Last Updated: Saturday, July 6, 2013, 17:09

पटना : केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने आज बताया कि प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक योजना (पीएमजीएसवाई) के तहत बिहार में 5700 किलोमीटर सडकों के निर्माण के लिए इस वर्ष जुलाई महीने में 4130 करोड रुपये की मंजूरी दी गयी है। बिहार के नक्सल प्रभावित पश्चिमी चंपारण जिला में ग्रामीण कार्यों की समीक्षा के लिए यहां आए जयराम ने पटना स्थित कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय में पत्रकारों को संबोधित करते हुए बताया कि प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक योजना (पीएमजीएसवाई) के तहत बिहार में 5700 किलोमीटर सडकों के निर्माण के लिए इस वर्ष जुलाई महीने में 4130 करोड रूपये की मंजूरी दी गयी है। उन्होंने बताया कि पीएमजीएसवाई के तहत बिहार में पिछले 12 वर्षों में मिली यह सबसे बडी राशि है और इसके तहत इस राज्य के सभी 38 जिलों में 2400 ग्रामीण सडकों और 190 पुलों का निर्माण किया जाएगा।
जयराम ने बताया कि 4130 करोड रुपये की लागत से बनाई जाने वाली इन सडकों में से 80 प्रतिशत सडकें प्रदेश के 10 जिलों अररिया, औरंगाबाद, दरभंगा, जमुई, कैमूर, मधुबनी, नवादा, सीतामढी, रोहतास और पश्चिमी चंपारण जिलों की सडकें शामिल हैं। उन्होंने बताया कि बिहार के इन दस जिलों में तीन जिलों अररिया, दरभंगा और मधुबनी को छोडकर बाकी अन्य सात जिले नक्सल प्रभावित हैं। जयराम ने बताया कि देश के सभी 82 नक्सल प्रभावित जिलों में आधारभूत संरचना के निर्माण और कल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वयन को ग्रामीण विकास विभाग द्वारा प्राथमिकता दी गयी है और इसके तहत वे 50 ऐसे जिलों का दौरा कर चुके हैं जिसमें बिहार के तीन जिले जमुई, औरंगाबाद और सीतामढी शामिल हैं और आज एवं कल बिहार की अपनी यात्रा के दौरान यहां के नक्सल प्रभावित पश्चिमी चंपारण जिला में वे ग्रामीण विकास विभाग के कार्यों की समीक्षा करेंगे।
जयराम रमेश ने बताया कि बिहार में 38400 बस्तियां में संपर्क सडक उपलब्ध नहीं है और इस वर्ष जुलाई महीने में पीएमजीएसवाई के तहत 5700 किलोमीटर ग्रामीण सडकों के निर्माण के लिए 4130 करोड रुपये की राशि स्वीकृत किए जाने के बाद भी इस प्रदेश में बिना संपर्क सडक वाली 8000 बस्तियां बच जाएंगी। उन्होंने कहा कि अगर राज्य सरकार ग्रामीण सडकों के निर्माण के काम में तेजी लाए तो केंद्र सरकार एक साल के भीतर बिना संपर्क सडक वाली 8000 बस्तियों में भी सडकों के निर्माण के लिए तैयार है। जयराम ने कहा कि पीएमजीएसवाई के तहत बनायी जा रही सडकों के निर्माण में गुणवत्ता का ख्याल रखे जाने तथा अनियमितता को रोकने के लिए राज्य सरकारों को चाहिए कि वे इसकी जांच एक स्वतंत्र एजेंसी से कारएं।
बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा ग्रामीण सडकों के निर्माण में अनियमितता को रोके जाने के लिए स्थानीय विधायक सहित अन्य जन प्रतिनिधियों के सुझावों को महत्व देने के अनुरोध के बारे में जयराम ने कहा कि उनका विभाग इस पर विचार करेगा। जदयू के भाजपा से नाता तोडने के बाद नीतीश सरकार की मांगों के प्रति उदारता बरतने और अगले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर हाल के दिनों में केंद्र से बिहार को आर्थिक मदद देने में काफी दरयादिली दिखाने के बारे में पूछने पर जयराम ने इससे इंकार किया । उन्होंने कहा कि बिहार में केंद्र द्वारा किसी प्रकार की धनवर्षा नहीं की जा रही है बल्कि इस प्रदेश का यह हक बनता है। उन्होंने कहा कि उनके ग्रामीण विकास मंत्रालय संभालने के पूर्व पिछले तीन वषोर्ं में बिहार सरकार की कमियों और काम की गति धीमी रहने के कारण कुछ अडचनें रही लेकिन बाद के वर्षों में इसमें तेजी आयी। उन्होंने बताया कि ग्रामीण विकास विभाग का कार्यभार संभालने के बाद उन्होंने पहला दौरा बिहार का ही किया था और वित्तीय वर्ष 2012-13 के दौरान इस प्रदेश को पीएमजीएसवाई के तहत ढाई हजार करोड रूपये और वर्ष 2011-12 के दौरान 900 करोड रुपये दिए गए थे।
