`आत्मा` का रिव्यू: हॉरर और थ्रिल के डरावने रंगों से सराबोर -‘Aatma’ review: Finally, a horror film free of stereotypes!

`आत्मा` का रिव्यू: हॉरर और थ्रिल के डरावने रंगों से सराबोर

`आत्मा` का रिव्यू: हॉरर और थ्रिल के डरावने रंगों से सराबोरज़ी न्यूज ब्यूरो

नई दिल्ली: बॉलीवुड में हॉरर फिल्मों का क्रेज बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। काफी कम हॉरर फिल्में है जिन्होंने फैंस के दिलों में पैठ बनाने के साथ कारोबार भी बेहतर किया है। हॉरर फिल्मों में रामगोपाल वर्मा की जबरदस्त पैठ है और वह एक तरह से हॉरर फिल्मों को बनाने के फिल्म इंडस्ट्री के बादशाह माने जाते हैं।

लेकिन इस बार निर्देशक और स्टोरी राइटर सुपर्ण वर्मा ने अपनी नई फिल्म आत्मा को बेहद शानदार तरीके से गढ़ा है। यह फिल्म कई पैमानों पर खरी उतरती है क्योंकि फिल्म शुरू से लेकर अंत तक बांधे रखती है। डेढ़ घंटे की इस फिल्म में हॉरर के हर डोज मौजूद है जो दर्शकों को थिएटर की सीट से चिपकाए रखती है।

इस फिल्म की कहानी अदाकारा बिपाशा बसु (माया) से शुरू होती है। बिपाशा अपनी बच्ची निया को अकेले संभालती है और अचानक एक दिन उन्हें पता चलता है कि निया रोज अपने मरहूम पिता अभय (नवाजुद्दीन सिद्दकी) से बातें करती है। फिर उसके बाद अजीबोगरीब घटनाएं शुरू हो जाती है। इस सिलसिले में निया की क्लास टीचर को भी कुछ शिकायतें मिलती है जो बिपाशा को किसी मनोवैज्ञानिक से सलाह लेने की बात कही है। इसी दौरान बिपाशा को पता चलता है कि उसका पति निया यानी उसकी बेटी को हासिल करने के मकसद से आया है। उसके बाद शुरू होती है कि बिपाशा की जंग जिसके जरिए वह अपनी बेटी को अपने पति की आत्मा से बचाने की कोशिश करती है।

मां के किरदार में बिपाशा खूब जमी है और उनकी अदाकारी बेहतर कही जा सकती है। नवाजुद्दीन सिद्दिकी का काम भी शानदार है और उन्होंने सराहनीय भूमिका निभाई है। डरावनी बच्ची के किरदार में डॉयल धवन का काम भी ठीक है।

लेकिन आत्मा में कुछ चीजें आंखों को खटकती है। कास्ट में जबरन कुछ चीजों को शामिल किया गया है। एक बात और भी है कि फिल्म का ट्रेलर जितना दमदार है वह बात फिल्म में नजर नहीं आती है। फिल्म का प्लॉट थोड़ा बेहतर होता तो और अच्छा होता। फिल्म के गाने दर्शकों की जुबान पर नहीं चढ़े है क्योंकि संगीत पक्ष कमजोर है। लेकिन फिल्म में जो भी हॉरर सींस से है वह डरावने और प्रभावशाली है।

कुल मिलाकर अगर आप हॉरर फिल्मों के शौकीन है तो आप यह फिल्म देख सकते है। एक बार तो यह फिल्म देखी जा सकती है क्योंकि डेढ़ घंटे में मनोरंजन हासिल करने के लिहाज से आत्मा को थिएटर में जाकर देखना कोई बुरा नहीं है।








First Published: Friday, March 22, 2013, 15:10

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