सांसदों को अयोग्य करार देने के निर्णय को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची सरकार

सांसदों को अयोग्य करार देने के निर्णय को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची सरकार

सांसदों को अयोग्य करार देने के निर्णय को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची सरकारनई दिल्ली : केन्द्र सरकार ने दोषी ठहराये गये सांसदों और विधायकों को सदस्यता के अयोग्य करार देने और गिरफ्तार व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से वंचित करने संबंधी शीर्ष अदालत के दो ऐतिहासिक निर्णयों पर पुनर्विचार के लिये आज याचिका दायर की।

केन्द्र सरकार ने दलील दी है कि अपील लंबित होने के दौरान दोषी सांसदों और विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने से उनका संरक्षण जरूरी है ताकि ‘सदन को संरक्षित किया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि शासन प्रणाली पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा। शीर्ष अदालत ने 10 जुलाई को अपने फैसले में कहा था कि दो साल या इससे अधिक की सजा वाले किसी भी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया सांसद या विधायक तत्काल प्रभाव से अयोग्य हो जायेगा और जेल या पुलिस की हिरासत में रहने वाला कोई भी व्यक्ति किसी भी विधायी संस्था का चुनाव नहीं लड़ सकता।

न्यायालय ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। इस धारा में प्रावधान था कि एक निर्वाचित प्रतिनिधि अगर अदालत से दोषी ठहराये जाने के तीन महीने के भीतर उपरी अदालत में अपील करता है तो वह अपने पद पर बना रह सकता है। न्यायालय के इस निर्णय का सभी राजनीतिक दलों ने पुरजोर विरोध किया है।

दिलचस्प बात यह है कि सरकार ने निर्वाचित प्रतिनिधियों को संरक्षण देने वाले इस प्रावधान को न्यायोचित ठहराते हुये कहा है कि भारतीय न्याय प्रणाली में अभियुक्तों को बरी करने की दर काफी उंची है और यदि एक बार निर्वाचित प्रतिनिधि को दोषी ठहराये जाने के आधार पर सदन की सदस्यता से अयोग्य कर दिया गया तो फिर बरी होने की स्थिति में उसे बहाल नहीं किया जा सकता है।

याचिका में कहा गया है कि कानून की धारा 8 (4) के अभाव में सदन के सदस्यों को कोई राहत नहीं मिलेगी क्योंकि यह अयोग्यता उसे दोषी ठहराये जाने की तिथि से खत्म नहीं होगी और यदि दोषी ठहराने का निर्णय बदल जाता है तो भी उसकी सदस्यता और सदन से अयोग्यता बहाल नहीं होगी।
केन्द्र ने यह भी कहा है कि शीर्ष अदालत के दो न्यायाधीशों की पीठ ने संवैधानिक मसले पर यह निर्णय करके भूल की है और इन मसलों पर संविधान पीठ को विचार करना चाहिए।

याचिका में कहा गया है, फैसले पर पुनर्विचार के लिये सबसे अहम आधार तो यह है कि एक प्रकरण में इस न्यायालय की संविधान पीठ के फैसले के मद्देनजर यह फैसला नहीं सुनाया जाना चाहिए था। इन मामलों को बड़ी संविधान पीठ के पास भेज देना चाहिए था। याचिका में इसी तरह के मामले में संविधान पीठ के निर्णय का जिक्र करते हुये कहा गया है, इन याचिकाओं को संविधान पीठ के पास सुनवाई के लिये भेजने में विफलता अधिकार क्षेत्र के खिलाफ है और रिकार्ड को देखते हुये ही यह एक गलती लगती है। पुनर्विचार याचिका में जेल या पुलिस की हिरासत में बंद व्यक्ति को चुनाव लड़ने से वंचित करने के शीर्ष अदालत के निर्णय को भी चुनौती दी गयी है लेकिन याचिका में इसे विस्तार से नहीं उठाया गया है।

केन्द्र ने कहा है कि संविधान में यह विनिर्दिष्ट नहीं किया गया है कि किस समय एक व्यक्ति अयोग्य होगा और संसद ही इस बारे में कानून बनाने तथा अयोग्यता को प्रभावित करने को परिभाषित करने में सक्षम है। (एजेंसी)

First Published: Monday, August 12, 2013, 18:51

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