपाल काम कर रहे हैं वहां यह उन्हें ध्वस्त कर देगा। सुषमा ने कहा कि केन्द्र सरकार खुद इस विधेयक को लेकर भ्रम की स्थिति में है और वह देशभर में हो रहे आंदोलन की बला को अपने सिर से टालने के लिए आनन-फानन में इस विधेयक को पारित कराना चाहती है।

 

सुषमा ने अल्पसंख्यकों को आरक्षण वाले प्रावधान पर कहा कि यह प्रावधान देश में दूसरे विभाजन के बीज बोएगा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने खुद विभाजन की पीड़ा सही है। उन्होंने जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाने की सलाह देते हुए कहा कि वह प्रधानमंत्री को उन्हीं द्वारा सदन में सुनाया हुआ शेर फिर से सुनाना चाहती हैं, ‘तारीख की आंखों ने वो दिन भी देखे हैं, लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पायी।’ उन्होंने कहा, ‘आज देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अल्पसंख्यक समुदाय से हैं। इस पद पर वह इसलिए नहीं हैं कि वह अल्पसंख्यक समुदाय से हैं बल्कि वह ‘सर्वश्रेष्ठ हिंदुस्तानी’ हैं इसलिए इस पद पर हैं।’

 

सुषमा ने कहा कि यह विधेयक तमाम तरह की विसंगतियों से भी भरा हुआ है। मांग केन्द्रीय जांच ब्यूरो को अधिक स्वायत्तता देने की थी लेकिन विधेयक में स्वायत्तता देना तो दूर बल्कि उसके चार चार बॉस बना दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि सीबीआई तो शिकंजे से बाहर निकल नहीं सकी, उल्टा लोकपाल शिकंजे में आ गया।
उन्होंने कहा कि लोकपाल विरोधाभासी भी है। इसे अपना सचिव तक नियुक्त करने का अधिकार नहीं है और दूसरी ओर यह सांसद के खिलाफ आरोप पत्र तय हेाने के संबंध में लोकसभा अध्यक्ष से रिपोर्ट मांगेगा?

 

प्रधानमंत्री को लोकपाल में लाने के बारे में सुषमा ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि सरकार प्रधानमंत्री को पूरे कवच कुंडल के साथ इसमें लायी है। उन्होंने कहा कि सरकार में हिम्मत है तो साफ-साफ कहे अन्यथा दिखावा ना करे। सुषमा ने आरोप लगाया कि सरकार बला टालने के लिए यह विधेयक लायी है क्योंकि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को बजट बनाना है और अन्ना के आंदोलन को टरकाना है।

 

उन्होंने कहा कि सरकार या तो उनके संशोधनों को स्वीकार करे, अन्यथा नया विधेयक लाए ताकि देश में मजबूत लोकपाल की स्थापना की जा सके। उन्होंने कहा कि कोई जल्दबाजी नहीं है, सरकार दो-तीन महीने का समय ले लेकिन ऐसा लोकपाल विधेयक पारित नहीं हो जिससे मौजूदा व्यवस्था ही ध्वस्त हो जाए।

First Published: Tuesday, December 27, 2011, 23:39

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