Last Updated: Wednesday, November 28, 2012, 19:08
नई दिल्ली : गुजरात में राज्यपाल कमला बेनीवाल द्वारा न्यायमूर्ति (अवकाशप्राप्त) आरके मेहता को लोकायुक्त नियुक्त किए जाने पर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की आपत्ति को ‘वाजिब’ बताते हुए एक गैर सरकारी संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि पूर्व न्यायाधीश ने अपनी नियुक्ति के पहले राज्य सरकार के खिलाफ सार्वजनिक टिप्पणी की थी।
वरिष्ठ वकील सोली जे सोराबजी के जरिए अहमदाबाद के एनजीओ नेशनल कांसिल फॉर सिविल लिबर्टीज (एनसीसीएल) ने कथित उदाहरणों का जिक्र करते हुए आशंका जतायी कि न्यायमूर्ति मेहता ‘निष्पक्षता’ के साथ अपना काम नहीं कर पाएंगे। सोराबजी ने न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि न्यायमूर्ति मेहता ने राज्य सरकार की कथित ‘गलत नीतियों’ की आलोचना करते हुए टिप्पणी की थी। न्यायमूर्ति मेहता एनजीओ सेंटर फॉर सोशल जस्टिस के ट्रस्टी भी हैं।
एनसीसीएन ने दलील दी कि एक पैनल के सदस्य के रूप में पूर्व न्यायाधीश ने 2002 के दंगा प्रभावित लोगों के पुनर्वास की अपनी जिम्मेदारी पूरी करने पर सरकार की आलोचना की थी। सोराबजी ने कई उदाहरणों का जिक्र करते हुए पीठ से कहा कि न्यायमूर्ति मेहता के निष्पक्षता के साथ काम करने के संबंध में मुख्यमंत्री की आशंका वाजिब हो सकती है। वकील उन्मेश शुक्ला इस मामले में सोराबजी के सहायक हैं।
एनजीओ और राज्य सरकार ने गुजरात उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है जिसमें राज्यपाल द्वारा मेहता को लोकायुक्त नियुक्त किए जाने के फैसले को कायम रखा गया था। केंद्र ने दलील दी कि उच्च न्यायालय के आदेश में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए और राज्य सरकार तथा एनजीओ द्वारा दाखिल अपील में कोई गुण नहीं है। एनसीसीएल ने आरोप लगाया कि लोकायुक्त के पिछले आचरण से उनका राज्य सरकार के खिलाफ पूर्वाग्रह प्रदर्शित होता है।
इसके पहले एनजीओ ने एक लिखित बयान में दलील दी थी कि राज्य के लोकायुक्त पद पर न्यायमूर्ति मेहता की नियुक्ति ‘कानून का उल्लंघन’ और ‘मंत्रिस्तरीय सलाह की अवज्ञा’ है। राज्य सरकार ने दलील दी थी कि राज्यपाल को मंत्रिमंडल की सलाह पर फैसला करना होता है और लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए सरकार की सहमति जरूरी है। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, November 28, 2012, 19:08