जानें, तेलंगाना आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य| Telangana agitation

जानें, तेलंगाना आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

जानें, तेलंगाना आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य हैदराबाद : आंध्र प्रदेश का संक्षिप्त इतिहास और तेलंगाना राज्य के गठन के लिए आंदोलन का घटनाक्रम इस प्रकार है-अभी जिस क्षेत्र को तेलंगाना कहा जाता है वह कभी हैदराबाद प्रांत का हिस्सा था, जिसका 17 सितंबर 1948 को भारत में विलय हो गया।

केंद्र सरकार ने नौकरशाह एमके वेल्लोडी को 26 जनवरी 1950 को हैदराबाद प्रांत का प्रथम मुख्यमंत्री नियुक्त किया। आंध्र पहला राज्य था जिसे ‘मद्रास प्रांत’ (जो अब नहीं है) से भाषाई आधार पर अलग कर एक नवंबर 1953 को गठित किया गया। नये राज्य के गठन की मांग को लेकर 53 दिनों तक आमरण अनशन पर बैठे पोट्टी श्रीमालु की मृत्यु के बाद इसका गठन हुआ जिसकी राजधानी कर्नूल शहर था जो रॉयलसीमा क्षेत्र में पड़ता है।

हैदराबाद प्रांत को आंध्र राज्य में मिलाने का प्रस्ताव 1953 में पेश किया गया और तत्कालीन हैदराबाद प्रांत के तत्कालीन मुख्यमंत्री बरगुला रामकृष्ण राव ने इस सिलसिले में कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व के फैसले का समर्थन किया जबकि तेलंगाना क्षेत्र में इस फैसले का विरोध हो रहा था। विलय प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए आंध्र विधानसभा ने 25 नवंबर 1955 को तेलंगाना के हितों की सुरक्षा करने का वादा किया।

तेलंगाना के हितों की सुरक्षा करने के वादे के साथ तेलंगाना और आंध्र का विलय करने के लिए 20 फरवरी 1956 को तेलंगाना नेताओं तथा आंध्र नेताओं के बीच एक समझौता हुआ। बेजवाडा गोपाल रेड्डी और बरगुला रामकृष्ण राव ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किया।

फिर, राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत हैदराबाद प्रांत के तेलगू भाषी इलाकों को आंध्र के साथ मिला दिया गया और 1 नवंबर 1956 को आंध्र प्रदेश राज्य बना। हैदराबाद प्रांत की तत्कालीन राजधानी हैदराबाद शहर को आंध्र प्रदेश राज्य की राजधानी बनाया गया।

1969 में तेलंगाना क्षेत्र में एक आंदोलन शुरू हुआ क्योंकि लोगों ने समझौते को लागू करने और अन्य सुरक्षाओं को उपयुक्त रूप से लागू करने में नाकामी को लेकर प्रदर्शन किया। मारी चन्ना रेड्डी ने तेलंगाना प्रजा समिति गठित कर अलग राज्य के गठन का समर्थन किया। आंदोलन ने जोर पकड़ा और हिंसक हो गया। छात्रों ने आंदोलन में बढ़ चढ़ कर भाग लिया और उनमें से करीब 300 हिंसा तथा पुलिस गोलीबारी में मारे गए।

दोनों क्षेत्रों के नेताओं के बीच कई दौर की वार्ताओं के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 12 अप्रैल 1969 को एक आठ सूत्री योजना पेश की। लेकिन तेलंगाना के नेताओं ने योजना को खारिज कर दिया और तेलंगाना प्रजा समिति के तहत आंदोलन जारी रहा।

तेलंगाना संघर्ष के विरोध में आंध्र, रॉयलसीमा क्षेत्र में 1972 में ‘जय आंध्र’ आंदोलन शुरू हुआ। 21 सितंबर 1973 को केंद्र के साथ एक राजनीतिक समझौता हुआ और दोनों क्षेत्रों के लोगों को शांत करने के लिए छह सूत्री फार्मूला पेश किया गया।

