Last Updated: Tuesday, December 13, 2011, 14:31
भारतीय लोकतंत्र के गढ़ (संसद) पर 13 दिसंबर, 2011 को हमला किया गया था। लेकिन हमारे देश के शूरवीरों ने इस हमले के खिलाफ कार्रवाई में अपनी जान की बाजी लगा दी। इस कार्रवाई में कइयों ने अपने प्राण न्यौछावर किए। किसी भी राजनेता को रत्ती भर नुकसान नहीं पहुंचा। हमारे देश के असली नायकों की एक सूची इस प्रकार है।
जगदीश प्रसाद यादव - 13 दिसंबर, 2001 की सुबह 11 बजे थोड़ी देर चलने के बाद संसद के दोनों सदन स्थगित हो गए थे। संसद में मौजूद सांसद, कर्मचारी और दूसरे लोग आने वाले बड़े खतरे से बेखबर अपने-अपने कामों में मशगूल थे। दूसरी ओर पांच खूंखार आतंकवादी भारत की संप्रभुता पर सबसे बड़े हमले को अंजाम देने के नापाक मंसूबे से संसद की ओर तेजी से बढ़ रहे थे। संसद के वॉच एंड वॉर्ड स्टाफ के श्री जगदीश प्रसाद यादव पूरी मुस्तैदी से ड्यूटी पर तैनात थे।अचानक तेज रफ्तार सफेद एंबेसडर कार गेट के सामने दाईं ओर मुड़ती है। शक होने पर श्री जगदीश प्रसाद यादव को शक होता है। गाड़ी रोकने के लिए वह तेजी से भागते हैं साथ ही वॉकी-टॉकी से साथियों को खबरदार करते हैं। लेकिन उनके सवालों का जवाब आतंकवादी एके-47 की गोलियों से देते हैं। बहादुर जगदीश प्रसाद यादव सीने पर गोली खाकर न्यौछावर हो गए। लेकिन तब तक सुरक्षाकर्मी सतर्क हो चुके थे।
रामपाल सिंह- श्री जगदीश प्रसाद यादव की निडरता से आतंकी हड़बड़ा गए। इसी हड़बड़ी में आतंकवादियों की सफेद एंबेसडर कार तत्कालीन उपराष्ट्रपति का इंतज़ार कर रहीं गाड़ियों के काफिले से टकरा गई। उपराष्ट्रपति के काफिले की गाड़ी के ड्राइवर एएसआई रामपाल सिंह ने आगे बढ़कर एक आतंकी का गिरेबान पकड़ लिया। आतंकवादियों के खतरनाक इरादे और एके 47 की गोलियां भी इस जांबाज सिपाही को नहीं डरा सकीं। जब तक रामपाल के जिस्म में जान रही उन्होंने आतंकियों का बहादुरी से सामना किया।
विजेंद्र सिंह - उपराष्ट्रपति के काफिले के ड्राइवर हेड कॉन्सेटबल विजेंद्र सिंह ने भी साथी रामपाल के साथ आतंकवादियों से भिड़ गए। आतंकवादियों की तनी हुई एके 47 राइफलों के सामने विजेंद्र सिंह साथी रामपाल के साथ पूरी निडरता और बहादुरी से डटे रहे। आतंकवादियों की एके 47 से निकली गोलियों से डरे बिना मुकाबला करते हुए विजेंद्र साथी रामपाल के साथ शहीद हो गए। दोनों जांबाजों की इस बहादुरी से संसद के सुरक्षाकर्मी पूरी तरह से समझ गए कि संसद पर आतंकी हमला हुआ है।
धनश्याम- आतंकवादी आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे। हमारे वीर सिपाही उनके नापाक मंसूबों की राह में लोहे की दीवार बनकर खड़े हो रहे थे। दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल घनश्याम संसद भवन में तत्कालीन उप-राष्ट्रपति की सुरक्षा में तैनात थे। जिस वक्त आतंकवादियों की गाड़ी उपराष्ट्रपति का इंतज़ार कर रही गाड़ियों के काफिले से टकराई, घनश्याम वहीं मौजूद थे। वह तेजी से सफेद अंबेसडर में सवार आतंकवादियों की ओर भागे। उन्होंने आतंकवादियों को ललकारा। आतंकवादियों की गोली की बौछार भी उन्हें रोक नहीं पायी।