रमेश ने बिहार, झारखंड और उडीसा में मनरेगा का काम धीमा होने की बात स्वीकारते हुए इसके लिए राज्य सरकार की अक्षमता को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि काम में तेजी लाने के लिए उन्होंने इन राज्यों से प्रशासनिक क्षमता को मजबूत करने को कहा है। उन्होंने बताया कि बिहार में सबसे अधिक गरीबी, पिछडेपन और बेरोजगारी के बावजूद यहां इस वर्ष का श्रम बजट जहां दो हजार करोड रूपये है वह आंध्रप्रदेश में 8000 करोड़ रुपये है। जयराम ने कहा कि मनरेगा के कार्यों की समीक्षा के लिए इस वर्ष अगस्त महीने में बिहार का दौरा करेंगे और अगर कार्य में प्रगति पायी गयी तो केंद्र राशि में वृद्धि करने को तैयार है। मनरेगा के काम में व्याप्त भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाने के लिए बिहार प्रदेश कांग्रेस द्वारा जिला स्तर पर सर्वदलीय निगरानी समितियों के गठन की मांग के बारे में जयराम ने कहा कि इस पर विचार करेंगे। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से मनरेगा के लिए राशि उपलब्ध कराने में कोई कमी नहीं की जा रही है। लेकिन उस राशि को खर्च किए जाने में बरती जाने वाली अनियमितता के खिलाफ कार्रवाई किया जाना राज्य सरकारों का काम है।
जयराम ने कहा कि इस बारे में शिकायत मिलने पर उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री को कई पत्र लिखे हैं और कुछ मामलों में कार्रवाई भी हुई है और आज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से होने वाली मुलाकात के दौरान भी इसके साथ अन्य विषयों पर चर्चा करेंगे। बिहार सरकार सहित कई अन्य राज्यों की सरकारों द्वारा मनरेगा की राशि को बढाकर न्यूनतम मजदूरी के बराबर किए जाने की मांग के बारे पूछे जाने पर जयराम ने कहा कि केंद्र सरकार का मानना है कि मनरेगा के तहत दी जाने वाली राशि को न्यूनतम मजदूरी के साथ जोडकर नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह मामला उच्चतम न्यायालय के विचाराधीन है और इसको लेकर उनकी प्रधानमंत्री के साथ दो बार बैठक हो चुकी है।
रमेश ने कहा कि पिछले 10-12 सालों से इंदिरा आवास के लिए कुल बजट का 25 प्रतिशत बिहार को दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पूर्व में इंदिरा आवास के लिए सामान्य जिलों में दी जाने वाली राशि को बढाकर अब 70 हजार रुपये कर दिया गया है, जबकि नक्सल प्रभावित जिलों में इसे बढाकर 75 हजार रूपये कर दिया गया है। रमेश ने अगले वर्ष अप्रैल महीने से बीपीएल परिवारों के अलावा अन्य बेघर परिवारों को भी इंदिरा आवास उपलब्ध कराने पर केंद्र सरकार द्वारा विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों से आगामी नवबंर महीने तक बीपीएल सूची में मौजूद त्रुटियों को दूर करने के लिए कहा गया है। शौचालय के निर्माण में तेजी लाए जाने की मांग पर रमेश ने कहा कि केंद्र सरकार ने देश के ढाई लाख ग्राम पंचायतों के सभी घरों में शौचालय का निर्माण अगले दस वष्रो के भीतर पूरा कर लिए जाने का लक्ष्य रखा है। मगर बिहार में कार्य प्रगति धीमी होने के कारण इसमें 20 से 25 तक का समय लग जाने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा एक शौचालय के निर्माण पर अब दस हजार रुपये दिए जा रहे हैं।
विधवाओं और नि:शक्तों जनों को दी जाने वाली राशि के कम होने के बारे में पूछे जाने पर जयराम ने बताया कि उनके विभाग से सरकार उसे बढाकर एक समान 500 रुपये किए जाने का सुझाव दिया है और इसे मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल जाने पर उसे लागू कर दिया जाएगा। जयराम ने कहा कि उनके विभाग के प्रस्ताव में लाभांवित होने वाली विधवा की उम्र को घटाकर 18 साल किए जाने तथा उसमें परित्यक्त महिलाओं को शामिल किए जाने का सुझाव दिया गया है। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार से नि:शक्तों जनों के बारे में उनके विभाग ने विकलांगता निर्धारित करने के मापदंड को 40 प्रतिशत किए जाने तथा उसमें उम्र सीमा को समाप्त किए जाने का भी सुझाव दिया है ताकि नि:शक्त बच्चों को भी इस योजना का लाभ मिल सके। (एजेंसी)
First Published: Saturday, July 6, 2013, 16:59