Last Updated: Saturday, October 20, 2012, 17:25
मुंबई : बंबई हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल संदेह के आधार पर किसी व्यक्ति को सजा नहीं सुनाई जा सकती। हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय के उस एक फैसले को दरकिनार कर दिया जिसने आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप को पत्नी की हत्या के आरोप में तब्दील करके मुकदमे की सुनवाई की थी।
अदालत सोलापुर निवासी सचिन सातपुते की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सचिन पर 2005 में अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने और उस पर अत्याचार करने का आरोप था।
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को आंशिक रूप से बहाल रखा और सातपुते और उसके परिवार के सदस्यों पर भादंसं की धारा 498 ए (अत्याचार) के तहत मुकदमा चलाने को अनुमति दे दी।
सातपुते का विवाह 2002 में वैशाली से हुआ था। उसने अपनी जमीन पर पानी की पाइपलाइन लगाने के लिए पत्नी से 50 हजार रुपए की मांग की और अक्सर उससे लड़ाई करता था। वैशाली ने 10 फरवरी 2005 को आग लगाकर आत्महत्या कर ली थी। मृतक की मां मीरा अंकुश गाडेकर का आरोप था कि उसे संदेह है कि आरोपी ने ही उनकी बेटी की हत्या की। न्यायमूर्ति वी. एम. कनाडे और पी. डी. कोडे ने कहा, ‘आरोपी को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी ठहराना संभव नहीं है। परिणामस्वरूप आरोपी को संदेह का लाभ देने के सिवा हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है ।’
न्यायाधीशों ने कहा कि उनका मत है कि अभियोजन आरोपी के खिलाफ साक्ष्य साबित करने में पूरी तरह विफल रहा। पोस्टमार्टम होने के बाद चिकित्सक ने मौत के कारणों को सुरक्षित रखा । जांच अधिकारी का कर्तव्य था कि पहले वह चिकित्सक का विचार जानता और फिर जांच पूरी करता। (एजेंसी)
First Published: Saturday, October 20, 2012, 17:25