मुजफ्फरनगर हिंसा: किसी व्‍यक्ति ने नहीं छोड़ा बरवाला गांव

मुजफ्फरनगर हिंसा: किसी व्‍यक्ति ने नहीं छोड़ा बरवाला गांव

मुजफ्फरनगर : मुजफ्फरनगर जिले में दो वर्गो के बीच भड़की हिंसा में जो इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हुए उनमें शाहपुर भी एक था। यहां के लगभग हर गांव में दंगे की आंच पहुंची और जान बचाने के लिए स्थानीय लोगों को राहत शिविरों में पलायन करना पड़ा। लेकिन इसी क्षेत्र में मिली-जुली आबादी वाला एक ऐसा गांव भी रहा जहां से एक भी व्यक्ति ने पलायन नहीं किया।

शाहपुर थाना क्षेत्र में बुढ़ाना मार्ग पर लगभग दो किलोमीटर अंदर बसे बरवाला गांव के लोगों की आपसी सहमति और एक-दूसरे के ऊपर विश्वास का ही आलम रहा कि गांव में हिंदू और मुसलमानों ने हिंसा के वक्त मजबूती से एक दूसरे का हाथ थामकर भाईचारा बनाए रखा।

बरवाला गांव की आबादी लगभग 8,000 है। यह एक जाट बहुल गांव है और यहां मुस्लिम समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 2,500 है। सात सितंबर को जब हिंसा की आग पूरे क्षेत्र में फैलने लगी तो इस गांव के बड़े बुजुर्गो और सरपंच ने मुस्लिम समाज के लोगों को समझाया और सुरक्षा का आश्वासन देते हुए कहा कि उन्हें गांव में किसी से कोई खतरा नहीं होगा। भरोसे का आलम ये रहा कि एक भी मुस्लिम परिवार ने पलायन नहीं किया।

गांव के बुजुर्ग मुल्लन मियां ने बताया कि हिंसा के दौरान हमारे आस-पड़ोस के गांवों में घर जलाए गए। लोगों को मारा गया। यह सब जानकर मेरे और मेरे समुदाय के लोगों के मन में एक पल के लिए अपने लिए डर पैदा हुआ था लेकिन हिंदू भाइयों ने हमें वर्षो से चले आ रहे भाइचारे का भरोसा दिया। हमें कोई आंच नहीं आई। उन्होंने कहा कि अब लगता है कि हम सबने मिलकर गांव न छोड़ने का जो फैसला किया था वह बिल्कुल सही रहा, नहीं तो आज हम बेवजह राहत शिविरों में धक्के खा रहे होते। गांव की एक मुस्लिम महिला रुखसाना ने कहा कि हिंसा के दौरान हम सभी लोग पूरी तरह सुरक्षित रहे। हिंदू भाई हमारे घरों के आस-पास रात को टोलियां बनाकर रहते थे जिससे कि आस-पास के दूसरे गांव के लोग हमें निशाना न बना पाएं। हिंसा के बाद देखा गया कि ज्यादातर उन्हीं लोगों ने पलायन किया जो अपने गांव या इलाके में अल्पसंख्यक की स्थिति में थे।

हिंसा के दौरान दोनों समुदायों को एकजुट रखने में गांव की प्रधान सोहनवीरी देवी और उनके दो पुत्रों-बालेंद्र और इंद्रवीर की बड़ी भूमिका रही। इंद्रवीर ने कहा कि हम देर रात मुस्लिमों के पास जाकर बैठते थे। उनमें जो भय था उसे दूर करके सुरक्षा का भरोसा दिलाते थे। गांव से कोई डर कर कहीं नहीं गया। हिंसा के दौरान हमारे गांव को पुलिस की जरूरत नहीं पड़ी। गौरतलब है कि मुजफ्फरनगर के कवाल गांव में हुई तीन युवकों की मौत के मामले के तूल पकड़ने के बाद सात सितंबर को जिले में खासकर ग्रामीण इलाकों में हिंसा भड़क उठी थी। हिंसा में 47 लोग मारे गए, 100 से ज्यादा लोग घायल हुए और तकरीबन 50,000 लोग जान बचाकर राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर हुए। (एजेंसी)

First Published: Tuesday, September 24, 2013, 14:03

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