नदियों को जोड़ना खतरनाक खेल : पाटकर

नदियों को जोड़ना खतरनाक खेल : पाटकर

नदियों को जोड़ना खतरनाक खेल : पाटकर पटना : समाजसेवी मेधा पाटकर ने आज कहा कि बाढ़ और सूखे से निपटने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नदियों को जोड़ने की योजना लोगों से चर्चा किए बिना की गयी पहल है।

नवंबर में केरल में आयोजित होने वाले जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के 9वें द्विवार्षिक राष्ट्रीय अधिवेशन को लेकर आज यहां आयोजित एक सम्मेलन में पाटकर ने कहा कि बाढ़ और सूखे से निपटने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नदियों को जोड़ने की योजना लोगों से चर्चा किए बिना की गई पहल है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से कोसी का बांध बढ़ाने से कोसी नदी से बाढ़ रुकना बेकार साबित हुआ, उसी तरह से नदियों को जोड़ने की योजना भी बेकार साबित हो सकती है।

नदियों को जोड़ने की योजना को एक खतरनाक खेल बताते हुए पाटकर ने कहा कि नीतीश कुमार इस मुद्दे पर लोगों से बातचीत और संवाद करें। उन्होंने कहा कि नदियों को जोड़ने का यह खतरनाक खेल केवल बिहार तक सीमित नहीं रहा फिर तो ब्रह्मपुत्र नदी को गंगा नदी में और गंगा नदी को कावेरी नदी में जोड़ने की बात होगी। पाटकर ने कहा कि ऐसा हो जाने से उत्तर भारत और उत्तर बिहार की नदियों पर वहां के लोगों का अधिकार नहीं रहेगा। उन्होंने कहा कि नदियों को जोड़ने की योजना के बारे में दोनों पक्षों की सुनवाई करने के लिए बिहार विधान परिषद के पूर्व सभापति जाबिर हुसैन ने उन्हें निमंत्रण दिया था।

पाटकर ने नीतीश कुमार को लोगों के साथ संवाद में रूचि रखने की नसीहत देते हुए कहा कि उन्होंने सेज नहीं लाया, लेकिन मुजफ्फरपुर जिले में एसबेस्टस के कारखाने और लगाए गए उद्योग में लोगों द्वारा उठाए गए पर्यावरणीय मुद्दों का जवाब नहीं दिया गया है। मेधा पाटकर ने कहा कि नीतीश कुमार जिस औद्योगिक विस्तार की बात कर रहे हैं, यदि वे लोगों से विचार किए बिना, उनके हितों की अनदेखी करके करेंगे तो हालत वही होगी जो पश्चिम बंगाल की राजनीति की हुई है।

पाटकर ने कहा कि इन योजनाओं पर ख़र्च की जाने वाली जो पूंजी आएगी वह पूंजीपतियों के निवेश के रूप में आएगी और यह जल को निजीकरण की ओर ले जाएगा, जिससे नदियों का पानी उन कंपनियों के पास चला जाएगा। लोग प्यासे के प्यासे रह जाएंगे। देश में भ्रष्टाचार सहित अन्य मुद्दों को लेकर जारी जन आंदोलनों की चर्चा करते हुए सम्मेलन में मौजूद लोगों से पाटकर ने कहा कि आज फिर एक सवाल उठ रहा है कि क्या आप दलीय राजनीति की ओर जाएंगे या गैर चुनावी राजनीति की ओर जाएंगे।

उन्होंने कहा कि इस विषय पर केरल के त्रिचुर में आगामी 17 नवंबर से जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय पर 9वें द्विवार्षिक अधिवेशन में एक खुली चर्चा होगी। पाटकर ने कहा कि चुनावी राजनीति की भी मर्यादा साबित हुई है और जन आंदोलनों की भी अपनी मर्यादा है इसलिए हमारे रास्ते अलग हैं। उन्होंने कहा कि देश को भी एक तरह से डेंगू हो गया है और उसका किसी भी पद्धति से इलाज कर उसे दूर किया जाए ऐसी भावना कई लोगों के मन में है। (एजेंसी)

First Published: Sunday, October 14, 2012, 18:56

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