Last Updated: Saturday, February 9, 2013, 18:03

नई दिल्ली : संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू का इस वारदात को अंजाम दिये जाने से कुछ मिनट पहले तक फिदायी आतंकवादियों से लगातार संपर्क में था और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से यह बात संदेह से परे साबित होती है कि अफजल इस कृत्य की साजिश में शामिल था और उसने सक्रिय भूमिका निभाई थी। यह कहना था उच्चतम न्यायालय का।
शीर्ष अदालत ने 4 अगस्त, 2005 के अपने फैसले में कहा था कि 13 दिसंबर, 2001 को संसद पर हमले से कुछ समय पहले अफजल के मोबाइल फोन पर मोहम्मद नामक आतंकवादी की ओर से पूर्वाह्न 10:43 बजे, पूर्वाह्न 11 बजे और पूर्वाह्न 11:25 बजे फोन आये थे। पीठ ने अपने निष्कर्षों में कहा था कि फोन पर हुई बातचीत के अंशों से साबित होता है कि मोहम्मद ने अफजल से कहा था कि वह अन्य लोगों के साथ मिलकर साजिश को अंजाम देने जा रहा है।
पीठ ने इस बात को भी संज्ञान में लिया कि आतंकवादियों को उत्तर दिल्ली के गांधी विहार तथा इंदिरा विहार में ठिकाना और आसरा देने में अफजल की अहम भूमिका थी। उसने विस्फोटकों को तैयार करने के लिए इस्तेमाल रसायनों की खरीद समेत अन्य साजो.सामान के बंदोबस्त में भी विशेष भूमिका निभाई। संसद परिसर में सुरक्षाकर्मियों के साथ गोलीबारी में मारे गये आतंकवादियों मोहम्मद, हैदर, हम्जा, राणा और राजा के शवों की भी अफजल ने पहचान की थी।
अदालत ने कहा था कि सबूतों से साबित होता है कि केवल अफजल गुरू ही आतंकवादियों और अन्य तीन आरोपियों के साथ संपर्क में था जिनमें दिल्ली विश्वविद्यालय के व्याख्याता एस ए आर गिलानी, अफजल का रिश्ते का भाई शौकत हुसैन गुरू और अफसान गुरू उर्फ नवजोत संधू थे। उच्चतम न्यायालय ने अफजल को दोषी ठहराये जाने और उसे सुनाई गयी मौत की सजा पर मुहर लगाते समय मोबाइल फोन और धन समेत जब्त किये गये सामान को भी संज्ञान में लिया था जो आतंकवादियों की मदद से हवाला के माध्यम से उसे मिला था।
न्यायमूर्ति पी वी रेड्डी और न्यायमूर्ति पी पी नावलेकर ने फैसले में कहा था, ‘‘उपरोक्त परिस्थितियां स्पष्ट रूप से साबित करती हैं कि अपीलकर्ता अफजल गुरू संसद भवन पर हमले का मकसद पूरा करने के लिए आतंकवादियों द्वारा किये गये करीब करीब हर कृत्य में उनके साथ शामिल था।’’ (एजेंसी)
First Published: Saturday, February 9, 2013, 18:03