लिंगदोह समिति की मंझधार में फंसा छात्रसंघ चुनाव

लिंगदोह समिति की मंझधार में फंसा छात्रसंघ चुनाव

पटना : छात्रसंघ चुनावों को कदाचार मुक्त तरीकों से संपन्न कराने के लिए पूरे देश के विश्वविद्यालयों में रामबाण बनी लिंगदोह समिति की सिफारिशें छात्र संगठनों के विरोध के कारण बिहार के पटना विश्वविद्यालय के चुनाव के लिए रोडा बन गयीं हैं । दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहर नेहरु विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में लगातार हो रहे चुनावों की तरह पटना विश्वविद्यालय के छात्रों को भी आशा थी कि 28 वर्ष बाद ही सही लेकिन 2012 में स्टूडेंट यूनियन चुनावों का रास्ता खुलेगा।

राज्य के प्रमुख छात्र संगठन जहां चुनाव कराने के लिए एक राय हैं वहीं चुनाव के तौर तरीकों को लेकर उनमें मतभेद है। कुछ छात्र संगठन लिंगदोह समिति की सिफारिशों के अनुरुप चुनाव कराने का विरोध कर रहे हैं। छात्र संगठन एआईएसएफ के सदस्य अभिषेक लिंगदोह समिति की सिफारिशों के आधार पर पटना विश्वविद्यालय में चुनाव कराने को व्यावहारिक नहीं मानते हैं। उनके अनुसार यह छात्रों के हितों के अनुरुप नहीं है।

अभिषेक के अनुसार कक्षाओं में 75 प्रतिशत उपस्थिति, छात्रसंघ चुनाव के लिए 5000 रुपये का खर्च और 22 वर्ष की उम्र सीमा व्यावहारिक नहीं है। इसमें संशोधन करना चाहिए और छूट मिलनी चाहिए। छात्रसंघों के अनुसार आपराधिक छवि के उम्मीदवार पर रोक, छात्र जीवन में एक बार चुनाव लड़ने का मौका उम्मीदवारों के प्रतिकूल है। विश्वविद्यालय के मामलों को उठाने पर छात्र कार्यकर्ताओं को झूठे मामले में फंसाया जाता है। ऐसे में समिति की सिफारिशों में बदलाव होना चाहिए।

दो अन्य राष्ट्रीय छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और एनएसयूआई पूरी तरह से लिंगदोह समिति की सिफारिशों के आधार पर पटना विश्वविद्यालय का चुनाव कराना चाहते हैं। विद्यार्थी परिषद के संगठन सचिव के गोपाल शर्मा के अनुसार लिंगदोह समिति की सिफारिशों के अनुसार पटना विश्वविद्यालय में चुनाव होना चाहिए। यह छात्र राजनीति को स्वच्छ करने के लिए आवश्यक है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जैसे बडे विश्वविद्यालय में जब चुनाव समिति की सिफारिश के आधार पर हो सकते हैं तो बिहार में क्यों नहीं ? एनएसयूआई की अध्यक्ष सांभवी शांडिल्य भी लिंगदोह समिति की सिफारिशों के अनुरुप चुनाव कराने का पुरजोर समर्थन करते हुए कहती हैं कि दिल्ली विश्वविद्यालय और जेएनयू के छात्र संघ चुनाव आसानी से हो सकते हैं तो पटना और बिहार के अन्य विश्वविद्यालयों में क्यों नहीं ? पटना विश्वविद्यालय की छात्र संघ की राजनीति ने पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद, सांसद रंजन यादव, राज्यसभा में भाजपा के उपनेता रविशंकर प्रसाद, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, जदयू सांसद शिवानंद तिवारी जैसे प्रमुख नेताओं को जन्म दिया है। चुनाव के नहीं होने के कारण छात्र राजनीति से मुख्यधारा की राजनीति में प्रवाह रुका है।

चुनाव कराने के लिए तौर तरीकों को अंतिम रूप देने के लिए बीते अगस्त माह में पटना विश्वविद्यालय के कुलपति शंभूनाथ सिंह ने छह सदस्यीय एक समिति का गठन भी किया था। लेकिन लिंगदोह समिति की सिफारिशों के विरोध के कारण चुनावों की गाडी एक बार फिर अटक गयी। कभी गौरवशाली संस्थानों में शुमार पटना विश्वविद्यालय का पिछला छात्र संघ चुनाव 1984 में हुआ था। इसी प्रकार राज्य के अन्य प्रमुख विश्वविद्यालयों में भी चुनाव करीब तीन दशकों से नहीं हुए हैं।

पटना विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी कहते हैं कि लिंगदोह समिति की सिफारिशें ही बेकार हैं। समिति छात्र संगठन चुनावों को ही हेय दृष्टि से देखता है और अनिवार्य बुराई :नेसेसरी इविल: मानता है। विश्वविद्यालय प्रशासन तथा सरकार भी नहीं चाहती है कि चुनाव हो। इसलिए छात्रसंघ चुनाव का इतना ढोल पीटा जा रहा है लेकिन कुछ हो नहीं रहा। छात्रों के मुद्दे उठाने वाले चौधरी के अनुसार विश्वविद्यालयों में इतनी अनियमितताएं सामने आ रही हैं । कोई नहीं चाहता है कि छात्र को लोकतांत्रिक ढंग से आवाज उठाने का अधिकार मिले। इसलिए किसी न किसी बहाने से छात्र संघ चुनाव को टाला जा रहा है। सरकार में इच्छा शक्ति है तो उसे पहले हर हाल में चुनाव कराना चाहिए।

शिक्षा विभाग में एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि सरकार के हाथ बंधे हुए हैं। लिंगदोह समिति की सिफारिशों को कानूनी वैधता प्राप्त है। उससे हटकर चुनाव कराने से कानूनी अडचन होगी। गतिरोध के बाद राज्य सरकार की ओर से अभी कोई औपचारिक निर्णय नहीं किया गया है। सांभवी कहती हैं कि न तो सरकार और न ही विश्वविद्यालय प्रशासन में चुनाव कराने की इच्छा शक्ति है। चुनाव हर हाल में किसी भी प्रकार से होने चाहिए।

सत्तारुढ जदयू के छात्र संगठन के अध्यक्ष रंजन कुमार कहते हैं कि चुनावों में जितनी देर होगी, छात्र उतने अधिक आक्रोशित होंगे। लिंगदोह समिति ने सिफारिशों से पहले विचार विमर्श के दौरान बिहार की उपेक्षा की। केवल तीन विश्वविद्यालयों से परामर्श किया गया। उसकी सिफारिशें छात्र हित में नहीं है। सिफारिशों का अपना केवल नौकरशाही एजेंडा है। एबीवीपी का कहना है कि लिंगदोह समिति की सिफारिशों का विरोध करने वाले छात्र हित के विरोधी हैं।
राज्य के शिक्षा मंत्री प्रशांत कुमार शाही ने इस विषय में कहा है, मैंने विश्वविद्यालय प्रशासन को छात्रसंघ चुनाव कराने से मना नहीं किया है। चुनाव अंतत: विश्वविद्यालय को ही कराने हैं। जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं से बातचीत में शाही ने कहा, छात्र संघ के कुछ प्रतिनिधियों ने मुझसे मिलकर कहा है कि लिंगदोह समिति की सिफारिश के आधार पर चुनाव कराने से वैसे लोग चुनाव लड़ने से वंचित रह जायेंगे जिन्हें झूठे मुकदमे में फंसा दिया गया है। इस पक्ष को भी देखा जाना चाहिए। (एजेंसी)

First Published: Sunday, September 23, 2012, 12:56

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