Last Updated: Friday, July 5, 2013, 11:05

सिंगापुर/नई दिल्ली : भारतीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि भारत और चीन के बीच के आपसी संबंधों में लगातार हो रही प्रगति के बावजूद दोनों देश सीमा विवाद से जुड़ों मतभेदों को सुलझाने में कोई जल्दबाजी नहीं करेंगे।
समाचार पत्र द स्ट्रेट टाइम्स में शुक्रवार को छपे एक साक्षात्कार में खुर्शीद ने कहा कि हम अगर तेजी से नहीं तो भी लगतार तरक्की कर रहे हैं। इसलिए मुझे लगता है कि हमें इस मुद्दे को लेकर अचानक सतर्क होने या बेचैन होने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि लेकिन, यह हमें सचेत, सतर्क और सावधान रखता है, क्योंकि हमारा यह संबंध अभी हमारे बीच टकराव का कारण बनने वाले सभी कठिन मुद्दें से पूरी तरह उबर नहीं पाया है।
खुर्शीद ने साक्षात्कार में कहा कि हालांकि दोनों पक्ष इन मसलों को सुलझाने को लेकर दृढ़ हैं, लेकिन हमें यह भी पता है कि अगर आप पूरी तरह तैयार नहीं हैं, तब समझौते की रफ्तार तेज करने में आपकों मदद नहीं मिल पाएगी। दक्षिण-पूर्व एशिया के मुद्दे पर खुर्शीद ने कहा कि भारत की पूर्वोन्मुखी नीति (लुक ईस्ट पॉलिसी) के प्रशांत क्षेत्र तक हुए विस्तार के बावजूद हम उस क्षेत्र में कोई सैन्य अड्डा स्थापित नहीं करने जा रहे, इसकी जगह हम अपने रणनीतिक संबंध मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
इस समाचार पत्र से उन्होंने कहा कि हम ऐसे राष्ट्र नहीं हैं, जो दुनिया के किसी हिस्से की निगरानी करने की इच्छा रखता हो। हम बस अपनी क्षमता के विकास, ज्ञान साझा करने, आपसी व्यापार बढ़ाने और संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण एवं अ5यास करने के इच्छुक हैं। हम बस आसियान के सामूहिक विकास की रफ्तार बढ़ाना चाहते हैं। खुर्शीद ने भारत की तीन विमान वाहक पोत रखने की रणनीति पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि एक प्रायद्वीप होने की वजह से इस देश को दोनों ओर एक-एक पोत और एक पोत रिजर्व के तौर पर चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत के पश्चिमी और पूर्वी किनारों पर लंबी तटरेखा है और इसी वजह से उसे इतने अधिक विमान वाहक पोत चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगर आप के दोनों ओर एक-एक तैनात पोत है और एक रिजर्व में है, तो भी यह बहुत ज्यादा नहीं है। हमें और पोत तो चाहिए, लेकिन जाहिर है हम तीन ही पोतों का खर्च वहन कर सकते हैं, इसलिए हमें इन्हीं तीनों से पूरी सेवा लेनी होगी। खुर्शीद ने यह भी कहा कि भारत की पूर्वोन्मुखी नीति का आसियान और पूर्व एशिया से आगे चीन, जापान और दक्षिण कोरिया तक विस्तार किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमारा ध्यान अभी वास्तव में भारत-प्रशांत संबंधों पर लगा हुआ है। एक बार जब हम एपेक (एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग मंच) में शामिल हो जाएंगे, तो इससे हमें और अधिक अवसर मिलेंगे। (एजेंसी)
First Published: Friday, July 5, 2013, 11:05