रायगढ़ के आदिवासी रोजी-रोटी को मोहताज

रायगढ़ के आदिवासी रोजी-रोटी को मोहताज

रायगढ़ के आदिवासी रोजी-रोटी को मोहताजअभिषेक झा, जी मीडिया, रायगढ़

रायगढ़ : आज हम आपको एक ऐसी हकीकत से रूबरू कराने जा रहे हैं जिसने छत्तीसगढ़ के तमाम इलाकों में बसने वाले आदिवासियों और कमज़ोर तबके के लोगों की ज़िंदगी दूभर कर दी है। किसी ज़माने में जिनके पास अपनी ज़मीन और अपने जंगल थे। और अब वो रोज़ी रोटी के मोहताज हो गए हैं। विकास के नाम पर लिखी जाने वाली इस इबारत की हकीकत की बानगी दिखाने के लिए हम आपको ले चल रहे हैं छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में।

रायगढ़ के आदिवासियों की ये कहानी उस हकीकत की ओर इशारा करती है जिसने उनकी ज़िंदगी को तबाह कर दिया है। उनके सारे सपने उजड़ गए हैं। उनकी पाई-पाई छीन कर उन्हें कंगाल बना दिया है। ये कहानी है रायगढ़ जिले के तमनार तहसील की। यहां के लोगों के पास किसी चीज़ की कमी नहीं थी। अपना घर और मेहनत से सोना उगलने वाली ज़मीन थी। भरा पूरा जंगल लेकिन अब दूर-दूर तक सन्नाटा पसरा रहता है। स्थानीय लोग नजर नहीं आते और ज़मीन छिन गई, जंगल कट गए, नदी प्रदूषित हो गई। अब इनके सामने आजीविका का संकट गहरा गया है।

कोंडकेल गांव की सानू से जब उनकी जल,जंगल औऱ ज़मीन के बारे में पूछा गया तो उदास हो गई। 3 एकड़ पुश्तैनी ज़मीन थी लेकिन अधिग्रहण के नाम पर औने-पौने दाम में छीन ली गई। इस तरह से वो आज बिना जमीन के है।

एक निवासी जगतराम को अधिकारियों ने 5 लाख देने का वादा किया था लेकिन मिले सिर्फ 2 लाख रुपये। अब कोई सुनने वाला नहीं है, जो थोड़ी बहुत ज़मीन बची है। उसी पर खेती कर किसी तरह गुज़ारा चलाते हैं।

कुछ जमीन अधिग्रहण में चली गई, जो बची, वो कारखाने के कूड़े की भेंट चढ़ गई रही है। कोई सुनने वाला नहीं है। गांव के जो लोग अपनी जमीन नहीं देना चाहते उन्हें और भी तकलीफ उठानी पड़ती है। आरोप है कि उद्योग लगाने वाले चारों तरफ की ज़मीन खरीद लेते हैं। इसके बाद किसान को अपनी ज़मीन तक जाने का रास्ता ही नहीं बचता। यहां के आदिवासियों का अब साहब लोगों से भरोसा उठ गया है।

खेती की ज़मीन छीनने से गांव के गांव खाली हो गए हैं, जंगल बर्बाद हुआ तो आदिवासियों का रोजगार छिन गया और महुआ,आम,इमली,तेंदुपत्ता पर निर्भर रहने वाले गांव छोड़कर न जाने कहां चले गए।

हालांकि गांव में चमचमाचती सड़के हैं। सड़कों पर कारखाने में जाने वाली गाड़ियां फर्राटे भरती हैं। कारखाने की मशीनों की आवाज़ गूंजती है लेकिन दूसरी तरफ यहां के लोगों की हालत बेहद बदतर होती गई। ज़मीन ही नहीं छिनी, जल का संकट पैदा हो गया। महिलाएं दूर से पानी भरकर लाती हैं। केलो नदी का पानी पीने लायक नहीं रहा। कारखानों की गंदगी से नदी काली हो गई है। यहां की त्रासदी सच्चाई को बयां करती है और इनके हालात को बखूबी बताती है कि ये कितने तकलीफ में है।



First Published: Tuesday, June 4, 2013, 14:18

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