Last Updated: Tuesday, September 17, 2013, 00:00
नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने दंगा पीड़ितों और ऐसी ही दूसरी घटनाओं में मुआवजे के भुगतान के मामले में प्रदेश और बाहरी व्यक्तियों के बीच दोहरा मापदंड अपनाने पर सोमवार को फिर जम्मू कश्मीर सरकार को आड़े हाथ लिया।
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने जम्मू कश्मीर सरकार के इस रवैये पर तल्ख भाषा में जानना चाहा, ‘क्या आप दूसरों की सहायता के बगैर राज्य का प्रबंधन कर सकते हैं? क्या आप राज्य की सेवा के दौरान जान गंवाने वालों के बीच स्थानीय निवासी और बाहरी व्यक्ति के रूप में विभेद कर सकते हैं? हमें पता है कि आपको विशेष दर्जा प्राप्त है।’
न्यायाधीशों ने राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महासचिव द्वारा हलफनामा दाखिल करने पर कड़ी आपत्ति की और राज्य के मुख्य सचिव को विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘आप (जम्मू कश्मीर के वकील) अपने मुवक्किल को सही सलाह नहीं दे रहे हैं। जब आप देखते हैं कि इतने अधिक मुकदमों का हमारे पर बोझ है तो आपको भी सहयोग करना चाहिए।’ न्यायालय किश्तवाड़ में हुयी सांप्रदायिक हिंसा की घटना को लेकर जम्मू कश्मीर नेशल पैंथर्स पार्टी के सुदेश डोगरा की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस याचिका में किश्तवाड़ में कर्फ्यू के कारण फंसे तीर्थयात्रियों की सुरक्षा और उन्हें सुरक्षित निकालने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
राज्य सरकार ने अपने नये हलफनामे में कहा था कि अर्धसैनिक बल, सुरक्षा बल, सैन्यकर्मियों और जम्मू कश्मीर पुलिस के कार्मिकों को अनुग्रह राशि के भुगतान की नीति की राज्य सरकार समीक्षा कर रही। इसका मकसद इस मामले में एक व्यापक नीति बनाना है। इस प्रकिया को कम से कम समय में पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, September 17, 2013, 00:00