`संपादकों की गिरफ्तारी गैर कानूनी, फौरन हो रिहाई`

`संपादकों की गिरफ्तारी गैर कानूनी, फौरन हो रिहाई`

`संपादकों की गिरफ्तारी गैर कानूनी, फौरन हो रिहाई`नई दिल्‍ली : ज़ी न्‍यूज ने बुधवार को अपने दो संपादकों सुधीर चौधरी (ज़ी न्‍यूज) और समीर अहलूवालिया (ज़ी बिजनेस) की कोयला घोटाले के खुलासे से संबंधित एक केस मे हुई गिरफ्तारी को गैर-कानूनी बताते हुए उनकी तुरंत रिहाई की मांग की है।

यहां कंस्‍टीट्यूशन क्‍लब में बुधवार को आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में ज़ी न्‍यूज के सीईओ आलोक अग्रवाल ने कहा कि देश की आजादी के बाद 65 साल में यह दूसरी बार है जब मीडिया पर पाबंदी लगाने की कोशिश की गई है। सरकार का यह कदम आपातकाल का याद दिलाता है। उन्‍होंने कहा कि ज़ी न्‍यूज लिमिटेड अपने दो संपादकों की गिरफ्तारी की घोर निंदा करता है और उनकी शीघ्र रिहाई की मांग करता है।

आलोक अग्रवाल ने इस बात का जिक्र किया कि कैग (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार, कोल ब्‍लॉक आवंटन घोटाले में कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल और उनकी कंपनी जिंदल स्‍टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) मुख्‍य मुख्‍य अभियुक्‍त हैं। सीएजी रिपोर्ट में नवीन जिंदल की कंपनी पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं।

उन्‍होंने खुलासा करते हुए कहा कि नवीन जिंदल की मां सावित्री जिंदल ने ज़ी ग्रुप के एक प्रोमोटर जवाहर गोयल से मुलाकात की और कोयला घोटाले की खबरों को रोकने के लिए पुराने पारिवारिक रिश्‍तों का हवाला देकर उनके ऊपर भावनात्‍मक दबाव भी बनाया। पारिवारिक रिश्‍तों का हवाला देकर खबरों को रुकवाने की कोशिश की गई।

श्री अग्रवाल ने कहा कि हमें दिल्‍ली पुलिस के प्रति सहानुभूति है, जिन्‍हें इस बात का पता है कि ज़ी के इन अधिकारियों के खिलाफ कोई केस नहीं है, लेकिन इसके बावजूद इनके खिलाफ उन्‍हें कार्रवाई करनी पड़ी। उन्‍होंने यह भी कहा कि घंटों तक चली बातचीत में से यदि महज पांच मिनट की बातचीत को लें, तो एक दृष्टि से यह फंसाने वाला हो सकता है।

ज़ी न्‍यूज के सीईओ ने कहा कि चैनल ने कभी इस बात से इनकार नहीं किया कि ज़ी के संपादकों और जिंदल ग्रुप के अधिकारियों के बीच बातचीत हुई। साथ ही, चैनल हमेशा से इस केस में संबंधित अधिकारियों के साथ सहयोग कर रहा है और हम महसूस करते है कि तुरंत गिरफ्तारी को लेकर कोई स्‍पष्‍टीकरण नहीं हो सकता है। ज़ी न्‍यूज ने संपादकों की गिरफ्तारी को प्रेस की आजादी पर भी हमला बताया है। एक तरह से मीडिया को सेंसर करने की कोशिश की गई है।

इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील आरके हांडू ने प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए सवाल किया, `यदि आपने पूरी बातचीत को सुना है, तो इसमें कहीं पर भी कोई पैसा देते हुए दिखाया गया है?` यदि नहीं, तो कैसे इसे उगाही का मामला कहा जा सकता है? हांडू ने यह भी कहा कि यदि जांच में सहयोग किया जा रहा है तो फिर गिरफ्तारी क्‍यों की गई।

हांडू ने कहा कि ज़ी के संपादकों और जेएसपीएल के अधिकारियों की बीच 6 घंटे की बातचीत में सिर्फ 15 मिनट की टेप को दिखाया गया है। यदि आप टेप को इतने कम समय (15 मिनट) कर देंगे तो इसे किसी भी रूप में दर्शाया जा सकता है।

वरिष्‍ठ वकील ने पुलिस से यह जानना चाह कि करीब दो माह के बाद 27 नवंबर को ही गिरफ्तारी क्‍यों की गई, जबकि इस मामले में दो अक्‍टूबर को ही केस दर्ज किया गया था।

हांडू ने सवाल किया कि यह केस अभी विचाराधीन है। दो अक्‍टूबर और 27 नवंबर के बीच लगभग 40 दिन का अंतराल है। यदि वह जांच में शामिल है और सहयोग कर रहे हैं तो फिर 27 नवंबर को अचानक से ऐसा क्‍या हो गया कि संपादकों की गिरफ्तारी की गई?

वरिष्‍ठ वकील ने सवालिया लहजे में यह भी पूछा कि जिंदल समूह ने ज़ी के अधिकारियों के खिलाफ पहले बॉम्‍बे हाईकोर्ट में सिविल सूट और फिर उसके बाद क्रिमिनल केस (आपराधिक मुकदमा) क्‍यों दायर किया? सीनियर वकील हांडू के अनुसार, टेप (बातचीत वाली टेप) पर आई सीएफएसएल रिपोर्ट कोई निर्णायक सबूत नहीं है।

First Published: Wednesday, November 28, 2012, 12:47

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