Last Updated: Tuesday, July 16, 2013, 14:51

देहरादून : उत्तराखंड में गत 17 जून को आए जलप्रलय से हुई तबाही के एक माह बीत चुके हैं, लेकिन राज्य में हालात अभी तक जस के तस हैं। प्रदेश सरकार के सामने प्रभावित इलाकों तक राहत पहुंचाना ही केवल एक समस्या नहीं है बल्कि 5748 गुमशुदा लोगों की तलाश, मुआवजा या आर्थिक सहायता तथा राहत सामग्री बांटना, केदारनाथ से शवों को निकालना और मलबा साफ करना, पुनर्वास और पुनर्निर्माण करना और चारधाम यात्रा दोबारा शुरू करना भी किसी हिमालयी चुनौती से कम नहीं है।
आज से ठीक एक महीना पहले, 15-16 जून को हुई मूसलाधार बारिश के बाद 17 जून को उत्तराखंड की केदार घाटी तथा अन्य इलाकों में आए जलसैलाब से प्रलय जैसे हालात बन गए थे। इस प्राकृतिक आपदा में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, करीब 580 लोगों की जान चली गई और हजारों अन्य बुरी तरह प्रभावित हुए।
इस आपदा के बाद केंद्र सरकार ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए सेना, वायुसेना, भारत तिब्बत सीमा पुलिस और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स) के जवानों की मदद से करीब एक लाख 17 हजार लोगों को चारधाम यात्रा इलाकों से सुरक्षित बाहर निकाल लिया। बचाव कार्यों के दौरान करीब 20 वायुसेना कर्मियों तथा अन्य बलों के जवानों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी।
इससे पहले, हालांकि शुरुआती दो तीन दिनों में आपदा की गंभीर स्थिति का आंकलन करने और प्रभावी कदम उठाने में चूक गई प्रदेश सरकार को आलोचना भी झेलनी पड़ी थी। जानकारों का मानना है कि सरकार के लिए आगामी दो तीन साल पहाड़ जैसी चुनौतियों से भरे हैं जिनमें पुनर्वास और पुनर्निर्माण का काम सबसे मुश्किल है। स्वयं मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा इस बात को स्वीकार करते हैं कि उनकी सरकार उत्तराखंड में हर दिन चुनौतियों से जूझ रही है। आपदा से जूझ रहे प्रदेश को अभी तक केंद्र सरकार, राज्य सरकारों तथा अन्य स्रोतों से आर्थिक सहायता भी भरपूर मिल रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1000 करोड़ रुपये का विशेष पैकेज आपदा के तुरंत बाद ही घोषित कर दिया था।
इसके अलावा, सरकार को एशियाई विकास बैंक तथा अन्य संस्थाओं से भी 6000 से 7000 करोड़ रूपये मिलने की भी उम्मीद है। पुनर्वास के मामले में राज्य के कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य का मानना है कि प्रदेश के करीब 240 गांवों के पुनर्वास की आवश्यकता है। इसके लिए एक प्रस्ताव केंद्र को भेजा जा रहा है। इसके अलावा, आपदा के बाद बिल्कुल छिन्न-भिन्न हो गए मार्गों का पुनर्निर्माण करना भी एक चुनौती बनी हुई है। हालांकि केंद्र ने हाल ही में सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) को इस काम के लिए 300 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं। गढ़वाल की आर्थिकी की रीढ़ मानी जाने वाली चारधाम यात्रा को दोबारा जल्द शुरू करना भी सरकार की प्राथमिकता में है और मुख्यमंत्री बहुगुणा ने भरोसा दिलाया है कि 30 सितंबर से पहले केदारनाथ के अलावा अन्य तीन धामों बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा पुन: आरंभ कर दी जाएगी।
आपदा से सबसे ज्यादा प्रभावित केदारनाथ धाम के बारे में भी बहुगुणा का कहना है कि उसके लिए एक वैकल्पिक मार्ग सेना की मदद से तलाशा जा रहा है। इसके अलावा, क्षतिग्रस्त हो गए केदारनाथ के मूल स्वरूप को लौटाने के लिए पुरातत्व और भूगर्भीय वैज्ञानिकों की सहायता से काम प्रारंभ हो चुका है। खराब मौसम की वजह से केदारनाथ से शवों को निकालने में भी काफी दिक्कतें आ रही हैं। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, July 16, 2013, 14:51