Last Updated: Monday, December 12, 2011, 10:57
अहमदाबाद : गुजरात के दूरदराज के कुछ इलाकों में इस अंधविश्वास के चलते बीमार बच्चों को लोहे की गर्म रॉड गर्म कीलों तारों और सुलगती छड़ों से दागा जाता है कि इससे उनका दुख दूर हो जाएगा। कच्छ जिले के वागड इलाके और राजकोट जिले के कुछ दूरस्थ क्षेत्रों में यह अमानवीय कृत्य होता है और इसके शिकार होने वाले ज्यादातर शून्य से 15 साल तक के बच्चे होते हैं।
डॉक्टर राजेश जेसवानी ने बताया, ‘कुछ दिन पहले मेरे पास पांच साल की एक लड़की का मामला आया जिसे पेट पर 15 बार लोहे की रॉड से दागा गया था क्योंकि वह बुखार से पीड़ित थी। पांच दिन तक उसका गहन उपचार करना पड़ा।’ वागड की रापड़ और भाचाउ तालुका के लगभग 100 गांवों में पिछड़े वर्ग कोली और भारवड तथा मुस्लिम समुदाय में फैली इस बुराई के खिलाफ जेसवानी पिछले 18 साल से लड़ाई लड़ रहे हैं। जेसवानी ने कहा ‘यह अमानवीय और क्रूर मध्यकालीन परंपरा है जो इस क्षेत्र में सालों से फैली है। इसमें बच्चे को दर्दनाक तरीके से दागा जाता है। बच्चा पहले से ही बीमारी से ग्रस्त होता है और इसके अलावा उसे एक बार से अधिक दागे जाने का परिणाम न सिर्फ अतिरिक्त दर्द बल्कि युवा मन पर स्थाई मनोवैज्ञानिक और शारीरिक छाप के रूप में पड़ता है।’
जिले के गांधीधाम नगर स्थित उनके अस्पताल में हर महीने इस तरह के पांच-छह मामले आते हैं। क्षेत्र में काम रहे अन्य डॉक्टरों के पास भी ऐसे मामले आते हैं। इस तरह ऐसे मामलों की संख्या काफी अधिक है। इस परंपरा के बारे में पूछे जाने पर कच्छ के जिला कलेक्टर एम थेनारसन ने कहा, ‘मुझे इस तरह की किसी घटना की जानकारी नहीं है। क्योंकि यह संज्ञान में लाई गई है हम जांच करेंगे और आवश्यक कार्रवाई करेंगे।’ (एजेंसी)
First Published: Monday, December 12, 2011, 16:27