Last Updated: Sunday, January 15, 2012, 07:45
ज़ी न्यूज ब्यूरो नई दिल्ली : ज़ी न्यूज के स्टिंग ऑपरेशन ने वोट के ठेकेदारों को पकड़ा है, जिन पर चुनावी रैलियों और प्रचार के दौरान पैसों के बल पर भीड़ जमा करने की जिम्मेदारी रहती है।
उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनाव से पहले ज़ी न्यूज ने अपनी खास तहकीकात की, जिसमें स्टिंग ऑपरेशन के तहत लोकतंत्र के सबसे घिनौने चेहरे को बेनकाब करने की कोशिश की गई है। कैसे होता है ये सियासत का सौदा, कौन कौन हैं ये सौदागर और कहां कहां तक है इनकी पहुंच? जानिए
ज़ी न्यूज की इस खास रिपोर्ट में जिसमें ऐसे तीन व्यक्तियों की पड़ताल की गई।
सबसे पहले ज़ी न्यूज के रिपोर्टर को मुजफ्फरनगर में दीपक बाल्मिकी नाम का एक व्यक्ति मिला जिससे राष्ट्रीय लंका नाम की एक पार्टी (काल्पनिक नाम) के लिए कुछ ऐसा ही करनो को कहा गया। बातचीत के कुछ अंश-
रिपोर्टर- हमारी पार्टी का नाम राष्ट्रीय लंका पार्टी है। हमारी जनता में बहुत अच्छी पकड़ नहीं है। प्रति एक हजार व्यक्ति पर कितना खर्च आएगा?
एजेंट- कम से कम दो लाख रुपए लगेंगे।
रिपोर्टर- भीड़ जुटाने के लिए कोई दिक्कत तो नहीं होनी चाहिए। रैली की स्लोगन और नारेबाजी लगाने के लिए क्या करना होगा?
एजेंट- हम बाहर से चार-पांच बसों में भीड़ इकट्ठा कर लेंगे और उन्हें नारेबाजी के बारे में सही समय पर समझा भी देंगे।
रिपोर्टर- इस काम के लिए एडवांस में कितनी रकम देनी होगी?
एजेंट- इस तरह के काम के लिए हम एडवांस में पूरी रकम ले लेते हैं।
रिपोर्टर- क्या पूरा पैसा अभी ही ले लोगे?
एजेंट- हां भाई।
रिपोर्टर- भीड़ का उत्साह कौन बढ़ाएगा?
एजेंट- वो आप हम पर छोड़ दीजिए। हंगामा तो लोग करते ही नहीं और ऐसे काम में हाईप्रोफाइल या मिडिल क्लास के लोग तो आएंगे नहीं।
इसी तरह अन्य सभी तरह के इंतजाम करने और रैली में भीड़ का ठेका लेने की बात कही इन एजेंटों ने। गाड़ी से लेकर बैनर पोस्टर का भी बंदोबस्त, सब अडवांस बुकिंग पर निर्भर करता है। यानी जैसी रैली वैसा आयोजन।
First Published: Monday, January 16, 2012, 07:27