Last Updated: Tuesday, January 15, 2013, 14:55

रांची : झारखंड की सियासत की बेवफाई की टीस राज्य के कार्यवाहक मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने आज कुछ इन शब्दों में बयां की, ‘फासले ऐसे भी होंगे, ये कभी सोचा न था, सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था।’
बारह वर्ष पूर्व बने झारखंड राज्य में तीसरी बार मुख्यमंत्री का पद कार्यकाल संपन्न होने से पूर्व ही छोड़ने को मजबूर कार्यवाहक मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने एक विशेष साक्षात्कार में मंगलवार को राज्य के विकास के लिए बुने अपने सपनों की चर्चा करते हुए गुलाम अली की गजल की यह पंक्तियां गुनगुनाईं.. ‘फासले ऐसे भी होंगे, ये कभी सोचा न था, सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था। वो कि खुशबू की तरह फैला था मेरे चार सू, मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था।’
मुख्यमंत्री मुंडा ने दो टूक कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिज्ञों की भी जवाबदेही जनता को तय करनी होगी और झारखंड की जनता में यह समझदारी भी पैदा करनी होगी कि किस राजनीतिक दल या नेतृत्व के साथ उसकी भलाई है। यह पूछे जाने पर कि आखिर कार्यकाल के सिर्फ 28 माह पूरे होने पर मुख्यमंत्री पद से विदाई होने पर उन्हें कोई मलाल है, कार्यवाहक मुख्यमंत्री ने कहा कि किसी राज्य में मुख्यमंत्री का इस तरह आना जाना दूरगामी परिणामों को बाधित करने वाला है। मन में अपने सपनों का झारखंड बनाने की कसक तो रह ही जाती है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, January 15, 2013, 14:55