Last Updated: Monday, March 5, 2012, 05:29
नई दिल्ली: लघु आम चुनाव माने जा रहे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर तथा गोवा विधानसभा चुनाव के मतों की गिनती मंगलवार को यानी 6 मार्च को होगी ।
मतों की गिनती का काम सुबह आठ बजे शुरू होगा और पहला परिणाम पहले एक दो घंटे में तथा बाकी सभी परिणाम शाम तक आने की संभावना है ।
यह चुनाव पांचों विधानसभा की कुल 690 सीटों पर उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे जिनमें उत्तर प्रदेश की 403, पंजाब की 117, उत्तराखंड की 70, मणिपुर की 60 तथा गोवा की 40 सीटें शामिल हैं ।
2009 में हुए पिछले लोकसभा चुनाव तथा 2014 में होने वाले अगले लोकसभा चुनाव के बीच हुए इन विधानसभा चुनावों को संप्रग और राजग के लिए सेमी फाइनल की तरह माना जा रहा है ।
एक के बाद एक विवादों में घिरी कांग्रेस इन चुनावों के जरिए अपनी छवि को बेहतर बनाने के प्रयास में है जबकि विपक्ष इन चुनावों को वर्ष 2014 के आम चुनाव की तैयारियों के रूप में देख रहा है ।
कांग्रेस का इन चुनावों को लेकर बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है । ममता बनर्जी जैसे सहयोगी पार्टी के दबाव और लगातार आंख दिखाने से परेशान कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में फिर से जड़े जमाने के लिए इस बार कड़ी मेहनत की है ।
उत्तरराखंड में सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के लिए पूरा जोर लगा रही भाजपा के लिए भी राह आसान नहीं है। प्रदेश में सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने सत्ता संतुलन को थोड़ा कांग्रेस के पक्ष में कर दिया है। राजग की पंजाब में सत्ता में बने रहने की डगर भी इस उतनी आसान नहीं लग रही है ।
मायावती के गढ़ माने जाने उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी ने इस बार कांग्रेस के लिए जी जान लगा दी है जहां पार्टी अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के सहयोग से 357 सीटों पर चुनाव लड़ रही है । वर्ष 2007 में प्रदेश में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मात्र 22 सीटें ही जीत सकी थी, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में उसने शानदार प्रदर्शन करते हुए 22 लोकसभा सीटें जीत ली थीं जिससे समाजवादी पार्टी, बसपा और भाजपा को करारा झटका लगा था।
प्रदेश में सत्तारूढ़ बसपा सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि सपा 402, भाजपा 398 और रालोद 46 सीटों पर मैदान में है। एग्जिट पोल में प्रदेश में त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी की गई है, जहां सपा के सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के कयास लगाए जा रहे हैं ।
पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा ने 206 सीटें जीत कर अपने बूते बहुमत हासिल कर राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था । सपा को उस समय 97, भाजपा को 50 तथा भाजपा के सहयोग से मैदान में उतरी रालोद को दस सीटें मिली थीं। निर्दलीय और अन्य 17 सीटें झटकने में कामयाब रहे थे ।
उधर पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस भाजपा. शिरोमणि अकाली दल गठबंधन से सत्ता हथियाती दिख रही है। राज्य में ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि शहरी इलाकों में भाजपा की पकड़ कमजोर होने का पार्टी को खामियाता भुगतना पड़ सकता है । प्रदेश में कांग्रेस ने 117 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं जबकि शिरोमणि अकाली दल ने 94 और भाजपा ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। पिछले विस चुनाव में अकाली दल ने 50 सीटें, कांग्रेस ने 42 , भाजपा ने 19 और निर्दलीयों ने छह सीटें जीती थीं ।
उधर उत्तराखंड में पिछले विधानसभा चुनाव में 70 में से 36 सीटें जीत कर साधारण बहुमत से सत्ता में आयी भाजपा को इस बार कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है ।
चुनाव से पूर्व भाजपा को प्रदेश में अपने मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को बदलना पड़ा और उनकी जगह भुवन चंद्र खंडूरी को कमान सौंपी लेकिन उन्हें पार्टी को संकट से उबारने का पूरा वक्त ही नहीं मिल पाया। अब कल भाजपा का भविष्य वोटिंग मशीनों से निकल कर उसके सामने आ ही जाएगा।
प्रदेश में भाजपा, कांग्रेस और बसपा ने सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ा है । पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 20 सीटें हासिल की थीं जबकि बसपा को केवल आठ सीटों पर संतोष करना पड़ा था। पिछले विधानसभा चुनाव में तीन सीटें हासिल करने वाला उत्तराखंड क्रांति दल इस बार 52 सीटों पर मैदान में था। पिछले चुनाव में तीन सीटें निर्दलीयों के खाते में गयी थीं ।
मणिपुर में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को साधारण बहुमत मिला था और उसने कुल 60 में से 31 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि मणिपुर पीपुल्स पार्टी ने पांच, राकांपा और भाकपा ने चार चार, नेशनल पीपुल्स पार्टी और लालू प्रसाद की राजद ने तीन तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी। निर्दलीयों ने दस सीटों पर कब्जा जमाया था। प्रदेश में कांग्रेस के मुख्यमंत्री इबोबी सिंह को संभवत: इस बार कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ा है, लेकिन एकजुट विपक्ष की गैर मौजूदगी में कांग्रेस को जीत का पूरा भरोसा दिख रहा है। एग्जिट पोल में भी कहा गया है कि कांग्रेस की सत्ता पर पकड़ बरकरार रहेगी।
गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहां चुनाव की तरह ही चुनाव बाद के समीकरण भी काफी मायने रखते हैं। यहां दिगम्बर कामत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार रही है। कांग्रेस का यहां भाजपा के साथ तगड़ा मुकाबला है और दोनों ने ही गठजोड़ किया है। कांग्रेस ने जहां राकांपा का हाथ थामा हुआ है तो भाजपा ने एमजीपी का सहारा लिया है।
प्रदेश में चुनाव प्रचार में अवैध खनन एक मुद्दा रहा है लेकिन स्थानीय स्तर पर यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया क्योंकि दोनों ही पार्टियां इस मामले में खुद के बेदाग होने का दावा नहीं कर सकतीं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 16, भाजपा ने 14, राकांपा ने तीन और एमजीपी, एसजीएफ तथा यूजीडीपी और निर्दलीयों ने दो-दो सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार भी दोनों प्रमुख दलों के बीच ही घमासान होने की संभावना है।
(एजेंसी)
First Published: Monday, March 5, 2012, 16:02