Last Updated: Friday, November 2, 2012, 13:25
नई दिल्ली : (तीन नवंबर को पृथ्वीराज कपूर के जन्मदिन पर) हिन्दी थिएटर के विकास में पृथ्वीराज कपूर का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता, जिन्होंने बिना किसी सरकारी सहायता के अपने दम पर थिएटर को स्थापित करने की पहल की। यह बात इसी तथ्य से समझी जा सकती है कि इलाहाबाद में महाकुंभ के दौरान शो करने के बाद पृथ्वीराज खुद गेट पर खड़े हो कर गमछा फैलाते थे और लोग उसमें पैसे डालते थे।
इलाहाबाद के वरिष्ठ लेखक, 80 वर्षीय नरेश मिश्रा ने बताया कि मैंने वह दौर भी देखा है जब महाकुंभ के दौरान पृथ्वी थिएटर शो करने प्रयाग की धरती पर आता था और शो समाप्त होने के बाद पृथ्वीराज कपूर गेट पर गमछा फैला कर खड़े हो जाते थे। निकलने वाले दर्शक उस गमछे में रुपये और पैसे डालते जाते थे। यह काम पृथ्वीराज कपूर जैसा महान अभिनेता पृथ्वी थिएटर को स्थापित करने के लिए किया करता था।
मिश्रा के अनुसार, हिन्दी थिएटर के विकास में पृथ्वीराज कपूर जैसे लोगों का अहम योगदान है, जिन्होंने बिना किसी सरकारी सहायता के अपने दम पर थिएटर को स्थापित करने के लिए न केवल पहल की बल्कि कड़ी मेहनत भी की। यह वह समय था जब थिएटर के लिए पैसा जुटाना लगभग असंभव होता था। गौरतलब है कि वर्ष 2013 में प्रयाग में महाकुंभ होने वाला है और आज भी महाकुंभ के दौरान बदलते वक्त के साथ इलाहाबाद में उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र कुंभ तथा महाकुंभ के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों का एक महीनों तक आयोजन करता है और इसके लिए विशेष पंडाल लगाया जाता है। इसमें तमाम बड़े बड़े कलाकार और गायकों को मोटी रकम देकर बुलाया जाता है। लेकिन बीते दौर में ऐसा कोई केंद्र नहीं था और कलाकार अपने शो मुफ्त में करते थे।
मिश्रा ने कहा कि ऐसे समय पर पृथ्वीराज का, पैसों के लिए गमछा फैलाना मुझे आज भी याद है। यह वह कलाकार था जिसने अभिनय के क्षेत्र में बुलंदियों को छुआ था। आज तो शो और कलाकारों का मेहनताना लाखों में जाता है। बीते दौर में एक एक रुपया मुश्किल से मिल पाता था। उन्होंने बताया कि पृथ्वीराज कपूर और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी और इलाहाबाद के प्राचीन मोहल्ले दारागंज की संकरी गलियों में जब लंबे चौड़े पृथ्वीराज कपूर और महाप्राण निराला बात करते हुए एक साथ चलते थे तो किसी बच्चे के निकलने की भी जगह गली में नहीं बचती थी।
पृथ्वी थिएटर की स्थापना उन्होंने 1944 में की और पहले आधुनिक शहरी थिएटर की अवधारणा को मूर्त रूप दिया। उन्होंने 16 साल से अधिक समय तक इस थिएटर की बागडोर संभाली और विभिन्न जगहों पर करीब 2,662 शो किए। पृथ्वीराज का जन्म तीन नवंबर 1906 को पेशावर में हुआ था। आजादी से पहले के दौर के बेहद ‘हैंडसम’ अभिनेताओं में से एक पृथ्वीराज को अभिनय का शौक इस कदर था कि उन्होंने कानून की पढ़ाई अधूरी छोड़ दी थी।
अभिनय की पाठशाला कहलाने वाले इस कलाकार को भारतीय सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए मरणोपरांत हिन्दी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 29 मई 1972 को उन्होंने अंतिम सांस ली। (एजेंसी)
First Published: Friday, November 2, 2012, 13:25