ओम प्रकाश- दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल घनश्याम के साथ हेड कांस्टेबल ओम प्रकाश भी मौजूद थे। उन दिनों ओम प्रकाश के बेटे मनोज की तबियत बहुत खराब थी। उन्होंने बेटे से वादा किया था कि जरूरत पड़ी तो अपना खून देकर भी उसकी जान बचाएंगे। लेकिन देश की सबसे बड़ी पंचायत में आतंकवादियों को देखकर उनका खून खौल उठा। साथी घनश्याम के साथ आतंकवादियों की अंधाधुंध गोलियों की बौछार का सामना करते हुए हेड कांस्टेबल ओम प्रकाश ने अंतिम सांस वतन के नाम कर दी।
मातबर सिंह नेगी- संसद के बाहर खुद को घिरता देख आतंकवादी अंधाधुंध फायरिंग करते हुए कार से बाहर आ गए। इस गोलीबारी में संसद के वॉच एंड वॉर्ड स्टाफ के मातबर सिंह नेगी को गोली लग गई। लेकिन बिना इसकी परवाह किए उन्होंने चीते जैसी फुर्ती दिखाते हुए गेट नंबर 11 को बंद कर दिया। अगर नेगी ने वक्त रहते गेट बंद ना किया होता, तो अनर्थ हो जाता। नेगी की चेतावनी पर संसद के तमाम दरवाज़े फौरन बंद कर दिए गए। घायल मतबर सिंह नेगी को अस्पताल ले जाया गया लेकिन 16 दिसंबर की सुबह वह वीरगति को प्राप्त हुए। मरणोपरांत उन्हें अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।
कमलेश कुमारी- संसद के गेट नंबर 1 के पास सीआरपीएफ की 88 महिला बटालियन की कमलेश कुमारी तैनात थीं। अचानक उन्होंने देखा एक आत्मघाती हमलावर गेट नंबर 11 की इमारत की तरफ भाग रहा था। उनके हाथ में सिर्फ वायरलेस सेट था। उन्होंने फौरन ड्यूटी ऑफिसर और गार्ड कमांडर को इसकी सूचना दी। इस बीच आतंकवादी 11 नंबर गेट के काफी करीब पहुंच चुके थे। कमलेश कुमारी बिना वक्त गंवाए चौकी से बाहर आईं और आवाज़ लगाकर साथी सुरक्षा कर्मियों का ध्यान मानव बम की तरफ खींचने लगीं। कमलेश कुमारी की सूझबूझ और सतर्कता से मानव बम तो ढेर कर दिया गया लेकिन वह खुद देश पर कुर्बान हो गईं। मरणोपरांत कमलेश कुमारी को अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।
नानकचंद- आतंकवादी गेट नंबर 11 से संसद भवन में घुसने की फिराक में थे। उन्हें पता था कि इस रास्ते वह संसद में आसानी से घुस सकते हैं लेकिन उनके मंसूबों पर पानी फेरने के लिए दिल्ली पुलिस के जांबाज सिपाही एएसआई नानक चंद मुस्तैद खड़े थे। उन्होंने बड़ी दिलेरी से आतंकवादियों का मुकाबला किया। गोली का जवाब गोली से दिया। आतंकवादियों से लड़ते हुए नानकचंद शहीद हो गए। लेकिन उन्होंने आतंकियों के नापाक मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया।
