रेपिस्ट को मिले मौत की सजा: महिला संगठन- Woman organisations demands death Penalty for rapist

रेपिस्ट को मिले मौत की सजा: महिला संगठन

बांदा : देश में तेजी से बढ़ रही बलात्कार की घटनाओं पर बहस छिड़ गई है। इन घटनाओं से बुंदेलखंड की महिला संगठन नागिन गैंग, गुलाबी गैंग व बेलन गैंग बेहद खफा हैं, इन संगठनों ने केंद्र सरकार से बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए ऐसा कड़ा कानून बनाने की मांग की है जिसमें `मौत` की सजा का प्रावधान हो और अदालत में तीन माह में सुनवाई पूरी हो।

देश के विभिन्न हिस्से से रोजाना बलात्कार की घटनाएं सामने आ रही हैं। राष्ट्रीय राजधानी में गत रविवार को बस में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना से पूरा देश शर्मिदा है। देश के किसी भी हिस्से में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। बलात्कार की इन घटनाओं से बुंदेलखंड की महिला संगठन `नागिन गैंग`, `गुलाबी गैंग` और `बेलन गैंग` केंद्र व राज्य सरकारों से बेहद नाराज हैं।

महिला संगठनों का कहना है कि महिला हिंसा अधिनियम-2005 और आईपीसी में मौजूदा व्यवस्था से बलात्कार की घटनाओं को रोक पाना असंभव प्रतीत होता है, लिहाजा संविधान में संशोधन कर बलात्कार को अंजाम देने वाले को `मौत` की सजा का प्राविधान किया जाए। साथ ही ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए अलग से त्वरित अदालत (फास्ट ट्रैक कोर्ट) का गठन हो और मामलों की सुनवाई अधिकतम तीन माह में पूरी कर ली जाए।

`नागिन गैंग` की चीफ कमांडर शीलू निषाद का कहना है कि देश और प्रदेश के विभिन्न कोने में रोजाना एक नहीं, बलात्कार की कई घटनाएं सामने आ रही हैं, कानून की मौजूदा व्यवस्था से 90 फीसदी आरोपी छूट जाते हैं, क्योंकि अदालती कार्रवाई के दौरान पीड़ित महिला यह साबित करने में नाकाम रहती है कि अभियुक्त ने उससे बलात्कार किया है। उन्होंने कहा कि पहले विवेचना के नाम पर पुलिस अधिकारी, फिर अदालती कार्रवाई में जिरह के दौरान बचाव पक्ष के अधिवक्ता भरी अदालत में ऐसे सवाल पूछते हैं कि पीड़िता शर्मसार होकर टूट जाती है और बचाव पक्ष उसके `मौन` को `सहमति` बताकर लाभ उठा लेता है।

शीलू निषाद बताती हैं कि वह खुद इस घिनौनी घटना की शिकार हुई थीं, उनके जेहन में अब भी जांच अधिकारियों के भद्दे सवाल गूंज रहे हैं। उनका कहना है कि नारी सशक्तीकरण के नाम पर भारी भरकम राशि खर्च करने वाली केंद्र व राज्य सरकारों को संविधान में संशोधन कर इस अपराध में `मौत` की सजा का प्राविधान करना चाहिए, साथ ही इन अपराधों की सुनवाई के लिए अलग से फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन करना चाहिए।

इसी संगठन की वाइस चीफ कमांडर मनोज सिंह का कहना है कि ज्यादातर बलात्कार व महिला हिंसा की घटनाएं पुलिस की लापरवाही के कारण घटती हैं। पहले तो पुलिस मामले को दर्ज करने में आना-कानी करती है, अगर दर्ज भी हुआ तो पीड़िता को ही मानसिक प्रताड़ना दी जाती है।

`गुलाबी गैंग` की कमांडर संपत पाल कहती हैं कि बलात्कार की घटनाओं में महिलाओं का भी दोष कम नहीं है, ज्यादातर मामलों में पहले प्रेम प्रसंग, फिर उसे `बलात्कार` का दर्जा दे दिया जाना सामने आता है। इतना ही नहीं, पीड़िता की मदद करने वाले को भी खामियाजा भुगतना पड़ता है। वह बताती हैं कि उन्होंने एक पीड़िता की मदद की थी, बाद में उसने बहकावे में आकर उन पर भी सामूहिक बलात्कार कराने का झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया था।

वह हालांकि कहती हैं कि बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए ऐसा कानून बने कि पहले पुलिस मामले की गंभीरता से जांच करे और फिर मुकदमा दर्ज करे। उनका मानना है कि पीड़िता को मिलने वाली सरकारी मदद का लालच भी फर्जी मुकदमे लिखवाने की प्रवृत्ति को बढ़ाता है। शहरी क्षेत्र में महिला हिंसा के खिलाफ संघर्ष करने वाली `बेलन गैंग` की कमांडर पुष्पा गोस्वामी पुलिस की लचर व्यवस्था के साथ महिला संगठनों को भी इन घटनाओं का जिम्मेदार मानती हैं। उनका कहना है कि आपराधिक ग्राफ घटाने की गरज से पुलिस पहले मामले को दबाने पर उतारू हो जाती है। मामला जब मीडिया की सुर्खियां बन जाता है, तब कहीं पुलिस का जमीर जागता है।

उन्होंने कहा कि संविधान में संशोधन कर जहां कड़ी सजा का प्राविधान करने की जरूरत है, वहीं जिस क्षेत्र में ऐसी घटना घटित हो वहां के थानाध्यक्ष के निलम्बन और पुलिस अधीक्षक को प्रतिकूल प्रवृष्टि दिए जाने का भी प्राविधान किया जाए। पुष्पा ने कहा कि आश्चर्य की बात यह है कि महिलाओं की सबसे ज्यादा फजीहत उन राज्यों में होती देखी गई है, जहां सरकार की कमान महिला के हाथ में है। (एजेंसी)

First Published: Friday, December 21, 2012, 09:44

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