Last Updated: Friday, September 6, 2013, 17:34
ज़ी मीडिया ब्यूरोनई दिल्ली : बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन को पहचान दिलाने वाली 1973 की क्लासिकल फिल्म ‘जंजीर’ की रीमेक शुक्रवार को रुपहले पर्दे पर उतरी। फिल्मकार अपूर्व लखिया कुछ नया करने की चाह में ‘जंजीर’ के साथ न्याय नहीं कर पाए हैं। फिल्म काफी कमजोर साबित होती है। काफी लागत से बनी फिल्म कई जगह टूटती सी लगती है।
फिल्म की कहानी तेज तर्रार गुस्सैल एसीपी विजय खन्ना (राम चरण तेजा) की है। विजय के बचपन में उसके जन्मदिन पर उसकी आंखों के सामने उसके माता-पिता की की हत्या कर दी जाती है। विजय अपने पुलिस इंस्पेक्टर चाचा जो हैदराबाद में रहते हैं, उनके यहां रहकर एसीपी बना।
काफी गुस्सैल होने की वजह से विजय कभी पुलिस स्टेशन में ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाया। मुंबई में उसका सामना शेर खान (संजय दत्त) से होता है, जो कारों के चोरों के गैंग को चलाता है। शेर खान कुछ समय बाद अपने सभी गैरकानूनी धंधे बंद कर विजय से दोस्ती का हाथ मिलाता है।
इसी बीच एक हत्या मामले की जांच के दौरान विजय केस की अहम गवाह माला (प्रियंका चोपड़ा) तक पहुंचता है। गुजराती मूल की माला अपनी सहेली की शादी में शामिल होने के लिए मुंबई आई है। संयोग से, माला इस केस की इकलौती गवाह है। माला की गवाही के बाद विजय के हाथ रुद्र प्रताप तेजा (प्रकाश राज) तक पहुंचते है। शहर में कई पेट्रोल पंपों के मालिक तेजा का मुख्य बिजनेस मिलावटी पेट्रोल बनाकर बेचना है। हर वक्त अपनी मोना डार्लिंग (माही गिल) के साथ अय्याशी में डूबे रहने वाले तेजा तक शेर खान की मदद से पहुंचते-पहुंचते विजय अपने माता-पिता के हत्यारे तक पहुंच जाता है।
अभिनय की अगर बात करें तो प्रियंका चोपड़ा गुजराती एनआरआई लड़की के किरदार में खूब जंची हैं। साउथ के सुपरस्टार चिरंजीवी के साहबजादे राम चरण ने इस फिल्म से बॉलीवुड में एंट्री की है। संजय जिस भी सीन में नजर आए, उसी में दर्शकों की खूब वाहवाही बटोर गए।
अपूर्व लखिया की पहचान ऐक्शन मसाला फिल्मों के निर्देशक की है। लखिया की सबसे बड़ी मुश्किल फिल्म के हीरो रामचरण को अमिताभ बच्चन बनाने की है। इस फिल्म के साथ हालांकि, तीन संगीतकारों का नाम जुड़ा है। प्रियंका चोपड़ा पर फिल्माया गया आइटम नंबर `मुंबई की न दिल्ली वालों की, पिंकी तो है पैसे वालों की` और संजय दत्त पर फिल्माया गया गाना `शूट खोचे पठान की जुबान`, दोनों ही अच्छे बन पड़े हैं।
अमिताभ की ‘जंजीर’ इस फिल्म की तुलना करने पर बेहद निराशा हाथ लगेगी। 1973 में आई क्लासिकल मूवी ‘जंजीर’ की तुलना में लखिया की यह फिल्म कहीं नहीं ठहरती। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि लखिया अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद प्रकाश मेहरा के जादू को दोहराने में पूरी तरह फ्लॉफ साबित हुए हैं।
First Published: Friday, September 6, 2013, 17:34