Last Updated: Friday, October 7, 2011, 15:54
मुंबई : बंबई हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिसमें राष्ट्रगान में शब्द ‘सिंध’ की जगह ‘सिंधु’ करने की मांग की गयी थी. मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह और न्यायमूर्ति रोशन दलवी ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने पहले ही मामले में व्यवस्था दे दी है.
सेवानिवृत्त प्रोफेसर श्रीकांत मलुश्ते ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया था कि जिस वक्त 1917 में राष्ट्रगान तैयार किया गया था, तब ‘सिंध’ भारत का हिस्सा था जो अब नहीं है. इसलिए उन्होंने ‘सिंध’ की जगह ‘सिंधु’ शब्द करने की मांग की है जो कि भारत की एक नदी है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पांच अक्तूबर को एक हलफनामे में कहा था कि राष्ट्रगान के दोनों रूप सही हैं, जिनमें एक में ‘सिंध’ और दूसरे में ‘सिंधु’ शब्द का उपयोग किया गया है.
हलफनामे में कहा गया कि ये शब्द या तो नदी या सिंधी समुदाय के संदर्भ में हैं. इसके अनुसार, ‘राष्ट्रगान कोई वृतांत नहीं है जो किसी देश के क्षेत्रों को परिभाषित करता हो. इसमें राज्यों या क्षेत्रीय इलाकों की सूची नहीं है, जो इसे लिखे जाते समय भारत के हिस्से थे.’ हलफनामे में उच्चतम न्यायालय की मई 2005 में दी गयी व्यवस्था का जिक्र किया गया है, जिसमें राष्ट्रगान में से ‘सिंध’ शब्द हटाकर उसकी जगह ‘कश्मीर’ शब्द करने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया गया था. हलफनामा कहता है कि यह जरूरी नहीं है कि हर बार देश में क्षेत्रीय बदलाव के समय राष्ट्रगान में परिवर्तन किया जाए. ‘सिंध’ शब्द को हटाना मंत्रालय द्वारा जारी सर्कुलर के खिलाफ होगा और शीर्ष अदालत के फैसले की अवमानना के समान होगा.
राष्ट्रगान को नवंबर 1953 में गृह मंत्रालय द्वारा एक सर्कुलर के माध्यम से जारी दिशानिर्देशों के तहत गाया और प्रसारित किया जाता है, जिसमें ‘सिंध’ शब्द है. हलफनामे के मुताबिक, ‘सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा नवंबर 1951 में प्रकाशित एक पुस्तक में भी राष्ट्रगान दिया गया है जिसमें ‘सिंधु’ शब्द का जिक्र है.’
(एजेंसी)
First Published: Friday, October 7, 2011, 21:24