सपने को अंजाम नहीं दे पाए चाचा निजामुद्दीन

सपने को अंजाम नहीं दे पाए चाचा निजामुद्दीन

आगरा : पाकिस्तान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ममनून हुसैन के चाचा हाजी निजामुद्दीन का सपना था कि उनका भतीजा राष्ट्रपति बनकर ताजनगरी एक दिन जरूर आएंगे। मगर उनका सपना शायद खुदा को मंजूर नहीं था और ममनून के पाकिस्तान के राष्ट्रपति पद के लिये निर्वाचित होने से दो दिन पूर्व उनके चाचा का दिल का दौरा पड़ने से रविवार को आगरा में इंतकाल हो गया।

ममनून हुसैन के चचेरे भाई हाजी नाजमुद्दीन ने बताया कि उनके पिता को भतीजे ममनून की मेहमान नवाजी मरते दम तक याद रही। परिवार में जब भी किसी के तरक्की करने की बात होती, तो वह ममनून की मिसाल जरूर देते। उन्होंने बताया कि उनके पिता 1992 में दो माह के लिए पाकिस्तान गए थे। वहां ममनून के पास रुके थे। पाकिस्तान में बड़ा कारोबार स्थापित करने के बाद भी ममनून के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया था। भारत वापसी के समय उन्होंने काफी तोहफे दिए थे।

चचेरे भाई ने बताया कि ममनून पाकिस्तान जाने के बाद 1962 में अपनी हवेली देखने आगरा आए थे। आगरा में वह निजामुद्दीन के पास रुके थे। ममनून को छोटी अथाई और उमरगंज की वह गलियां ताजनगरी का पेठा-दालमोठ और नाई की मंडी की बिरयानी आज भी याद आती हैं।

ममनून हुसैन आगरा में 1940 में पैदा हुए थे। वह जन्म के सात साल बाद 1947 में देश का बंटवारा होने पर अपने दादा उस्ताद जफर के साथ आगरा छोड़कर कराची चले गए थे। ममनून के दादा की एक हवेली नाई की मंडी छोटी अथाई में और दूसरी पास के मुहल्ले उमरगंज में थी। उस्ताद जफर का छोटी अथाई वाली हवेली के एक हिस्से में ही जूते का कारखाना था और एक हिस्से में अब बेकरी का काम होता है। ममनून हुसैन काजी के कई जानने वाले आगरा के मंटोला, ढोलीखार व नाई की मंडी में रहते हैं। यहां के लोगों को उम्मीद है कि ममनून के पद संभालने के बाद दोनों देशों में भाईचारा बढ़ेगा। (एजेंसी)

First Published: Wednesday, July 31, 2013, 19:04

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