Last Updated: Tuesday, March 19, 2013, 16:29

चेन्नई : तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने मंगलवार को केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार से द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) नेता एम. करुणानिधि के नाता तोड़ने की घोषणा की आलोचना करते हुए कहा कि उन्हें यह कदम वर्ष 2009 में तभी उठाना चाहिए था जब लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) का समूल नाश किया गया था। करुणानिधि पर पहले की गई बड़ी भूल को छिपाने का आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री ने कहा वे उस समय विफल रहे थे जब कोलंबो की सेना ने एलटीटीई को जड़ से उखाड़ फेंका था।
उन्होंने कहा कि करुणानिधि की योजना सिरे नहीं चढ़ सकती और तमिलनाडु की जनता उन्हें सबक सिखाएगी। लोग करुणानिधि के इस तरह के नाटकों से तंग आ चुके हैं। श्रीलंका के खिलाफ संसद में निंदा प्रस्ताव लाने की करुणनिधि की मांग की आलोचना करते हुए जयललिता ने कहा कि यह काम केवल संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में अमेरिका की ओर से लाए जा रहे प्रस्ताव में संशोधन के जरिए किया जाना चाहिए।
जयललिता ने कहा कि जब यूएनएचआरसी में श्रीलंका के खिलाफ कठोर प्रस्ताव पारित होगा तभी श्रीलंका सरकार के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। उनके मुताबिक 2009 में जब श्रीलंका में संघर्ष चरम पर था तब करुणानिधि तमिलनाडु में सत्ता में थे और डीएमके केंद्र सरकार में साझीदार थी। उस समय करुणानिधि ने कुछ भी नहीं किया। उन्होंने कहा कि तब तो करुणनिधि ने न तो समर्थन वापस लिया था और न ही केंद्र सरकार से बाहर निकले थे।
जयललिता की ही भाषा में बात करते हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता टी.के. रंगराजन ने कहा कि दो बार केंद्र में सत्ता सुख भोग लेने के बाद डीएमके प्रमुख ने खुद को तमिलों का हीरो साबित करने के लिए समर्थन वापसी की घोषणा की है। रंगराजन ने कहा कि करुणानिधि का एजेंडा अगला लोकसभा चुनाव लड़ना है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, March 19, 2013, 16:29