Last Updated: Monday, February 25, 2013, 19:43
नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में विवादित स्थल के निकट स्थित 67 एकड़ भूमि की यथास्थिति में किसी प्रकार का बदलाव किये बगैर ही प्रशासन को रामलला के अस्थाई मंदिर का तिरपाल बदलने की आज अनुमति दे दी। न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की खंडपीठ ने कहा कि दो पर्यवेक्षकों की देखरेख में अस्थाई मंदिर का मौजूदा तिरपाल और रस्सियों के आकार के समान ही नयी सामग्री लेकर तिरपाल और रस्सियां बदली जायें।
न्यायाधीशों ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा मार्च, 2003 में बतौर कमिशनर नियुक्त किये गये दो न्यायिक अधिकारी पर्यवेक्षक के रूप में इस काम की निगरानी करेंगे। उच्च न्यायालय को अयोध्या की स्थिति के बारे में ताजा स्थिति से अवगत कराने के लिये इन अधिकारियों की नियुक्ति की गयी थी। न्यायालय ने कहा कि इसके अलावा ये अधिकारी यह भी देखेंगे कि यथास्थिति बनाये रखने के आदेश का भी पालन हो। न्यायालय ने इन दो अधिकारियों को बतौर कमिशनर सौंपी गयी जिम्मेदारी से मुक्त करने का उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार का अनुरोध अस्वीकार कर दिया।
रजिस्ट्रार ने इस संबंध में एक अर्जी दाखिल की थी जिसमें कहा था कि अयोध्या में विवादित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद का मसला अब शीर्ष अदालत में लंबित है, इसलिए उच्च न्यायालय द्वारा कमिशनर नियुक्त किये गये इन दो अधिकारियों को उनकी जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया जाये। न्यायाधीशों ने यह भी स्पष्ट किया कि अब इस मामले में किसी भी अन्य व्यक्ति को पक्षकार बनाने की अनुमति नहीं दी जायेगी और वह सिर्फ उन्हीं पक्षों को सुनेंगे जो इस समय रिकार्ड में हैं।
शीर्ष अदालत ने 28 जनवरी को भी कहा था कि अयोध्या में विवादित स्थल के आसपास खुदाई की गतिविधियों के दौरान इस स्थल से सटी 67 एकड़ की भूमि के मामले में यथास्थिति के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की जाये। फैजाबाद जिले के आयुक्त ने यह भी कहा था कि अस्थाई मंदिर का तिरपाल और रस्सियां बदलने के लिये शीर्ष अदालत की अनुमति जरूरी है।
शीर्ष अदालत ने अयोध्या में विवादित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद स्थल को तीन हिस्सों में विभक्त करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर तमाम याचिकायें विचारार्थ स्वीकार कर ली थी। न्यायालय ने इसके साथ ही 30 सितंबर, 2010 को उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी थी।
शीर्ष अदालत ने नौ मार्च 2011 को विवादित स्थल को तीन हिस्सों में विभक्त करने के उच्च न्यायालय के फैसले को बड़ा विचित्र बताते हुये इसके अमल पर रोक लगा दी थी क्योंकि किसी भी पक्ष ने विवादित स्थल के बंटवारे का अनुरोध ही नहीं किया था।
शीर्ष अदालत ने यथास्थिति बनाये रखने का आदेश देते हुये 67 एकड़ भूमि पर किसी भी प्रकार की धार्मिक गतिविधियों के आयोजन पर रोक लगा दी थी। इस भूमि को सरकार ने अपने हाथ में ले लिया है। इस मामले में सभी पक्षों ने उच्चतम न्यायालय के नौ मई, 2011 के आदेश पर संतोष व्यक्त किया था। (एजेंसी)
First Published: Monday, February 25, 2013, 19:43