‘डी-डे’ (रिव्यू) : नए प्लॉट पर बेहतरीन फिल्म | `D-Day’

‘डी-डे’ (समीक्षा) : नए प्लॉट पर निखिल आडवाणी की बेहतरीन फिल्म

‘डी-डे’ (समीक्षा) : नए प्लॉट पर निखिल आडवाणी की बेहतरीन फिल्मज़ी मीडिया ब्यूरो

नई दिल्ली : यदि आप सोचते हैं कि ‘डी-डे’ केवल रॉ एजेंटों और उनके मिशन को लेकर बनी है तो आप गलत हैं। निर्देशक निखिल आडवाणी ने स्पष्ट रूप से यह बताने की कोशिश की है कि रॉ एजेंट वास्तव में क्या हासिल कर सकते हैं।

‘डी-डे’ फिल्म रॉ के चार एजेंटों की कहानी है जो पाकिस्तान में शरण लिए ‘गोल्डमैन’ को पकड़कर भारत लाने के मिशन पर हैं। सेना का पूर्व अधिकारी रुद्र (अर्जुन रामपाल), सीमा पर अपनी असलियत छिपा कर रहने वाले वली (इरफान खान), जोया (हुमा कुरैशी और अपराधी से खुफिया एजेंट बने असलम (आकाश दहिया) का लक्ष्य इकबाल (ऋषि कपूर) को जिंदा पकड़कर भारत लाना है।

विदेशी जमीन पर अपने मिशन पर लगे एजेंटों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। मिशन के दौरान रुद्र एक वेश्या (श्रृति हसन) से भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है। मझे हुए कलाकारों को लेकर बनाई गई जासूसी और रोमांच से भरी यह फिल्म एक नई ताजगी देती है। निखिल ने कहानी कहने की कला को एक अलग तरीके से और शानदार रूप में पेश किया है।

रुद्र से अलग वली का अपना परिवार है। वली अपने परिवार को बहुत चाहता है। जोया के जीवन में भी कोई है जो उसका स्वदेश में बेसब्री से इंतजार करता है।

गोल्डमैन के बेटे की शादी एक बड़े होटल में है और वही उसे पकड़ने का प्लान बनाया जाता है। कागज पर स्पष्ट नजर आने वाला प्लान हकीकत में बहुत धुंधला हो जाता है। गड़बड़ियां होती हैं, कुछ ऐसी समस्याएं आ खड़ी होती हैं, जिनके बारे में सोचा भी नहीं था। ये चारों जांबाज ऑफिसर्स मुसीबत के दलदल में फंस जाते हैं।

पाकिस्तानी पुलिस, गोल्डमैन के गुर्गें पीछे पड़ जाते हैं और भारत सरकार भी इनसे पल्ला झाड़ लेती है। तमाम विकट परिस्थितियों में फंसे चारों लोग जान बचा पाते हैं या नहीं? गोल्डमैन को भारत ला पाते हैं या नहीं? यह एक थ्रिलर के रूप में फिल्म में दिखाया गया है।

अभिनय की अगर बात करें तो ऋषि कपूर ने शानदार अभिनय किया है। ऋषि कपूर ने अपनी चॉकलेटी और रोमांस वाली इमेज से अलग एक ‘डॉन’ के किरदार को बखूबी निभाया है। ऋषि कपूर लगातार उम्दा अभिनय कर रहे हैं। अग्निपथ, औरंगजेब के बाद उन्होंने खलनायकी के तेवर दिखाए हैं। बिना गुस्सा किए या चिल्लाए उन्होंने गोल्डमैन का खौफ पैदा किया है।

इरफान खान ने ऐसे शख्स का किरदार निभाया है जो फर्ज और परिवार के बीच जूझता रहता है। फिल्म के क्लाइमेक्स में उन्हें हीरो के रूप में पेश किया गया है। अर्जुन रामपाल को उन्हीं भूमिकाओं में लिया जाता है जिसमें उन्हें चेहरा भावहीन रखना पड़ता है। डी डे में भी पूरे समय वे एक जैसे भाव लिए दिखाई दिए। श्रुति हासन छोटे रोल में प्रभावित करती हैं। हुमा कुरैशी को करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था। नासेर के लिए इस तरह के रोल निभाना बेहद आसान है।

निर्देशक के रूप में निखिल आडवाणी का काम ठीक है। डॉन के किरदार को उन्होंने ड्रामेटिक नहीं बनाते हुए रियल रखा है। उन्होंने थ्रिल पैदा करने में सफलता पाई है, लेकिन स्क्रिप्ट की बड़ी खामियों को नजरअंदाज भी किया है, जिससे ऐसा आभास होता है कि गोल्डमैन को भारत लाना यानी म्युनिसिपैलिटी के गार्डन से फूल चुराने के समान है।

डी डे एक अच्छे आइडिए पर बनाई गई है, लेकिन स्क्रिप्ट की खामियों के कारण बात पूरी तरह नहीं बन पाई। इसके बावजूद यह फिल्म देखी जा सकती है।

First Published: Friday, July 19, 2013, 17:06

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