Last Updated: Friday, September 6, 2013, 10:28
ज़ी मीडिया ब्यूरो कोलकाता/नई दिल्ली : भारतीय लेखिका सुष्मिता बनर्जी की अफगानिस्तान में उग्रवादियों द्वारा हत्या किए जाने की आलोचना करते हुए बुद्धिजीवियों ने कहा कि उनकी हत्या के माध्यम से तालिबान देश (अफगानिस्तान) की दबी-कुचली महिलाओं के आवाज को दबा नहीं सकता।
लेखक शीर्शेंदु मुखोपाध्याय ने कहा कि यह न सिर्फ बर्बर है बल्कि यह असभ्य भी है। हत्या से यह साबित होता है कि अफगान महिलाओं की बेहतरी के लिए सुष्मिता जो काम कर रही थीं वह तालिबान को पसंद नहीं था। उन्होंने कहा कि लेकिन उनकी हत्या करके उन्होंने सुष्मिता को शहीद बना दिया है। उसका काम क्षेत्र की अन्य महिलाओं को दमन के खिलाफ आवाज उठाने को प्रेरित करेगा।
गौर हो कि अफगानिस्तान में भारतीय लेखिका सुष्मिता बनर्जी की आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। पुलिस के अनुसार 49 साल की सुष्मिता की पक्तिका प्रांत में उनके घर के बाहर हत्या की गई। उन्होंने अफगान कारोबारी जांबाज खान से शादी की थी और हाल ही में उनके साथ रहने के लिए अफगानिस्तान पहुंची थीं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, तालिबानी आतंकी प्रांतीय राजधानी खाराना में उनके घर पहुंचे और उनके पति तथा परिवार के दूसरे सदस्यों को बांध दिया। इसके बाद उन्होंने सुष्मिता को घर से बाहर निकालकर उन्हें गोली मार दी। पुलिस ने बताया कि आतंकवादियों ने सुष्मिता के शव को एक धार्मिक स्कूल के निकट फेंक दिया। किसी संगठन ने उनकी हत्या की जिम्मेदारी नहीं ली है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है कि सुष्मिता पक्तिका प्रांत में स्वास्थ्य कर्मी के तौर पर काम कर रही थीं और अपने काम के तहत ही स्थानीय महिलाओं की जिंदगी पर फिल्म भी बना रही थीं। सुष्मिता ने ‘काबुलीवालार बंगाली बउ’ (एक काबुलीवाले की बंगाली पत्नी) नाम से पुस्तक लिखी थी। उनकी यह पुस्तक 1995 में आई थी। इस पर 2003 में ‘एस्केप फ्रॉम तालिबान’ नामक हिंदी फिल्म बनी थी। फिल्म में मनीषा कोइराला ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपनी इस जीवनी में अपने पति के साथ अफगानिस्तान में जिंदगी एवं आतंकवादियों से बचने का उल्लेख किया था।
सुष्मिता ने अफगानिस्तान में अपने अनुभवों के बारे में एक पत्रिका में लिखा था। वह खान से शादी करने के बाद 1989 में अफगानिस्तान गईं थी। उन्होंने खान से कोलकाता में शादी की थी। उन्होंने लिखा था कि 1993 में तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने से पहले जिंदगी ठीकठाक चल रही थी। पंरतु तालिबान के आने के बाद जिंदगी कठिन हो गई।
तालिबान आतंकवादियों ने उनके द्वारा चलाए जा रहे एक दवाखाना को बंद करने का फरमान सुनाया था और उन्हें ‘कमजोर नैतिकता वाली’ महिला करार दिया था। इसके अलावा उन्होंने तालिबान के चंगुल से भागने और फिर पकड़े जाने तथा लंबी जद्दोजहद के बाद भारत लौटने की कहानी भी बयां की थी।
First Published: Friday, September 6, 2013, 10:28