Last Updated: Wednesday, August 8, 2012, 15:57

ज़ी न्यूज ब्यूरो
मुंबई: गैंग्स आफ वासेपुर पार्ट-2 भी दमदार है। स्क्रिप्ट में कसाव है और फिल्म की कहानी में पेस है। हर अदाकार अभिनय के मामले में बेहतर नजर आता है। नवाजुद्दीन सिद्दीक़ी और मनोज बाजपेयी ने अनुराग ने बेहतर काम लिया है।
फैज़ल खान के किरदार में नवाजुद्दीन सिद्दीक़ी ने शानदार अभिनय किया है। दूसरा भाग पूरी तरह से उन्हीं के कंधों पर है और मनोज बाजपेई के मुकाबले सिद्दीक़ी ने फिल्म को ज्यादा ताजगी दी है।
कुल मिलाकर अगर पहला भाग आपके अच्छा लगा तो दूसरा पार्ट देखने भी बेहिचक जाएं लेकिन इस हिस्से में खून-खराबा पहले से भी ज्यादा है।
फिल्म के इस हिस्से में सरदार खान की मौत के बाद की घटनाओं को समेटा गया है। पूरी कहानी फ्लैशबैक में चलती है। पिछले भाग की तरह इस बार भी दो गुटों के बीच छोटे-छोटे टकरावों में फिल्म की कहानी घूमती रहती है। हिंसा,मारधाड़ के बीच भी फिल्म का कसाव बना हुआ है।
इस हिस्से में यह देखना दिलचस्प है कि कैसे बदलते वक्त के साथ-साथ वासेपुर के माफिया भी अपने तौर-तरीके बदलने लगे। कोयला खदान की लड़ाईयों और गैंगवार को दो पार्ट में समेटना सच में दिलचस्प काम है।
फिल्म दो गुटों के बीच लड़ाई-झगड़े में ही भटकती रह जाती है। हर किरदार को रियलिस्टिक टच देने के चक्कर में उन्हें गहराई नहीं दिया जा सका है।
निर्देशक अनुराग कश्यप ने पहली बार हिन्दी सिनेमा के दर्शकों को फिल्म का एक नया आयाम दिखाया है। सब कुछ वास्तविकता के काफी करीब नजर आता है। इतनी बारीकी से प्रस्तुतिकरण को अनुराग ने बखूबी ढंग से पेश किया है।
दूसरे भाग में भी काफी हिंसा है। काफी गोलियां चलीं और काफी खून भी बहा है। अनुराग चाहते तो इसे कम करके भी कहानी को बेहतर ढंग से कह सकते थे। कुल मिलाकर फिल्म ठीक है लेकिन इस फिल्म को देखने जाए तो यह ख्याल करके जाईएगा कि फिल्म में हिंसात्मक दृश्यों की भरमार है। कुल मिलाकर फिल्म देखी जा सकती है ।
First Published: Wednesday, August 8, 2012, 15:57