मनोज कुमार गुप्ता - काबिल अफसर मनोज कुमार गुप्ता यूपी के औरैया में एक्जीक्यूटिव इंजीनियर के पद पर तैनात थे। स्थानीय बीएसपी विधायक शेखर तिवारी उन पर उगाही के लिए दबाव डाल रहा था। लेकिन ईमानदार इंजीनियर मनोज गुप्ता दबंग विधायक की धौंस में नहीं आए। आखिरी दम तक सत्ता के सत्ता के दबंग उन्हें दबाने की कोशिश करते रहे लेकिन उन्होंने फर्ज और ईमानदारी से समझौता नहीं किया। इसकी कीमन उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।
संजय भाटिया- जब हर तरफ सिर्फ भ्रष्टाचार की गंगा बहती दिख रही हो ऐसे में संजय भाटिया जैसे काबिल और ईमानदार अफसर नई उम्मीद जगाते हैं। बतौर महाराष्ट्र के सेल्स टैक्स कमिश्नर संजय भाटिया ने डिपार्टमेंट के बाबुओं के विशेषाधिकार तो खत्म किए ही साथ ही विजिलेंस यूनिट भी गठित कर दी। तबादलों के लिए अलग से एक कमेटी बना दी। इस कमेटी में अगर क्लर्क भी शामिल है तो अपने से बड़े अफसर के तबादले में उसकी राय ली जाएगी। संजय भाटिया की कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी काबिले तारीफ है।
अमित जेठवा- गुजरात के सौराष्ट्र इलाके में अमित जेठवा आम इंसानों और बेजुबानों की आवाज थे। सरकारी अस्पताल में काम करने के अलावा वह इंसानों और बेजुबानों के हक की लड़ाई भी लड़ते थे। 2007 में गिर में रहस्यमय हालात में शेरों की मौत का मामला हो या फिर अवैध खनन का। अमित जेठवा बिना डरे हर मामले को सामने लाए। बेखौफ अमित जेठवा खनन माफिया से जुड़ा एक बड़ा खुलासा करने की तैयारी में थी। लेकिन खनन माफियाओं को इसकी भनक लग गई थी। 20 जुलाई 2010 को सरेआम गुजरात में न्याय के मंदिर हाईकोर्ट के सामने उन पर जानलेवा हमला हुआ। इस हमले में इंसाफ के इस लड़ाका की आवाज हमेशा-हमेशा के लिए गुम हो गई।
उदय दिव्यांशु - नक्सलियों के लिए कोबरा का मतलब है खौफ। इसकी वजह है कोबरा टीम में शामिल जांबाज। पश्चिमी मिदनापुर में तैनात ऐसे ही एक कोबरा टीम को पास के जंगलों में नक्सली कमांडर सिद्धू सोरेन के होने की सूचना मिली। खबर मिलते ही डिप्टी कमांडेंट उदय दिव्यांशु इस जोखिम भरे आपरेशन में जुट गए। 202 कोबरा कमांडो की टीम कई हिस्सों में बंटकर आपरेशन में जुट गई। आखिरकार जांबाज उदय दिव्यांशु के कुशल नेतृत्व में उनकी टीम ने नक्सली कमांडर सिद्धू सोरेन को मार गिराया और पीछाकर नक्सलियों को सरेंडर करने को मजबूर कर दिया।
आशीष तिवारी- उदय दिव्यांशु ने भले ही एक सफल आपरेशन को अंजाम दिया लेकिन वह इसका जश्न नहीं मना पाए क्योंकि नक्सली कमांडर सिद्धू सोरेन के खिलाफ आपरेशन में उन्होंने अपने एक बहादुर सिपाही आशीष तिवारी को खो दिया।
एमएस राठौर - एमएस राठौर का नाम बीएसएफ के उन चुनिंदा अधिकारियों में शुमार है, जिनकी बहादुरी एक मिसाल बन गई है। बीएसएफ के डीआईजी के तौर पर उन्होंने जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ कई आपरेशनों को अंजाम दिया। अन्य पुरस्कारों के अलावा, उन्हें राष्ट्रपति के पुलिस पदक से भी नवाजा गया है।
First Published: Tuesday, December 13, 2011, 22:02