Last Updated: Sunday, September 30, 2012, 17:06
पटना : बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए अधिकार यात्रा रैली पर निकले मुख्यमंत्री नीतीश के कार्यक्रम को इन दिनों राज्य के राजनीतिक रुप से सबसे जागरुक वर्ग ठेके (कांट्रैक्ट) पर नियुक्त शिक्षकों के विरोध प्रदर्शन की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। यह आंदोलन अब विपक्ष के आश्वासन से धीरे-धीरे राजनैतिक रूप अख्तियार करता जा रहा है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहले सेवा यात्रा और फिर गत 19 सितंबर से चल रही अधिकार यात्रा में जगह-जगह पर ठेके पर नियुक्त शिक्षकों ने अपने आक्रोश को व्यक्त किया है। वेतन में कथित भेदभाव स्थानीय निकायों (पंचायत नगर निगम तथा नगर परिषद) से वेतन भुगतान में लंबा इंतजार और विपक्षी दल राजद कांग्रेस और लोजपा द्वारा थमाये जा रहे चुनावी वायदों के झुनझुने ने करीब ढाई लाख इन शिक्षकों के सुलग रहे गुस्से की आग को भडकाने का काम किया है ।
राजनैतिक वर्ग के लोग मानते है कि इन शिक्षकों में बडी संख्या में युवकों का होना भी इस आंदोलन को उग्र रुप देने में मदद कर रहा है। राजनैतिक दलों के लिए यह एक बडा वोट बैंक है जिसे आश्वासन का झुनझुना देकर अपने पक्ष किया जा सकता है। इन शिक्षकों के वेतन की बडी राशि केंद्रीय योजना ‘सर्व शिक्षा अभियान’ से मिलने वाले मदद से आती है।
मुख्यमंत्री अधिकार यात्रा के तहत राज्य के 38 में से 15 जिलों का दौरा कर चुके है। आने वाले समय में शिक्षकों के विरोध प्रदर्शन के कम होने के आसार नही है। कानून व्यवस्था की समस्या और उपद्रव को देखते हुए जदयू का बिहार को विशेष राज्य का दर्जा का अभियान मुश्किलों में फंसता नजर आ रहा है। राज्य में बेसिक तथा स्नातक प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित वर्ग में सरकार ने ठेके पर नियुक्त शिक्षकों के लिए 6000 से 8000 रुपये प्रति माह वेतन देने का प्रावधान है। प्रतिवर्ष इन्हे 100 रुपये से 300 रुपये तक अलग-अलग वर्ग में वेतन बढोतरी का प्रावधान है जो वर्तमान मंहगाई के दौर में नाकाफी है।
पटना में रह रहे एक शिक्षक आलोक कुमार सिंह शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर धनरुआ प्रखंड में पढाने जाते है। उन्हें 8000 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता है जिसका बडा हिस्सा आने जाने के किराये में ही खर्च हो जाता है। उनके लिये परिवार चलाना मुश्किल है। महिला अभ्यर्थियों की भी इसी प्रकार की समस्याएं है। रौशनी कुमारी की भी शिक्षक के रुप में नियुक्ति जिले से बाहर हुई थी जो आने जाने में कतई व्यवहारिक नही था इस कारण उन्होंने 7000 रुपये प्रति माह की अनुबंधित शिक्षक की नौकरी छोड दी।
सरकार के पक्ष को रखते हुये जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता शिवानंद तिवारी कहते है कि शिक्षकों को इस प्रकार का आचरण शोभा नही देता है। शिक्षक तो विपक्ष के इशारे पर हंगामे कर रहे है उससे समस्या का हल नहीं निकलने वाला है। नीतीश सरकार ने इन शिक्षकों का मानदेय 1500 रूपये से बढाकर सात हजार रूपया किया है। उनकी समस्याओं का ख्याल सरकार को भी है।
तिवारी का आरोप है कि विपक्ष शिक्षकों की आड़ में राजग सरकार के खिलाफ साजिश कर रहा है। वह राज्य में शांति और सौहार्द्र नही देखना चाहता है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविलास पासवान शिक्षक और शिक्षा को लेकर लगातार नीतीश सरकार पर हमले करते रहते है। पासवान कहते हैं कि अनुबंधित शिक्षकों की मांगे जायज है। इन शिक्षकों की मांग पूरी होनी चाहिये। सरकार जब कई फिजूलखर्च करती है तो शिक्षकों को समय और सम्मानजनक वेतन देने में क्या परेशानी है।
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अब्दुल बारी सिद्दिकी नीतीश कुमार की सभाओं में विरोध प्रदर्शन को जनाक्रोश का प्रकटीकरण मानते है। राजद नेता कहते हैं कि यह 1974 के संपूर्ण क्रांति आंदोलन की आहट है जिसमें छात्रों और शिक्षकों ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। सिद्दिकी शिक्षकों के आंदोलन में किसी प्रकार की साजिश से इनकार करते है और इसे बकवास बताते है। राज्य सरकार अपनी विफलताएं छुपाने के लिए इस प्रकार के आरोप लगा रही है।
सासाराम में अनुबंधित शिक्षक न्याय मोर्चा के एक सदस्य ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, राज्य सरकार शिक्षकों को बंधुआ मजदूर की तरह काम करवा रही है। लोकतंत्र में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा में एक ही काम के लिए भेदभाव किया जा रहा है। पूर्व से मौजूद सरकारी नियमावली बनाई। बार-बार उसमें संशोधन किया जा रहा है। यह अंग्रेजों की मानसिकता वाली नीति है जिसमें शिक्षकों को गुलाम की तरह व्यवहार किया जा रहा है। (एजेंसी)
First Published: Sunday, September 30, 2012, 12:39