रेपिस्टों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं : HC

रेपिस्टों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं : HC

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि अदालतों को बलात्कारियों के प्रति कोई ‘सहानुभूति’ नहीं दिखानी चाहिए जो अपनी वासना में लड़कियों की जिंदगी बर्बाद कर देते हैं। साथ ही अदालत ने आगाह किया कि उनको बरी करने से दूसरे लोगों में ऐसा अपराध करने को बढ़ावा मिलेगा।

14 वर्षीय एक लड़की का अपहरण कर बलात्कार करने के मामले में एक व्यक्ति को सात वर्ष की जेल की सजा को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति पी.के. भसीन ने कहा, ‘इस तरह के गंभीर अपराध करने वालों के प्रति अगर अदालतें सहानुभूति रखेंगी तो इस तरह की प्रवृत्ति वाले लोगों का उत्साह बढ़ेगा और अधिक से अधिक लड़कियां उनका शिकार बनती जाएंगी।’ अदालत ने यह बात रजी अहमद की याचिका को खारिज करते हुए कही। रजी ने 12 वर्ष पुराने मामले में निचली अदालत द्वारा उसे दी गई सात वर्ष जेल की सजा को चुनौती दी थी।

अदालत ने कहा, ‘उसे खुद को भाग्यशाली समझना चाहिए कि और अधिक जेल की सजा नहीं हुई।’ अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि अहमद को हिरासत में ले ताकि बाकी बची हुई सजा पूरी करने के लिए वह जेल जाए। उच्च न्यायालय में फैसला लंबित रहने के दौरान सजायाफ्ता जमानत पर चल रहा था।

निचली अदालत ने छह अक्तूबर 2003 को आदेश पारित किया और कम सजा की अहमद की याचिका खारिज कर दी। अहमद ने यह कहते हुए सजा कम करने की बात कही थी कि जनवरी 2001 में जब घटना हुई उस समय वह सिर्फ 18 वर्ष का था। अदालत ने कहा कि दोषी जानता था कि वह क्या कर रहा है और इसका लड़की पर क्या गंभीर परिणाम होगा। इसलिए कम सजा के साथ उसे छोड़ देना न्यायोचित नहीं होगा। (एजेंसी)

First Published: Sunday, March 24, 2013, 20:42

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