1985 में तेलंगाना क्षेत्र के कर्मचारियों ने सरकारी विभागों में नियुक्तियों को लेकर हंगामा किया और क्षेत्र के लोगों के साथ हुए ‘अन्याय’ के बारे में शिकायत की। तत्कालीन तेलगू देशम पार्टी (तेदपा) सरकार का नेतृत्व कर रहे एनटी रामाराव ने सरकारी नौकरियों में तेलंगाना के लोगों के हितों की सुरक्षा के लिए एक सरकारी आदेश जारी किया।

1999 तक क्षेत्रीय आधार पर राज्य के विभाजन की किसी हलके से कोई मांग नहीं थी। 1999 में कांग्रेस ने अलग तेलंगाना राज्य के गठन की मांग की। कांग्रेस उस वक्त राज्य विधानसभा और लोक सभा चुनावों में एक के बाद एक मिली हार का सामना कर रही थी। फिर के. चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना के लिए संघर्ष का एक नया अध्याय शुरू किया। वह चंद्रबाबू नायडू सरकार में कैबिनेट मंत्री का पद नहीं मिलने को लेकर तिलमिलाए हुए थे। उन्होंने तेदपा छोड़ दी और 27 अप्रैल 2001 को तेलंगाना राष्ट्र समिति के नाम से नई पार्टी बनाई।

तेलंगाना कांग्रेस नेताओं के दबाव बनाए जाने पर कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने 2001 में तत्कालीन राजग सरकार को एक प्रस्ताव भेजकर द्वितीय राज्य पुनर्गठन आयोग बनाए जाने की मांग की ताकि तेलंगाना राज्य की मांग पर गौर किया जा सके। हालांकि, इसे तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने खारिज करते हुए कहा कि देश की अखंडता के लिए छोटे राज्य न तो व्यवहार्य हैं और न ही सहायक हैं।

टीआरएस ने अलग राज्य के गठन के लिए धीरे धीरे आंदोलन को धार देना शुरू किया। कांग्रेस ने अलग तेलंगाना राज्य के गठन का वादा कर कांग्रेस के साथ एक चुनावी गठजोड़ बनाया। कांग्रेस 2004 में राज्य और केंद्र दोनों जगह सत्ता में आई तथा टीआरएस दोनों स्थानों पर गठबंधन सरकार में शामिल हुई।

अलग राज्य के गठन में देर का विरोध करते हुए टीआरएस दिसंबर 2006 में राज्य और केंद्र दोनों स्थानों पर गठबंधन सरकार से अलग हो गई। अक्तूबर 2008 में तेदपा ने अपना रुख बदला और राज्य के विभाजन का समर्थन करने की घोषणा की। 29 नवंबर 2009 को टीआरएस ने एक अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू करते हुए तेलंगाना के गठन की मांग की। केंद्र सरकार हिल गई और उसने नौ दिसंबर 2009 को घोषणा की कि वह तेलंगाना राज्य के गठन की प्रक्रिया शुरू कर रही है। लेकिन 23 दिसंबर 2009 को केंद्र ने घोषणा की कि वह तेलंगाना मुद्दे को अभी कुछ समय के लिए विचाराधीन रख रही है। इस घोषणा ने समूचे तेलंगाना में प्रदर्शन को तूल दे दिया। कुछ छात्रों ने अलग राज्य की मांग को लेकर अपनी जान दे दी।

केंद्र ने इसके बाद अलग राज्य की मांग पर विचार करने के लिए तीन फरवरी 2010 को पूर्व न्यायाधीश श्रीकृष्ण के नेतृत्व में पांच सदस्यीय एक समिति का गठन किया। समिति ने 30 दिसंबर 2010 को अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंप दी। 2011-12 में तेलंगाना क्षेत्र में ‘मिलियन मार्च’, विधानसभा चलो और सकलाजनुला सम्मे (आम हड़ताल) जैसे सिलसिलेवार आंदोलन हुए ।

कांग्रेस ने केंद्रीय गृहमंत्रालय से 28 दिसंबर 2012 को एक सर्वदलीय बैठक बुलाने को कहा ताकि इस संकट का एक ‘सौहार्दपूर्ण हल’ निकल सके। कांग्रेस कार्य समिति ने पृथक तेलंगाना राज्य के गठन की सिफारिश की। (एजेंसी)

First Published: Tuesday, July 30, 2013, 21:17

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