जयललिता 16 मई को पूरा करेगी दो साल का कार्यकाल

16 मई को जयललिता सरकार के दो साल होंगे पूरे

चेन्नई : कावेरी न्यायाधिकरण के फैसले के अधिसूचित किए जाने और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले कई लोकलुभावन कदमों से लैस होकर तमिलनाडु की जयललिता सरकार आगामी 16 मई को दो साल का कार्यकाल पूरा कर लेगी और तब उसका तीसरा साल शुरू होगा । अन्नाद्रमुक केंद्र में महती भूमिका पर नजर गड़ाए है।

साल 2007 के कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के अंतिम फैसले को केंद्रीय राजपत्र में अधिसूचित करवाने को जयललिता के करियर में सर्वाधिक ऐतिहासिक लम्हे के तौर पर देखा जा रहा है। न्यायाधिकरण के फैसले में अंतरराज्यीय नदी जल का बड़ा हिस्सा तमिलनाडु को देने को कहा गया है।

उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर केंद्र ने फरवरी में उस फैसले को अधिसूचित किया था। इसमें कावेरी नदी के जल को कर्नाटक, तमिलनाडु, पुडुचेरी और केरल के बीच बांटने का निर्देश दिया गया था।

बिजली की किल्लत की सबसे बड़ी चुनौती का सामना करने के बावजूद साल 2011 के बाद हुए तीन उपचुनाव में अन्नाद्रमुक प्रमुख ने अपनी पार्टी को जीत दिलाई। इसी मुद्दे पर दो साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में चिर प्रतिद्वंद्वी द्रमुक को धूल चटाने के बाद उनकी पार्टी सत्ता में आई थी।

जयललिता ने साफ कर दिया है कि अन्नाद्रमुक आगामी लोकसभा चुनाव में न तो कांग्रेस से और न ही भाजपा के साथ चुनावी गठबंधन करेगी।

केंद्र में व्यापक दखल की अपनी महत्वाकांक्षा को साफ करते हुए उन्होंने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया है कि वे सभी 40 सीटों (तमिलनाडु की 39 और पुडुचेरी की एक लोकसभा सीट) को अन्नाद्रमुक के खाते में लाने के लिए काम करें।
जयललिता के लिए संप्रग सरकार के साथ मोलभाव करना हमेशा मुश्किल रहा क्योंकि श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर हाल में केंद्र सरकार से समर्थन वापसी से पहले तक द्रमुक संप्रग का घटक रही। जयललिता ने किरासन तेल कोटा से लेकर चावल आवंटन तथा श्रीलंकाई तमिलों से लेकर मछुआरों पर हमले समेत विभिन्न मुद्दों पर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा।

बिजली की किल्लत सरकार के लिए अब भी परेशानी का सबब बनी हुई है। चेन्नई को छोड़कर समूचे राज्य में प्रतिदिन 10 घंटे से अधिक बिजली की कटौती होती है। इसी मुद्दे पर विपक्ष सरकार को घेरने की कोशिश में लगा हुआ है।

यद्यपि जयललिता बिजली उत्पादन को बढ़ाने के लिए पूर्ववर्ती द्रमुक सरकार के दूरदृष्टि के अभाव को जिम्मेदार ठहरा रही है, वहीं द्रमुक प्रमुख एम करुणानिधि ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है।

हालांकि, कई परियोजनाओं पर काम चल रहा है और सरकार ने विश्वास जताया है कि वह साल 2014 से पहले संकट से पार पा लेगी।

हालांकि, विपक्ष के बंटे होने की वजह से सरकार को श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर आंदोलन को छोड़कर किसी बड़े आंदोलन का सामना नहीं करना पड़ा है। यह द्रमुक है जिसे श्रीलंकाई तमिलों की दुर्दशा को लेकर आलोचना का सामना करना पड़ा क्योंकि संकट जब चरम पर था तो उस समय वह संप्रग का हिस्सा थी।

तमिलनाडु के मछुआरों के अधिकार के प्रति केंद्र की ओर से की गई ‘अनदेखी’ के लिए उसकी आलोचना करते हुए जयललिता ने कच्चातिवू को वापस लेने का मुद्दा उठाया है। पाक जलडमरूमध्य स्थित इस द्वीप को भारत ने 1976 में श्रीलंका को दे दिया था। श्रीलंकाई मछुआरों को कथित तौर पर बार-बार श्रीलंकाई नौसेना के हमले का सामना करना पड़ रहा है। (एजेंसी)

First Published: Tuesday, May 14, 2013, 18:09

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