बिहार में यात्राओं के बहाने गरमाई सियायत

बिहार में यात्राओं के बहाने गरमाई सियायत

पटना : बिहार में आजकल राजनीतिक यात्राओं को लेकर सत्तारूढ़ और विपक्षी दल लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने में जुटे हुए हैं। यात्राओं के बहाने ही बिहार में सियासी चाल चले जा रहे हैं। एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी `अधिकार यात्रा` चला रहे हैं तो उनके धुर विरोधी और प्रमुख विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव `परिवर्तन यात्रा` के माध्यम से सरकार पर प्रहार कर रहे हैं।

नीतीश का कहना है कि जनता दल (युनाइटेड) की अधिकार यात्रा का मकसद बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए जनसमर्थन बढ़ाना है, जबकि लालू कहते हैं कि अब राज्य में परिवर्तन की आवश्यकता है, इसलिए वह इस यात्रा के माध्यम से लोगों से मिल रहे हैं और उन्हें `सुशासन` का दावा करने वाली सरकार की हकीकत बता रहे हैं।

इन दोनों नेताओं की यात्राओं से राजनीतिक माहौल गरमा गया है और राजनीति के जानकार इसके कई मायने निकाल रहे हैं। राजनीति के जानकारों का मत है कि सभी राजनीतिक दलों का मुख्य मकसद सत्ता पाना ही होता है और बिहार में यात्राओं की राजनीति काफी पुरानी है। नीतीश भी सत्ता के बाहर रहते हुए यात्राओं पर निकलते थे।

राजनीति के जानकार सुरेंद्र किशोर ने कहा कि लालू बिहार में अपने बुरे शासन की वजह से गंवाई सत्ता फिर हासिल करने या अगामी लोकसभा चुनाव में अपने दल की स्थिति सुधारने की कोशिश में जुट गए हैं। वह कहते हैं कि आखिर लालू को लोकसभा चुनाव की धमक सुनाई देने के बाद ही यात्राओं की जरूरत क्यों आन पड़ी? किशोर कहते हैं कि लालू की राजनीति पुराने र्ढे पर चल रही है। आज भी मुस्लिम और यादव का बड़ा धड़ा लालू के साथ है जो उनकी यात्रा के दौरान होने वाली सभा में जुट रहा है।

उधर, मुख्यमंत्री की `विशेष राज्य` वाली मुहिम को ढकोसला और उनकी यात्रा को शासन की विफलताओं से लोगों का ध्यान हटाने का प्रपंच कहने वाले विपक्षी दल के आरोप को नकारते हुए किशोर कहते हैं कि बिहार के साथ केंद्र का `सौतेला व्यवहार` किसी से छिपा नहीं है।

वह कहते हैं कि आजादी के बाद से ही बिहार को उपेक्षित रखा गया है। 1952 में जब सिंचाई के लिए पंजाब को 30000 लाख रुपये में से 15000 लाख रुपये की मदद केंद्र सरकार द्वारा दी गई थी, तब बिहार के नेताओं को कोसी पर बांध के लिए श्रमदान के लिए कहा गया था। किशोर बड़े स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि हमेशा से बिहार को उपेक्षित रखा गया है। ऐसे में मुख्यमंत्री की विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मुहिम को ढकोसला नहीं कहा जा सकता।

यात्राओं के माध्यम से ही लालू और नीतीश के बयान भी धीरे-धीरे तल्ख होते जा रहे हैं। लालू अपनी सभाओं में मुख्यमंत्री पर विकास का फर्जी प्रचार और विशेष राज्य के मुद्दे को ढोंग बताते हुए कहते हैं कि बिहार में गैंगरेप, घूसखोरी, हत्या, लूट, अपहरण की बढ़ती घटनाओं पर परदा डालने के लिए यह यात्रा हो रही है। नीतीश समर्थन जुटाने के लिए झूठ का सहारा ले रहे हैं।

आमतौर पर लालू पर बयान देने से बचने वाले मुख्यमंत्री भी अपनी यात्रा के दौरान हो रही सभाओं में लालू पर निशाना साधते नजर आ रहे हैं। वह भी लालू को झूठा करार देते हुए राजद पर अपनी सभाओं में हंगामा कराने का आरोप मढ़ रहे हैं। नीताश कहते हैं कि बिहार के लोग अब राजद के 15 वर्षो के `कुशासन` को याद भी नहीं करना चाहते।

बहरहाल, नीतीश सरकार की कथित विफलताओं को लेकर लालू को सरकार पर वार करने का मौका तो मिला है, परंतु उनकी पुरानी छवि ही उनके लिए बड़ी मुसीबत बनती जा रही है। लालू अपनी सभाओं में हालांकि उन गलतियों को फिर नहीं दोहराने की बात कहकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। (एजेंसी)

First Published: Monday, October 15, 2012, 10:26

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