Last Updated: Wednesday, February 15, 2012, 16:36
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता विरोधी संगठनों से बुधवार को यह स्पष्ट करने को कहा कि किस प्रकार ऐसे कार्य प्रकृति के विरूद्ध हैं जैसी उन्होंने दलील दी है।
न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की पीठ ने कहा कि पिछले 60 साल में संविधान की व्याख्या में परिवर्तन हुआ है और इस मुद्दे को उस नजरिए से देखा जाना चाहिए।
वरिष्ठ वकील अमरेंद्र सरण ने दलील दी कि प्रकृति समलैंगिकता को मान्यता नहीं देती। इस पर पीठ ने कहा, समलैंगिकता क्या है? प्रकृति के खिलाफ क्या है, इसका विश्लेषण करने वाले विशेषज्ञ कौन हैं। न्यायालय ने दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से पेश सरण से इसका विश्लेषण करने को कहा, क्या सरोगेट माताएं और परखनली शिशु प्रकृति के विरूद्ध हैं।
न्यायालय समलैंगिकता विरोधी कार्यकताओं और विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक संगठनों की याचिकाओं की सुनवाई क
र रही थी। इस मामले की सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी। पीठ ने सात फरवरी को इस विवादित मामले में सशस्त्र बलों को पक्ष बनाने से इंकार कर दिया था।
समलैंगिकता के संबंध में उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद कई संगठन जहां इसका समर्थन कर रहे हैं वहीं कई संगठन इसके विरोध में भी हैं। कई राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक संगठनों ने इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय से अंतिम फैसला देने का अनुरोध किया है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता बी पी सिंघल ने उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। उन्होंने ऐसे कार्य को अवैध, अनैतिक और भारतीय संस्कृति के खिलाफ बताया।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॅ बोर्ड, उत्कल क्रिश्चियन कॉसिल जैसे धार्मिक संगठनों ने भी उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध किया है। (एजेंसी)
First Published: Thursday, February 16, 2012, 09:15