फागुनी बयार में गीदड़ नृत्य की धूम - Zee News हिंदी

फागुनी बयार में गीदड़ नृत्य की धूम

बीकानेर : हवेलियों, उन पर उकेरे गए सुंदर भित्ति चित्रों तथा उद्योगपतियों के लिए देश-विदेश में ख्यातिनाम शेखावटी अंचल में फागुनी महीने में गीदड़ नृत्य की धूम रहती है। गीदड़ नृत्य के कलाकार नीरज गौड़ के अनुसार, ‘घेरे के बीच में बांसुरी की मधुर धुन, नगाड़े, मंजीरे और चंग की ताल पर नर्तकों की गति राजस्थान की कला और संस्कृति पर गर्व करने को मजबूर कर देती है।

 

गौड़ ने कहा कि गीदड़ नृत्य में कलाकारों के डण्डों के एक साथ टकराव से निकलने वाली लयबद्ध ध्वनि, पैरों की धमक के साथ घुंघरू की छमक और चंग की ताल इस नृत्य शैली में उत्कृष्ट सामंजस्य की झलक पेश करती है। उन्होंने कहा कि यह मात्र नृत्य नहीं बल्कि सांप्रदायिक सद्भाव की अनोखी मिसाल भी है, यही कारण है कि इसमें अल्पसंख्यक कलाकार भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।

 

यूं तो देशभर में होली के अपने अपने रंग हैं और अपनी विशेष पहचान, लेकिन शेखावटी की होली कई मायने में खास है। फागुन की मस्ती में सराबोर यहां के लोगों की गीदड़ और चंग लोकनृत्यों में शिरकत इस त्योहार को खास बना देती है। सांझ ढलते ही गली मोहल्ले, चौक, चौराहों पर लोगों का जमावड़ा, फिर देर रात तक चलता फाग मस्ती का दौर एक से बढ़कर एक लोकगीत स्वांग, ढप की ताल में ताल मिलाते मजीरे, नगाड़े और बांसुरी की सुरीली तान मानो अंचल की लोक संस्कृति की तस्वीर खींच देते हैं।  फागुन में ऐसा माहौल केवल
शेखावटी अंचल में ही देखने को मिलता है।

 

गीदड़ नृत्य को लेकर लोगों का उत्साह देखते ही बनता है और इस विशेष नृत्य को देखने के लिए बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी फागुन में शेखावटी की ओर खिंचे चले आते हैं। गीदड़ नृत्य अपने खास अंदाज के दम पर अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है।  शेखावटी में ‘आज मान्ह रमता ने लाडूडो सो लाभ्यो ये माय’ बोल के गीत इस अंचल के लोगों में गीदड़ नृत्य की लोकप्रियता का संकेत देते हैं। इस गीत के जरिए अंचलवासी यह बताते हैं  कि उन्हें यह नृत्य इतना प्यारा लगता है कि उनका मन लड्डुओं में भी नहीं रमता और इसी नृत्य की ओर खिंचा जाता है।

 

यूं तो अंचल में हवाएं बासंती होने के साथ फागनी बयार बहनी शुरू हो जाती है, लेकिन गीदड़ नृत्य शुरू होते ही यहां की संस्कृति जीवंत हो उठती है। गीदड़ नृत्य में महिला के वस्त्र पहने पुरूष नृत्य करते हैं। वह दोनो हाथों में डंडे लेकर एक गोल घेरे में घूमते हुए नृत्य करते हैं। नर्तक आपस में लयबद्ध तरीके से डंडे टकराते चलते हैं।

 

गीदड़ नृत्य के कलाकार शंकर महर्षि के अनुसार किवदंती है कि राय बीका के सुपुत्र ने राजलदेसर की जागीर प्राप्त होने के बाद भाव विभोर होकर इस गीदड़ नृत्य का प्रथम आयोजन करवाया था, जिसका निर्वाह आज तक होता आ रहा है। (एजेंसी)

First Published: Thursday, March 8, 2012, 10:14

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